
अंधकार से प्रकाश की ओर Publish Date : 30/04/2025
अंधकार से प्रकाश की ओर
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
बृहदारण्यक उपनिषद का एक श्लोक है, ‘असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय।’ इसका अर्थ है मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो, क्योंकि अंधकार और अज्ञान युक्त जीवन मृत्यु के समान है। मानव जीवन को असत्य, अनाचार, अविवेक जैसे अनेकों प्रकार के अंधकारों का ग्रहण लगा रहता है। वह इनमें उलझकर जीवन की सार्थकता भूल जाता है।
जब कभी समझ में आता है तब तक बहुत विलंब हो चुका होता है। ईश्वर प्रदत्त इस जीवन रूपी उपहार का कोई जनकल्याणकारी और स्वकल्याणकारी उपयोग नहीं कर पाता है।
काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, अहंकार जैसे अनेक प्रकार के अंधेरे जीवन को प्रकाश की ओर बढ़ने में बाधक बनते हैं। इनसे मुक्ति की प्रार्थना के बजाय प्रायः मनुष्य अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे, इसी के लिए चेष्टारत रहता है।
उसकी प्रार्थना में ‘हे प्रभु आनंद-दाता, ज्ञान हमको दीजिए, शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिए। लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बनें, ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक, वीर व्रत धारी बनें।’ जैसी सदगुणी प्रार्थना के बजाय अन्य सभी सांसारिक इच्छा पूर्ति का समावेश ही मिलता है। सरल जीवन जीने और निर्मल मन मिलने की कामना का सर्वथा अभाव उसकी प्रार्थना में होता, किंतु सांसारिक सभी सुख उपभोग की इच्छा वह अवश्य करता है।
लोगों को एक बात सदैव याद रखनी चाहिए कि छल-छिद्र रहित कर्म से ही हम प्रभु के स्नेह के पात्र हो सकते हैं। इस राह के बाधक बने अंधेरे और अज्ञानता के फेरे मनुष्य की जड़ता समाप्त कर उसमें चैतन्यता को जागृत ही नहीं होने देते। तमसो मा ज्योतिर्गमय के भावों से हमें न केवल सांसारिक कामनाओं से निवृत्ति मिलेगी, वरन ज्ञानोदय होने से मन की आंतरिक आंखें भी खुलेंगी।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।