कृषि एवं राष्ट्रीय विकास में महिलाओं का योगदान      Publish Date : 18/05/2025

         कृषि एवं राष्ट्रीय विकास में महिलाओं का योगदान

                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

सदियों से महिलाएं कृषि कार्यों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती आ रही हैं, लेकिन कृषि व्यवस्था का पूरा मांइडसेट पुरुष प्रधान होने के कारण राष्ट्रीय उत्पादकता में इसका कोई मूल्यांकन नहीं किया जात है। यदि पूरे विश्व की कृषि अर्थव्यवस्था के ढांचे को इमानदारी से देखें तो वैश्विक महिला किसान कृषि की तस्वीर जन्मदाता होने के साथ अन्नदाता की भी सामने आती है। किसी भी राष्ट्र की तरक्की में महिलाएं पुरुषों के बराबर का योगदान करती हैं और यदि हम इसे आजमा कर देखें रोजगार के अपार संसाधन खुल जाएंगे।

हमारे देश की अर्थव्यवस्था का मेरूदंड कृषि है। लेकिन जब किसानों की बात आती है तो केवल पुरूषों को ही कृषि में योगदान के लिए सर्वोपरी माना जाता है, जबकि इस कृषि व पशुपालन के ढांचे में महिलाओं का योगदान भी पुरूष के बराबर का ही रहा है, लेकिन इस पुरुष प्रधान देश में महिला किसानों को वह सम्मान नहीं दिया जाता है। जबकि महिला किसान पुरुष किसानों के साथ मिलकर कार्य करती हैं, लेकिन उन्हें आज भी एक कृषि मजदूर ही समझा जाता है।

                                                      

ये महिलाएं अपनी गृहस्थी के साथ-साथ खेतों में बीज रोपने से लेकर फसल कटाई तक के सभी खेती किसानी के कामों में शारीरिक श्रम लगाती हैं। किन्तु उनके श्रम का आर्थिक मूल्यांकन कभी नहीं हुआ तथा ना ही खेती-बाड़ी के कामों से जुड़ी महिलाओं को आज तक वह दर्जा, पहचान और सम्मान मिला जिसकी वह सही मायनों में हकदार हैं। इसमें कई तरीके की समस्याएं हैं। कुछ महिलाएं जो पूर्णतया खेती पर निर्भर हैं, कुछ महिलाएं जो किसान श्रमिक के रूप में तथा कुछ महिलाएं ऐसी हैं जिनके नाम जमीन का मालिकाना हक नहीं है और अपना व परिवार का गुजारा इसी से करती हैं।

कृषि में जेन्डर फ्रेन्डली मशीनी उपकरण तथा महिला किसानों के खेती-बाड़ी के कार्य में योगदान को ध्यान में रखकर योजनाएं व कार्यक्रम संचालित किये जाएं, क्योंकि हमारे देश में आज भी अशिक्षित समाज, शिक्षित समाज से कहीं बड़ा है।

देश की आधी आबादी, महिलाओं का एक बहुत ही बड़ा हिस्सा ऐसा है जो कृषि कार्य में लगा हुआ है और इसकी सबसे बड़ी समस्या है कि इनके श्रम को पुरुष किसानों के श्रम के समान नहीं माना जाता है। जबकि हम अपने वातावरण और परिवेश में बचपन से यह देखते आए हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाएं पशुपालन, सिंचाई, फसल रोपना निदाई, कटाई, बुवाई, भण्डारण, पैकेजिंग, देखरेख से लेकर धान को तैयार करने तक के सारे काम महिलाएं ही कर रही हैं।

                                                   

यहां तक की एग्रीकल्चर मंडियों, मार्केट तक पहुंचाने का कार्य भी करती हैं। इसमे इनकी मेहनत व कार्य के घण्टों की कीमत और मूल्य को कभी सही तरीके नहीं आंका गया। सरकार द्वारा ऐसी कोई स्पष्ट नीति या गाइडलाइन नहीं बनाई गई, जिससे सीधे तौर पर किसान महिलाओं को लाभ प्राप्त हो सके। लेकिन अ बवह समय आ गया है कि जब ग्रामीण क्षेत्रों की बुनियादी, सामाजिक, आर्थिक जरूरतों पर महिला व पुरूषों की बराबरी से पहुंच बनानी आवश्यक है।

