
मिलावटी पदार्थों का मानव के स्वास्थ्य पर प्रभाव Publish Date : 21/04/2025
मिलावटी पदार्थों का मानव के स्वास्थ्य पर प्रभाव
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों, सौंदर्य प्रसाधनों व अन्य घरेलू उत्पादों के मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विशिष्ट प्रभावों के बारे में विवरण हमारे इस लेख में दिया जा रहा है-
मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर उनका कुप्रभाव
हम लोग मिलावटी खाद्य पदार्थों को खाते-खाते और उनका रूप रंग देखते-देखते इतने आदी हो गए हैं कि असली चीजें देखने या इस्तेमाल करने पर भी अब नकली जैसी लगने लगती हैं। सिंथेटिक चमकदार हरे रंग से रंगी हुई भिंडीं, लौकी तथा मटर के दाने बाजार में अनायास ही हमारा ध्यान आकर्षित कर लेते हैं। यह स्थिति बड़े-बड़े शहरों में ज्यादातर देखने को मिलेगी, जहां पर गांव के दूर-दराज के इलाकों से वाहनों से आते-आते सब्जियां बेरंग हो जाती हैं। ऐसे में यदि उन्हें तरोताजा दिखने वाला रूप-रंग न दिया जाये तो विक्रेता मनमाना मुनाफा नहीं कमा पायेगा। अतः इन बेरंग सब्जियों को हानिकारक रंगों से रंग दिया जाता है। बाजार में उपलब्ध हरी मटर के दाने वास्तव में हरी मटर के नहीं होते बल्कि सूखी मटर को रात भर हरे रंग के पानी में डुबोकर तैयार किये गये दाने होते हैं।
पहचान के लिए इन दानों को अंगुली और अंगूठे के बीच दबाएं। नकली हरी मटर के ऊपर से झिल्लीनुमा सख्त ऊपरी छिलका अलग हो जायेगा तथा अंदर की दो सख्त दालें अलग हो जायेंगी, जबकि हरी मटर के दाने का ऊपरी छिलका सख्त नहीं होगा तथा दालें भी थोड़ा दबाते ही पिचक जायेंगी। असली हरी मटर के दानों की सबसे महत्वपूर्ण पहचान यह होती है कि मसले हुए दाने को सूंघने पर ताजा कटी हुई घास जैसी सुगंध आयेगी। जबकि रंगी हुई हरी सब्जियां गुनगुने पानी में थोड़ी देर रखने पर हरा रंग छोड़ देंगी। कभी-कभी तो यह रंग ठंडे पानी में ही छूटने लगता है। अक्सर ये सब्जियां कॉपर सल्फेट से रंगी जाती हैं, जो एक जहर होता है जिसके अधिक मात्रा में शरीर में पहुंचने पर उल्टी तथा शरीर में पानी की कमी के लक्षण पैदा हो सकते हैं।
बेसन या बूंदी के लड्डू, पनीर पकौड़ा, अन्य प्रकार की बेसन युक्त पकौड़ियां, पापड़, जलेबी, पीले रंग की दालें, बेसन की नमकीन, मिठाइयां तथा अधिक पीले दिखाई पड़ने वाले अन्य खाद्य पदार्थों में मैटानिल वेली रंग का इस्तेमाल किया जाता है जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर लंबे समय में कैंसर का कारण बन सकता है। गुलाबी रंग के रसगुल्ले, गुलाब-जामुन तथा मिठाइयों में रोडामिन-बी का इस्तेमाल किया जाता है। हल्दी में लेह क्रोमेट रंग मिलाकर उसे ज्यादा पीला कर दिया जाता है ताकि उसमें मिलाये गये स्टार्च जैसे पदार्थों का पता न चल पाए। लैंड क्रोमेट को लगातार ज्यादा समय तक खाने पर शरीर में स्थाई नुकसान होता है। सफेद रसगुल्ले, सफेद रंग की अन्य मिठाइयां, पके हुए चावल या नूडल, कुल्फी में ऊपर से डाले जाने वाले फलूदे आदि को अधिक सफेदी देने के लिए अल्ट्रा मरीन ब्लू रंग का इस्तेमाल किया जाता है जो इसके खतरनाक हानिकारक प्रभावों के कारण प्रतिबंधित है। सरसों के तेल में एग्रीमोन सीड्स के तेल का मिश्रण होता है जो ड्रॉप्सी जैसी जानलेवा समस्याएं पैदा करता है। चने तथा अरहर की दाल में खेसारी दाल की मिलावट शरीर में फालिज का कारण बनती है। वनस्पति तेलों में मिनरल ऑयल की मिलावट से कैंसर पैदा हो सकता है।
