
एक प्रेरणादायक एवं स्मरणीय व्यक्तित्व पं. नरेन्द्र शर्मा Publish Date : 19/04/2025
एक प्रेरणादायक एवं स्मरणीय व्यक्तित्व पं. नरेन्द्र शर्मा
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
बहुआयामी व्यक्तित्य एवं कृतित्व के धनी हिन्दी साहित्यकार पं. नरेन्द्र शर्मा 11 फरवरी, 1989 को यकायक अस्वस्थ हो गए और उसी रात के साढ़े नौ बजे 77 वर्ष की आयु में उनका निधन भी हो गया
पं. नरेन्द्र शर्मा मितभाषी, विनम्र एवं साहित्यिक राजनीति से दूर रहने वाले हिन्दी के सेवक-साधक थे। वह स्वतन्त्रता सेनानी थे और पं. जवाहर लाल नेहरू के निकट सहयोगियों में से कुछ व्यक्तियों में गिने जाते थे। वह पाँच वर्षों तक पं. नेहरू के निजी सचिव भी रहे थे।
हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में पं. नरेन्द्र शर्मा का आगमन छायावाद के युग में हुआ और वह परवर्ती युग प्रगतिवाद के प्रमुख कवि बन गए। प्रगतिवाद की कविताओं में उनका विद्रोही स्वर मुखार है। उनके कविता संग्रह ‘प्रभात फेरी’ और ‘पलाश-वन’ को प्रगतिवाद के प्रतिनिधि काव्य-संग्रह कहा जा सकता है।
जन्म- श्री नरेन्द्र शर्मा का जन्म एक सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में 28 फरवरी, 1913 को जिला बुलंदशहर की खुर्जा तहसील के ग्राम जहाँगीरपुर में हुआ था। शैशवावस्था में ही आपको पिता का वियोग सहन करना पड़ा, परन्तु परिवार के अन्य सदस्यों ने बालक नरेन्द्र को पूर्ण स्नेह प्रदान किया।
शिक्षा- खुर्जा में इण्टरमीडिएट तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आपने प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रयाग में प्रवेश लिया और वहीं से सन् 1936 में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
अपने विद्या सम्पन्न परिवार में नरेन्द्र जी को शिक्षा के श्रेष्ठ संस्कार प्राप्त हुए प्रयाग पहुँचने पर उन्हें अपनी रुचि के अनुकूल वातावरण, प्रोत्साहन एवं सहयोग प्राप्त हुए। वहाँ उनका सम्पर्क कवि बच्चन, सुमित्रानन्दन पंत, शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल और वीरेश्वर सिंह आदि कवियों से हुआ।
काव्य-साधना- प्रयाग में रहते हुए लगभग 20 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र शर्मा काव्य-रचना करने लगे थे. उनकी कोमल-प्राण कविताओं को देखकर महाप्राण कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ इन्हें पंत-परम्परा के प्रतिनिधि कवि के रूप में मान्यता प्रदान कर चुके थे। प्रसिद्ध उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा से भी इन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन प्राप्त हुआ था। ‘आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे आदि कविताओं ने नरेन्द्र शर्मा को लोकप्रियता प्रदान की। पं. नरेन्द्र शर्मा ने कविता, गद्य और नाटक की कुल मिलाकर उन्नीस पुस्तकें लिखीं।
किशोर नरेन्द्र के हृदय पर आर्य समाज के सुधारवादी आन्दोलन और राष्ट्रीय जागरण का व्यापक प्रभाव पड़ा। महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर किशोर नरेन्द्र शर्मा एक बार पुलिस चौकी को ललकारने पहुँच गए थे। निर्भयता और देशभक्ति के भाव नरेन्द्र शर्मा में कूट-कूट कर भरे हुए थे। सन् 1942 में होने वाले ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग लेने के कारण नरेन्द्र शर्मा को नज़रबंद करके देवली कैम्प में रखा गया। जेल जीवन में ही प्रकृक्ति की कोमलता और उसके सौन्दर्य से अनुप्राणित होकर आपने एक कथा गीति कामिनी की रचना की। मिट्टी और फूल कविता संग्रह की अधिकांश कविताएं भी जेल जीवन में ही लिखी गई थीं, जिन दिनों आप जेल गए थे, उस समय नरेन्द्र शर्मा काशी विद्यापीठ में अध्यापन कार्य कर रहे थे। इसके पहले आप कुछ समय तक लीडर प्रेस से प्रकाशित भारत के सम्पादन विभाग से सम्बद्ध रहे थे।
