TECHNIQUE OF PLANT TISSUE CULTURE      Publish Date : 02/04/2025

                     पादप ऊतक संवर्धन तकनीक

                   (TECHNIQUE OF PLANT TISSUE CULTURE)

                                                                                                           Professor R. S. Sengar and others

पादप कोशिका व ऊतक संवर्धन का आधार : पूर्णशक्तता (Totipotency)

पूर्णशक्तता या टोटीपोटेन्सी शब्द की उत्पत्ति Totipotent (द्विलिंगी) से हुई है। हम जानते हैं कि लैंगिक जनन द्वारा बने बीज स पूर्ण पादप का निर्माण हो सकता है व कायिक जनन विधि में पौधे का एक छोटा भाग भी पूर्ण पादप का निर्माण कर सकता है अर्थात् कोशिका में पुर्नजनित (regenerate) होने की क्षमता प्राकृतिक रूप से पायी जाती है व प्रत्येक कोशिका में वे सभी जीन्स विद्यमान होते हैं जो सिद्धान्त रूप से पूर्ण पादप के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। सजीवों की प्रत्येक कोशिका में उस जीव के सभी लक्षणों को उत्पन्न करने की क्षमता को टोटीपोटेन्सी कहते हैं।

पात्रे तकनीक (in vitro technique) में कोशिकाओं में पुर्नजनन को प्रेरित करना कोई नई प्रविधि नहीं है अपितु इस तकनीक में पादप कोशिका को पुर्नजनन के लिए अधिक उपयुक्त व प्रभावी वातावरण उपलब्ध करवाया जाता है। पात्रे तकनीक या ऊतक संवर्धन का अर्थ है- पौधों के अंगों, ऊतकों व कोशिकाओं को परखनलियों में कृत्रिम संवर्धन माध्यम पर निर्जम परिस्थितियों में संवर्धित करना।

ऊतक संवर्धन तकनीक का विकासक्रम

                                                 

गोटेलेब हैबरलेण्ड (GottilebHabberlandtt, 1902): जर्मन वनस्पतिशास्त्री गोटेलेब हैबरलेण्ड ने लेनियम की पत्तियों सेपृथक्कृत खंभ ऊतक की कोशिकाओं को कृत्रिम संवर्धन माध्यम पर उगाया। ये कोशिकाएं लम्बे समय तक जीवित रहतीहैं परंतु प्रचुरोद्भवन (proliferation) करने में असक्षम रहती है। हालांकि हैबरलैण्ड को इन कार्यों में आगे कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई परंतु उनके कार्यों ने एक नई तकनीक अर्थात् ऊतक संवर्धन को जन्म दिया।

व्हाईट, गाथरे व नॉबेनकुर्ट (White, Gauthert, Nobencourt): व्हाईट (संयुक्तराज्य अमेरिका), गाथरे (फ्रांस) व नॉबेनकुर्ट (फ्रांस) ने उपयुक्त संवर्धन माध्यम का चयन 'कर अनेक पौधों का संवर्धित किया। व्हाईट को संयुक्त राज्य अमेरिका में ऊतक संवर्धन के पिता के रूप में जाना जाता है। ये वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने टमाटर (लाइकोपर्सिकोन) के विलगित मूलाग्रों (excised root tips) को उपयुक्त संवर्धन माध्यम (नोप के पोष माध्यम) पर उगाया। गाथरे ने नोप के पोष माध्यम में अन्य पूरक तत्वों को अत्यन्त कम मात्रा में मिलाकर गाजर का सफलतापूर्वक संवर्धन करवाया। इनकी सफलताओं के मुख्य कारण निम्न हैः

  1. उपयुक्त पादप का चयन
  2. संवर्धित ऊतक के लिए उपयुक्त पोष माध्यम का चयन

इन्हें टमाटर की जड़ों, मूलाग्रों, मेरिस्टेम, एधा के संवर्धन के खोजकर्ता के रूप में जाना जाता है। मूलाग्रों के लिए प्रयुक्त संवर्धन माध्यम में ग्लाइसीन (अमीनो अम्ल), पाइरीडॉक्सिन (विटामिन B.) व निकोटिनिक अम्ल (नायासिन, विटामिन B.) को मिलाना लाभदायक रहता है। सन् 1939 में व्हाईट ने निकोटियाना ग्लाउका व निकोटियाना लैंगसडोरफाई के संकर तम्बाकू ट्यूमर ऊतकों का निर्माण किया।

