
दलहन के क्षेत्र में महिला कृषकों की भूमिका Publish Date : 03/04/2025
दलहन के क्षेत्र में महिला कृषकों की भूमिका
प्रोफसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
दाल, भारतीय थाली का एक अभिनन अंग है। दाल देश में शाकाहारी लोगों के लिए दैनिक प्रोटीन आपूर्ति का एक आसान एवं सस्ता स्रोत है। दालों में लगभग 20-25 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण वर्ष 2011-12 के अनुसार दालें कुल भारतीय आहार एवं इसके साथ ही प्रोटीन सेवन में औसतन 10.4 से 40 प्रतिशत का योगदान प्रदान करती हैं। हमारे देश में मुख्य रूप से चना, अरहर, मूँग, उड़द, मसूर, मटर, लोबिया, खेसारी और मोठ आदि दलहनी फसलों का उत्पादन और उपभोग किया जाता है। दलहनी फसलों के उत्पादन में महिला किसानों का भी योगदान अहम रहता है।
भारत में विभिन्न प्रकार की दालो की माँग की पूर्ति के लिए इनकी फसलों का उत्पादन लगभग 28.83 मिलियन हैक्टर क्षेत्र पर क्षेत्रीय माँग और कृषि की परिस्थितियों के अनुसार किया जाता है। देश निरंतर बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2030 तक दहलन की माँग 32 मिलियन टन तथा वर्ष 2050 तक 39 मिलियन टन तक होने का अनुमान है। इस माँ की पूर्ति करने के लिए अनुसंधान के अग्रणी क्षेत्रों में क्षमता निर्धारण के साथ ही अनुसंधान तथा इनके व्यवसायीकरण में एकीकृत कार्य प्रणाली की आवश्यकता है।
दालों को मुख्य रूप से करी के रूप में पकाकर खाया जाता है और इसके साथ ही विभिनन प्रकार के व्यंजनों को तैयार करने में भी दालों व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हालांकि देश में क्षेत्रीय आधार पर दाल एवं उसके उत्पादों की खपत मेंलोगों की आहार से सम्बन्धित प्राथमिकताओं में भारी भिननता देखने को मिलती है। ऐसे में दालों की खेती और खपत में व्यप्त भारी विविधता ही इस क्षेत्र में उद्यमिता के विकास की अपार सम्भावनाओं के द्वारा खेलती है।
उद्यमिता के विकास से मतलब विभन्न कार्यक्रमों और प्रशिक्षण के माध्यम से उद्यमी ज्ञान और इसके कौशल को बढ़ाना है। उद्यमिता विकास प्रक्रिया, उद्यमियों को बेहतर निर्णय लेने और समस्त व्यवसायिक गतिविधियों के लिए एक अच्छा निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करती है। साथ ही इसका सम्बन्ध एवं प्रक्रिया वांछनीय एवं नवीनतम तकनीकी ज्ञान को प्राप्त करने से भी है। इस पक्रिया के अन्तर्गत वित्तीय, विपणन और प्रबंधकीय विशेषज्ञता एवं उद्यमशीलता आदि के दृष्टिकोण भी शामिल होते हैं।
दलहन के क्षेत्र में दलहन प्रसंस्करण एवं इनका मूल्य संवर्धन, दलहन के बीज का उत्पादन, भंड़ारण और जैविक उत्पादों के निर्माण के क्षेत्र में उद्यमिता की अपार सम्भावनाएं विद्यमान हैं।
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए दलहन प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन के माध्यम से महिला कृषकों के उद्यमिता के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए अहम कदम उठाए गए हैं। भाकृअनुप- भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर की फार्मर फर्स्ट परियोजना के तहत जनपद फतेहपुर के अन्तर्गत परियोजना में शामिल गाँवों में 11 सदस्यीय महिला कृषक समिति ‘नमामी गंगे महिला कृषि उद्योग समिति, खदरा, फतेहपुर’ का गठन 05 अक्टूबर 2020 को किया गया था। संस्थान के वैज्ञानिकों के द्वारा समय-समय पर 11 सदस्यीय महिला कृषक समिति हेतु दलहन के प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन पर आधारित उद्यमिता विकास के लिए अनवरत प्रयास किए जाते रहे हैं।
भारत में दलहन प्रसंस्करण, गेहूँ, और चावल प्रसंस्करण के बाद तीसरे स्थान पर अ ाने वाला खाद्य प्रसंस्करण उद्योग है। दालों की खपत इनका छिलका उतारने के बाद की जाती है जिसे दाल की मिलिंग के नाम से जाना जाता है। दाल की मिलिंग करने से पूर्व बीजपत्रों से बीजावरण को लूज करने के लिए पूर्व-मिलिंग जैसे दाल को पानी में भिगोना, तेल मिलाना और अनाज को गर्म करना आदि उपचार किए जाते हैं।