इनका प्रथम कविता-संग्रह शूल-फूल सन् 1934 में प्रकाशित हुआ। उसके बाद सन् 1936 में ‘कर्णफूल’ सन् 1939 में ‘प्रवासी के गीत’ तथा सन् 1940 में इनको प्रसिद्धि दिलाने वाला कविता-संग्रह पलाश-वन प्रकाशित हुआ।
सन् 1943 में कवि नरेन्द्र शर्मा फिल्मों के लिए गीत लिखने के लिए बम्बई गए और वहीं वह गृहस्थ बने। सन् 1947 में हंसमाला, सन् 1948 में रक्त चन्दन, सन 1950 में अग्निशस्य, सन् 1953 में कदलीवन, सन् 1960 में द्रौपदी, सन् 1964 में प्यासा निर्झर, सन् 1965 में उत्तरजय, तथा सन् 1967 में बहुत रात गए काव्य-कृतियाँ प्रकाश में आई।
बम्बई प्रवास में आप आकाशवाणी के सम्पर्क में आए वहाँ सुगम संगीत तथा हिन्दी कार्यक्रमों के नियोजक और बाद में विविध भारती के संचालक रहे। कहने की आवश्यकता नहीं है कि काव्य संग्राहों में कवि नरेन्द्र शर्मा की वाणी और उनके विचारों में उत्तरोत्तर प्रौढ़ता आती गई। आकाशवाणी के दिल्ली केन्द्र पर कार्यरत रहते हुए नरेन्द्र शर्मा ने द्रौपदी खण्ड काव्य की रचना की थी। दौपदी उनका प्रतीकात्मक काव्य है। इस रचना में कवि की प्रौढ चिन्तन-धारा मुखर हो उठी हैं द्रौपदी की भूमिका में कवि का यह कथन द्रष्टव्य है, कथा का आरम्भ द्रौपदी स्वयबर से होता हैं, ‘द्रौपदी जीवनी शक्ति सौंप दी गई पोंछा तत्वों को, या कहा नियति ने, पार्थ! करो अब प्राप्त लुप्त सत्वों को।’
मैंने द्रौपदी को पाँच महातत्वों को संश्लिष्ट और तेजोमय कर देने वाली जीवनी शक्ति के रूप में देखा है। द्रौपदी-स्वयंवर के फलस्वरूप, जीवनी शक्ति द्रौपदी की प्राप्ति से पाँच पांडवों के रूप में पाँच महातत्व अपना संश्लिष्ट स्वरूप प्राप्त करते हैं और प्राप्त करते हैं- अपने को द्रौपदी-स्वयंवर से पहले, जो क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण-वेष में मिक्षाटन करते थे, द्रौपदी के संयोग से वे स्वधर्म और पैतृक राज्य को पुनः प्राप्त कर लेते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण को यज्ञपुरुष नारायण कहा जाता है, द्रौपदी यज्ञकुण्ड से पैदा हुई थी इसीलिए श्रीकृष्ण और द्रौपदी का भाई-बहन का अन्तरंग सम्बन्ध है। द्रौपदी को नारायणी शक्ति भी कहा गया है। पांडव अपने संश्लिष्ट स्वरूप में शक्तिमान नर हैं, जिन्हें नारायणी शक्ति का प्रेरक संयोग प्राप्त होता है। पाठक स्मरण रखें कि द्रौपदी स्वयंवर के अवसर पर ही श्रीकृष्ण से पांडवों का मिलन होता है।
एक गीतकार के रूप में पं. नरेन्द्र शर्मा के काव्य-संग्रह ‘प्रवासी के गीत’ और ‘पलाश-वन’ के अनेक गीतों के रिकॉर्ड बने जो काफी लोकप्रिय भी हुए। दिल्ली में आयोजित एशियाई खेलों का उद्घाटन गीत शुभ स्वागतम् भी आपके द्वारा ही लिखा गया था। इस स्वागत गीत को पंडित रविशंकर ने संगीतबद्ध किया था।
पं. नरेन्द्र शर्मा ने साहित्यिक गीतों के अलावा सैकड़ों हिन्दी फिल्मी गीत लिखे। इनमें अनेक गीत स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर द्वारा गाए गए। इन गीतों को संगीत प्रेमी कभी नहीं भुला सकेंगे. ‘भाभी की चूड़ियाँ’ फिल्म के गीत ज्योति कलश छलके, जो समर में हो गए अमर जैसे गीत प्रमुख हैं। इसी फिल्म का एक अन्य गीत ‘लौ लगाती गीत गाती’ तथा एक अन्य फिल्म का ‘नैन दीवाने, इक नहीं माने, करे मनमानी सजना’ गीत मी अत्यन्त लोकप्रिय हुआ। नाच मन मयूरा, खोल के सहस्त्र नयन, और वही खिली है विजन नयन में चंचल चारु चमेली आदि गीत इनके लोकप्रिय गीत रहे।