कानूनी तौर पर महिलाओं के अपने स्वयं के नाम से जमीन के पट्टे नहीं है या अगर कोई महिला विधवा, एकांकी, या एकल है तो उसके नाम से खाते का स्थानांतरण नहीं हुआ, जिससे उसे मालिकाना हक नहीं मिल पा रहा और वह मजदूर की तरह काम कर रही है।

कुछ महिलाओं की स्थिति ऐसी भी है जिसमें जमीन उनके नाम से है, किंतु शिक्षा का स्तर बढ़ गया और उन्होंने उस जमीन पर बंटवारे से खेती करना शुरू किया जिसका सरकार की अनेक प्रकार की ऋण योजनाओं में उनको लाभ नहीं मिल पाता है क्योंकि मौके पर खेती का काम वह महिलाएं नहीं करती।

कुल मिलाकर देखा जाए तो महिला किसानों की स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि अपने बच्चों व परिवार का पालन पोषण करने के बाद वह एक अन्नदाता के रूप में अपनी भूमिका अदा करती है, जिसको आर्थिक दृष्टि से भी रेखांकित किया जाना ही चाहिए।

वर्तमान में एक ज्वलंत समस्या यह भी है कि जिन किसानों के पास छोटी-छोटी जमीन है उनको सामूहिक खेती के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, क्योंकि छोटी जमीन में लागत अधिक और मुनफा कम होता है, जिससे किसान की आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही है।

ऐसी स्थिति में कलेक्टिव फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है, जिससे हर किसान का स्तर भारतीय किसानों लिए खचर्चीली हो रही खेती को किफायती फायदेमंद कृषि में बदलने वाले माध्यम व तौर-तरीके तकनीकी का प्रचार प्रसार पुरजोर हो सके और जिससे किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा हो सके। अगर हम महिला किसानों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करें, एक्स्पोजर दें, किसान पाठशाला, गोष्ठी, चौपाल, प्रतियोगिताएं, सम्मान, पुरस्कार तथा विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाएं और साथ में खेती कृषि को करने के नवीनतम नवाचार प्रयोगों से उनको परिचित कराने का प्लेटफार्म उपलब्ध कराएं तो महिलाएं बहुत ही बेहतरीन तरीके से कृषि कार्य को कर सकती हैं।

                                                          

ऐसा करने से दोहरा फायदा होगा क्योंकि परिवार के पुरुष अन्य कार्य में अपनी दक्षता हासिल करेंगे तथा जो महिलाएं घर गृहस्थी का काम संभालते हुए अपने घरेलू समय से जो वक्त उनको मिलेगा वह अपने परिवार में रहकर ही कृषि का कार्य कर सकेंगी।

परिवार की देखभाल के साथ-साथ स्वयं की आय अर्जन व आजीविका के साधनों में अनाज खाधात्र, सब्जियों, फलों, फूलों के साथ साथ मधुमक्खी पालन, डेयरी फार्म, गोपालन, मशरूम उत्पादन, फूड प्रोसेसिंग खाद्यान इकाई के लघु उद्योगों की ओर भी महिला किसानों को आगे बढ़ाया जा सकता है।

इसमें देशभर में कार्य करने वाले कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विभाग तथा अन्य स्थानीय विभागों के आपसी समन्वय से महिला किसानों को तकनीकी तौर पर प्रशिक्षण देकर तथा आवश्यकता पड़ने पर ग्रामीण कृषि बैंकों द्वारा उनको आर्थिक ऋण की सहायता तथा विभिन्न प्रकार के को-ऑपरेटिव स्टोर तथा सहकारी समितियों के माध्यम से उनके प्रोडक्ट को बेचा जा सकता है। ऐसा मॉडल न केवल एक महिला को अपितु पूरे किसान परिवार को आर्थिक और सामाजिक रूप से सम्बल देगा। इससे और भी अनेक फायदे हैं जैसे महिलाओं के सामाजिक सम्मान में वृद्धि होगी तथा जब किसी महिला के हाथ में धन आता है तो अपने बच्चों को शिक्षित और अच्छी शिक्षा मुहैया करवायेगी। साथ ही आधुनिक तकनीकों के माध्यम से खेती करने से समय व श्रम बचेगा।