अनेक हिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में आर्टीफिशियल फ्लेवर का इस्तेमाल किया जाता है, जिनका निर्धारित सुरक्षित सीमा से अधिक मात्रा में इस्तेमाल लीवर कैंसर की जन्म देता है। कीड़े-मकोड़ों तथा बीमारियों की रोकथाम के लिए आजकल अनाजों, फलों, सब्जियों आदि पर अंधाधुंध पेस्टीसाइडों का प्रयोग किया जाता है जिनमें से कई का असर पदार्थों को धोने पर भी नहीं जाता। ये बचे हुए पेस्टीसाइड शरीर के प्रमुख अंगों, जैसे लीवर, किडनी, नसों आदि को क्षतिग्रस्त करते हैं तथा शरीर पर जहरीला असर डालते हैं। बाजार में चौड़ी कढ़ाइयों में गाड़ी मलाईयुक्त दिखने वाले दूध के ऊपर ज्यादातर मामलों में स्टार्च या अरारोट की मलाई होती है। रबड़ी और कुल्फी में भी मैदा, स्टार्च या अरारोट का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें गाढ़ापन लाने के लिए बिकनर केमिकलों का इस्तेमाल भी किया जाता है।
अब जरा सोचिए, जब दूध 50-60 रुपये लीटर हो तो खोया 80-90 रुपये किलो कैसे हो सकता है। गांव में किसानों के पास दुधारू गाय-भैंसों की संख्या दिन-पर-दिन कम होती जा रही है पर दूध की सप्लाई बढ़ रही है, कहां से आ रहा है यह दूध? जाहिर है सिंथेटिक दूध का उत्पादन हो रहा है। आये दिन टीवी पर साक्षात दिखाए जा रहे नकली दूध बनाने के अड्डों का पर्दाफाश इसका आंखों देखा प्रमाण है। एक जमाने में गर्मियों में चारे को कमी के कारण दूध की भी कमी हो जाया करती थी। पर अब ऐसा कभी नहीं होता। खुले दूध में मिलावट के डर से बड़ी-बड़ी या सरकारी कंपनियों द्वारा बेचा जाने वाला दूध मजबूरी में एक उपाय है पर सच्चाई तो यह है कि आखिरकार इनका दूध भी तो गांव व जगह-जगह से इकट्ठा हो कर ही आता है। जिस तरह के केमिकल्स की मिलावट के किस्से सामने आ रहे हैं. उनसे तो ऐसा लगता है कि ये दूध भी सुरक्षित नहीं है।
यदि हम इन कंपनियों द्वारा सख्त टेस्टिंग किये जाने की बात भी करें तो भी तसल्ली नहीं होती है क्योंकि दूध पर किये जाने वाले टेस्ट सीमित हैं जबकि मिलावटी केमिकल्स तथा फार्मूलों की कोई कमी नहीं है। दूध मिलावटी पदार्थों का यदि सामान्य मिश्रण हो तो बात आसान है पर अगर इमल्सन के रूप में कोई पदार्थ डाला गया हो तो सीमित साधनों तथा साधारण टेस्टिंग विधियों से मिलावट का पता नहीं लगाया जा सकता है कि ये दूध भी सुरक्षित नहीं है।
मिलावटी सौंदर्य प्रसाधन और उनका स्वास्थ्य पर कुप्रभाव