भूसी और दाल को अलग करने के लिए आमतौर पर निरंतर समीप में स्थित अपघर्षक रोलर्स की सहायता से किया जाता है। दलहन प्रसंस्करण से सम्बन्धित उद्यमिता विकास के उद्देश्य से भाकृअनुप-भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के द्वारा विभिन्न उन्नत तकनीकियां विकसित की गई हैं, जिनमें लघु दाल मिलों का विकास भी शामिल है। इन मिनी दाल मिलों को देश के अनेक भागों में अपनाया जा रहा है।
संस्थान के द्वारा निर्मित यह मिनी दाल न केवल उत्पादों का मूल्यवर्धन करने की क्षमता रखती हैं, बल्कि क्षेत्र की ग्रामीण आबादी को यह उत्पाद उपलब्ध कराकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में भी सक्षम हैं। इसके अतिरिक्त संस्थान के द्वारा विभिन्न मशीनरी जैसे दाल चक्की, बहुउद्देशीय ग्राइंडर, पिजनपी स्ट्रिपर, सेक्शन विनोवर, हॉरिजॉन्टल हैंड चक्की, वर्टिकल हैंड चक्की, दाल मिलिंग से मूल्यवर्धित उत्पाद और उत्पादों का व्यवसायीकरण करने के लिए तैयार किए गए उपकरण हैं।
प्रसंस्करण के अतिरिक्त प्रोटीन और एंटी-ऑक्सीडेंट की प्रचुरता युक्त मिमिलंग उपोत्पाद जैसे बिस्किट बै्रछ, बन, मफिन, केक, इडली, डोसा, सूप एवं दाल प्रोटीन के स्रोत के रूप में अनेक उद्यमियों की आय को बढ़ाने में सफल हो सकता है।
दाल प्रसंस्करण में थोक व्यापारी, संसाधक और खुदरा व्यापारियों की श्रृंखला, उत्पादक की अपेक्षा अधिक लाभ अर्जन करती है। ग्राम्यस्तर पर प्रसंस्करण के अभाव में उत्पादक अपने उत्पाद को कम मूल्य पर बेच देता है, इसलिए ग्राम्यस्तर पर दाल के प्रसंस्करण की अवधारणा अपने आप में अति महतजवपूर्ण है। इसके माध्यम से ग्रामीण उद्यमियों की आय और अन्य ग्रामीणों के लिए रोजगार के अवसरों के अलावा हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्राप्त होगी।
ग्रामीण युवा उद्यमियों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उपयुक्त दाल प्रसंस्करण प्रौद्योगिकयों से ग्रामीणों की आय और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसी क्रम में ग्राम्यस्तर पर दलहन के प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन से सम्बन्धित उद्यमिता कौशल को विकसित करने के उद्देश्य से ‘नमामी गंगे महिला कृषि उद्योग समिति, खदरा, फतेहपुर’ को 80 से 10 फरवरी 2022 के दौरान ‘दलहन प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी’ पर त्रि-दिवसीय अनुभवात्मक प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया था।
इस कार्यक्रम में महिला कृषकों की आय बढ़ाने के लिए दलहन प्रसंस्करण के साथ-साथ दलहन मूल्यवर्धन के लिए भी प्रेरित किया गया था।
इसी प्रशिक्षण कार्यक्रम में संस्थान के वैज्ञानिकों के द्वारा आई.आई.पी.आर. मिनी दाल मिल के संचालन और बेसन के रूप में दालों का मूल्यवर्धन आदि पर व्यवहारिक प्रशिक्षण एवं प्रसंस्करित उत्पादों की ब्रीडिंग और मार्केटिंग आदि के सम्बन्ध में भी जानकारी प्रदान की गई। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान महिला कृषक समूह के द्वारा विश्व दलहन दिवस 10 फरवरी 2022 के अवसर पर मूँग की दाल और बेसन बनाकर, उसकी पैकिंग तथा लेवलिंग कर संस्थान के कृषि व्यवसाय ऊष्मायन इकाई के बिक्री केन्द्र ‘दलहन हाट’ में प्रदर्शन तथा विक्रय किया।
इसके साथ ही महिला कृषक समूह के द्वारा अन्य प्रसंस्करित उत्पादों जैसे- उड़द दाल, चना दाल और अरहर दाल आदि का प्रदर्शन एवं विक्रय भी किया गया। इस प्रशिक्षण प्रोग्राम से मोटीवेट होकर समूह की महिला सदस्यों के द्वारा दलहन प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन के सम्बन्ध में अपने उद्यम स्थापित करने का प्रण भी लिया गया।
ऐसे में महिला कृषकों के द्वारा दलहन के क्षेत्र में अपने उद्यमों को स्थापित करने के प्रयास अत्यंत सराहनीय हैं। आशा की जाती है कि भविष्य में उक्त महिला कृषक समिति दलहन प्रसंस्करण एवं दालों के मूल्यसंवर्धन के क्षेत्र में दलहन उद्यम को और भी अधिक दीर्घ स्तर पर स्थापित करने में सफल होगी और इसके साथ ही अन्य महिलाओं के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बनकर उभरेंगी।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।