                                                 

स्कूग व मिलर (Skoog and Miller)- 1950 के दशक में पादपकार्यिकी के क्षेत्रमें अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की गई। यह ज्ञात हुआ कि पादप वृद्धि हार्मोन पूर्णशक्तत कोशिका में गुणन को तीव्र कर देते हैं। स्कूग व सहयोगियों ने ऊतक संवर्धन में साइटोकाइनिन की भूमिका का पता लगाया। तत्पश्चात् अनेक ऐसे रसायनों का पता लगाया गया जो कैलस की वृद्धि में तेजी लाते हैं। सन् 1948 में स्कूग व सूई (Skoog and Tsui) ने पाया कि ऑक्सिन व एडीनिन का योग कैलस वृद्धि व कलिका निर्माण को प्रेरित करते हैं। सन 1955 में, मिलर ने कोशिका विभाजन करने वाले कारक काइनेटिन की पहचान व खोज की। बाद में उन सभी पदार्थों को साइटोकाइनिन नाम दिया गया जिनमें अमीनोप्यूरिन उपस्थित होता है तथा जो काइनेटिन के समान व्यवहार करते हैं। सन् 1957 में स्कूग व मिलर ने पाया कि ऑक्सिन व साइटोकाइनिन का अलग-अलग अनुपात अंग जनन को प्रभावित करता है। काइनेटिन की मात्रा अधिक लेने पर प्ररोह का तथा कम मात्रा लेने पर जड़ का निर्माण होता है। स्कूग ने MS माध्यम के निर्माण में अपना सहयोग दिया।

टोशियो मूराशी (Toshio Murashige):ये विसन्कोसिन विश्वविद्यालय में स्कूग केविद्यार्थी रहे व बाद में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे। इन्होंने स्कूग के साथ MS माध्यम (मूराशी व स्कूग माध्यम) का निर्माण किया।

म्यूर (Muir):जब कैलस के खण्डों को द्रव माध्यम पर स्थानांतरित कर हिलाया जाता है तब कोशिकाएं एकल व समूहों के रूप में पृथक् हो जाती है इसे निलंबन संवर्ध कहते हैं। उपसंवर्धन द्वारा एकल कोशिका को संवर्धित किया जा सकता है। सन् 1953 में म्यूर ने एकल कोशिका के संवर्धन के लिए पेपर राफ्ट नर्स तकनीक का विकास किया।

रीनर्ट (Reinert):इन्होंने सन् 1959 में जड़ कोशिकाओं का संवर्धन कर, कायिक भ्रूण का निर्माण करवाया। युग्मनज भ्रूण के अतिरिक्त अन्य किसी कोशिका से भ्रूण का निर्माण कायिक भ्रूण संवर्धन कहलाता है।

वासिल व हील्डरलैंट (Vasil and Hilderbrantt):इन्होंने सन् 1975 में तम्बाकू मेंएकलकोशिका संवर्धन से संपूर्ण पादप को पुर्नजनित करने की तकनीक का विकास किया। इस तकनीक के विकास के बाद ऊतक संवर्धन तकनीक को क्लोनीय प्रवर्धन के लिए प्रयोग में लाया गया।

कोकिंग (Cocking):प्रोटोप्लास्ट संवर्धन में कोशिका भित्ति की उपस्थिति बाधक होती है। इस समस्या के निवारण के लिए सन् 1960 में कोकिंग ने सेल्यूलेज, पेक्टीनेज एन्जाइम्स की खोज की जो बफर विलयन में उपयुक्त pH पर कोशिका भित्ति को विघटित कर देते हैं जिससे प्रोटोप्लास्ट संवर्धन आसान हो जाता है।

                                                    

गुहा व माहेश्वरी (Guha and Maheswari): भारत में पात्रे तकनीकों की महत्ताप्रोफेसर पी. माहेश्वरी द्वारा स्थापित की गई। उनके कार्यों द्वारा पादप कोशिका, ऊतक व अंग संवर्धन क्षेत्र में अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की गई हैं। सन् 1966 में गुहा व माहेश्वरी ने परागकण व परागकोष के स्पोरोजीनस ऊतक से भ्रूण के निर्माण की तकनीकों का विकास किया।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।