सौंदर्य प्रसाधन वे पदार्य हैं जिन्हें शरीर को सुंदरता प्रदान करने, सफाई करने, आकर्षण बढ़ाने अथवा शारीरिक दिखावट में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करने के लिए प्रयोग किया जाता है। सौंदर्य प्रसाधनों के हानिकारक प्रभावों से कोई नहीं बचा हुआ है, फर्क सिर्फ इतना है कि कोई ज्यादा प्रभावित है तो कोई कम। कई प्रकार की अज्ञानता के कारण हमारे समाज में एक प्रचलित कहावत है कि महंगा है तो अच्छा ही होगा या ऑर्गेनिक है या हर्बल है, ब्रांडेड है आदि-आदि, और सबसे बड़ी भ्रान्ति ये कि सरकारी दुकान से लिया है या सरकारी कम्पनी द्वारा बनाया हुआ है। किसी सौंदर्य प्रसाधन का कौन सा अवयव हानिकारक है और उसके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव हो सकते हैं या किसी उत्पाद में क्या मिलावट की जा सकती है, यह जानकारी तो आमतौर पर प्रकाशित पुस्तकों तथा लेखों से प्राप्त की जा सकती हैं जिसका संक्षिप्त विवरण इस लेख में भी दिया जा रहा है।
परन्तु यहां उन बातों का विवरण उपलब्ध है जो आम आदमी की बात तो छोड़ो, पढ़े-लिखे व्यक्ति के दिमाग में भी नहीं आती हैं। इतना ही नहीं, अनेक बार मिलावट का पता लगाने वाले विशेषज्ञों को भी मिलावटी सामान का उपयोग करने पर मजबूर और लाचार होना पड़ता है। यदि हम ब्रांड मैनिया की ही बात करें तो आप किसी भी सौंदर्य प्रसाधन का उदाहरण ले लें, सभी में किसी न किसी प्रकार का प्रिजर्वेटिव मिलेगा। पैराबींस लगभग सभी प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयोग किये जाते हैं। शरीर में ऐस्ट्रोजन हॉमोन की तरह व्यवहार करते हैं तथा ब्रेस्ट कैंसर का खतरा उत्पन्न करते हैं।
लगभग सभी क्रीमों तथा लोशनों में मिनरल ऑयल तथा इमल्सिफार्डिंग एजेंट्स अवश्य मिलेगे वरना तेल और पानी आपस में मिल नहीं पाएंगे। ज्ञात हो कि क्रीम और लोशन तेल और पानी का मिश्रण होते हैं जो किसी इमल्सिफार्डिंग एजेंट की सहायता से आपस में मिलकर दुधिया रंग का मिश्रण बनाते हैं। यह मिश्रण एक बेस के रूप में काम करता है जिसमें सौंदर्य प्रसाधनों की आवश्यकतानुसार अलग विशिष्ट गुण प्रदान करने के लिए अलग-अलग पदार्थों को डाला जाता है। उदाहरण के लिए यदि झुर्रियां कम करने वाली क्रीम बनानी हो तो एंटीऑक्सिडेंट पदार्थ डाला जायेगा, गोरेपन की कीम बनानी हो तो ब्लीचिंग करने वाले पदार्थ डाले जायेंगे। सर्दी, गर्मी या बरसात के मौसम के लिए या शरीर के अलग-अलग भागों के लिए पहचानी जाने वाली क्रीमों या लोशनों में ज्यादा कुछ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं होता है, यह बस तेल और पानी के अनुपात का गणित होता है। यहां पर सवाल इस बात का नहीं है कि किस उत्पाद में क्या केमिकल या पदार्थ डाला गया है, सवाल इस बात का है कि उसका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है।
झुर्रियां कम करने वाली क्रीमों में प्रयोग किये जाने वाला कोलेजन, जिसे वसा से प्राप्त किया जाता है, त्वचा को थोड़े समय के लिए चिकनी व नरम तो बनाता है पर लंबे समय में इसके खुद के सिकुड़ने के कारण यह और भी अधिक झुर्रियां पैदा करता है। कोलेजन के बारे में इस बात का ज्ञान होने पर कि ये मरे हुए पशुओं के खुरों, त्वचा तथा मुर्गियों के पंजों से बनाये जाते हैं, अनेक शाकाहारी उपभोक्ता कोलेजन युक्त सौंदर्य प्रसाधनों को प्रयोग करने से हिचकिचा सकते हैं।