घर के अन्य पुरुष किसी दूसरे कार्य में रोजगार से जुड़ेंगे तो दोनों की सांझी आमदनी से घर चलाना तथा दोनों की आय का राष्ट्रीय उत्पादकता में शामिल होने से एक नये तरीके का बदलाव आयेगा। इससे ग्रामीण समाज में जबरदस्त चेतना व जागरूकता का वातावरण बनेगा जो महिला सशक्तिकरण के साथ परिवार को सशक्त करेगा। हम कृषि की जिम्मेदारी महिलाओं को पूर्णता क्यों नहीं देना चाहते, क्या वो यह काम बखूबी से नहीं कर सकती है? इसके इसके अनेक उदाहरण हैं- आज कई घंटे महिलाएं खेतों पर रहती हैं। फसल की देखरेख करती हैं, खाद, पानी, मिट्टट्टी जुताई, खुरपी खुदाई जैसे अनेक कार्य करती हैं। महिला किसानों को जैविक खेती से फसल की गुणवत्ता में प्रशिक्षित करने के लिए आजकल कंप्यूटर व मोबाइल के माध्यम उपलब्ध है।

रेडियो, टेलीविजन की पहुंच हर गांव तक है, कई तरीके के किसान प्रशिक्षण के कार्यक्रम, वाद संवाद के माध्यम से कृषि विशेषज्ञों की सलाह से कार्यक्रम व योजनाएं बनायी जा रही हैं जिससे महिलाएं इन अनुभवों का फायदा उठाकर नए गुर सीखेंगी तथा जहां-जहां भी महिला किसान श्रेष्ठ कार्य कर रही हैं, उनकी कहानियों को अनेक मीडिया व संचार तकनीकी के माध्यम से जब परोसा जाएगा तो निश्चित रूप से इसके परिणाम बहुत ही बेहतरीन आएंगे और हमारे देश की जीडीपी तथा राष्ट्रीय उत्पादकता में महिलाओं की भूमिका बहुत ही मजबूती से सामने आएगी। महिला किसान नवाचारों के साथ आगे बढ़ेंगी देश के अन्नदाता के साथ जन्मदाता पालनहार विभिन्न रूपों से जानी जाने वाली महिला बेहतरीन तरीके से कार्य करेंगी।

कृषि की सोशल ऑडिट होगी तो महिला किसानों का मजबूत पहलू निकलकर आयेगा। जिससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि गरीबी, बेकारी, भुखमरी, निर्धनता के क्षण बदलकर स्वरोजगार के माध्यम से अनेक समस्याओं का समाधान होगा तथा जब महिलाएं काम में संलग्न रहेंगी तो वह अनेक रूढ़ियों, कुरीतियों, परंपराओं, जो समय की आज जरूरत नहीं है व्यर्थ हैं, उनसे भी दूर रहेंगी। साथ ही ग्रामीण जीवन व परंपरागत कृषि को एक नया आयाम, नयी पहचान मिलेगी। इससे नया उत्साह, नया कदम, नया समाज बनेगा तथा लेडीज फार्मर फस्ट अनेक जटिल समस्याओं के समाप्ति के साथ नयी संभावनाएं जन्म लेंगी जिससे बहुत ही खूबसूरत समाज के निर्माण को दिशा मिलेगी। कृषि में महिला किसान की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए कुछ सुझाव-

  • महिला किसान जन्मदाता के साथ अन्नदाता भी, राष्ट्रीय स्तर पर उनके कृषि कार्यों को आथिर्क दर्जा मिले।
  • फेमिनाइजेयशन ऑफ एग्रीकल्चर की शुरूआत हो।
  • कृषि का सोशल ऑडिट होना चाहिए।
  • कृषि, पशुपालन में आदि में महिलाओं का आर्थिक मूल्यांकन किया जाए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।