क्रीमों में इस्तेमाल किये जाने वाले एक अन्य अवयव लैनोलिन में पेस्टीसाइड तथा डाइऑक्सिंस होते हैं जो कैसरजनक होते हैं। फाउन्डेशन में अधिकतर मिनरल ऑयल होता है जो एक पेट्रोकेमीकल है तथा हमारी हॉर्मोेन प्रणाली पर बुरा असर डाल सकता है तथा इसके प्रयोग से कैंसर होने का खतरा बना रहता है। यह कोशिका पुनर्जनन की प्रक्रिया को मंद कर प्रिमैच्योर एजिंग का कारण बनता है। लिपिस्टिक में प्रयुक्त रंग और केमिकल कैंसर के अलावा कई प्रकार के एलर्जिक रिएक्शन तथा प्रिग्नेंट स्त्रियों में स्टिल चाइल्ड वर्च तथा अपंग बच्चे को जन्म देने का कारण बन सकते हैं। नेल पॉलिश में पाए जाने वाले टालूइन, फिनोल तथा जाइलीन खतरनाक रसायन हैं। जहां फिनोल कैंसरजनक है वहीं टालूइन से सर दर्द, चक्कर आना तथा भूख समाप्त हो जाने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
ग्लिसरीन, जिसे हम एक जाने-माने मॉइस्वराइजर के रूप में प्रयोग करते हैं, सर्दियों और गर्मियों में शरीर की नमी को सोख लेती है जिससे शरीर में पानी की कमी पैदा हो जाती है। ग्लिसरीन के अलावा प्रोपलीन ग्लाइकोल भी इसी प्रकार का रसायन है जो त्वचा को नमी प्रदान करने के लिए त्वचा के अंदर की नमी को कम करता है। आंखों के मेकअप के सामान, जैसे काजल, आई लाइनर, मस्कारा आदि में लेह होता है जो शरीर की नर्वस प्रणाली की क्षतिग्रस्त करता है जिससे स्मरण शक्ति का नाश होता है। लैंड कैंसरजनक है तथा प्रजनन (रिप्रोडक्टिव सिस्टम) के लिए घातक है। हेयर डाई का प्रमुख रसायन पी पी डी (पैरा फिनोक्सी डाई एमीन) त्वचा में एलर्जी उत्पन्न करता है तथा कैंसरजनक होता है। इस्तेमाल के समय झाग उत्पन्न करने वाले नब्बे प्रतिशत उत्पादों, जैसे वाशिंग तथा क्लीनिंग उत्पाद में एनायनिक सफेक्टेंट्स का इस्तेमाल किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर कैसर पैदा कर सकते हैं।
परफ्यूम्स में इस्तेमाल किये जाने वाले अनेक केमिकल्स, जैसे बेंजाइल एल्कोहल, बेंजाइल एल्डीहाइड, आदि सरदर्द, उल्टी, चक्कर, जी मिचलना, लो ब्लड प्रेशर, सांस लेने में कठिनाई, कैंसर, एलर्जी जैसी समस्या उत्पन्न कर सकते हैं। हेयर कंडीशनरों में इस्तेमाल किये जाने वाले केटायनिक सफॅक्टेंट्स जहरीले तया एलर्जी उत्पन्न करने वाले होते हैं। हेयर डाई, खुजली दूर करने वाली तथा एंटी डेंड्रफ क्रीम में कोलतार रंगों का इस्तेमाल किया जाता है जो त्वचा में एलर्जी तथा जलन पैदा करते हैं तथा आंखों में गिर जाने पर उन्हें घायल कर स्थाई रूप से खराब कर सकते हैं। शेम्पू, बबल वाघ, मॉयस्चराइज़र, शेविंग क्रीम, स्किन लोशन, बेबी वाश, फेशियल क्लीजर में इस्तेमाल किये जाने वाले मोनो, डाई तथा ट्राई इथाइल एमीन नाइट्रेट प्रिजर्वेटिव के साथ मिलकर कैंसरजनक गुण धारण कर लेते हैं तथा शरीर से कोलीन को समाप्त कर हॉर्मोन असतुलित करने का काम करते हैं।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।