
भारतीय कृषि की समस्याएं और उनके समाधान Publish Date : 30/03/2025
भारतीय कृषि की समस्याएं और उनके समाधान
प्रोफेसर राकेश सिंह सेंगर एवं अन्य
भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुए सात दशक बीत चुके हैं, हाल ही में हमने 78वाँ गणतंत्र दिवस मनाया है। 1947 से अब तक हमारे देश ने प्रत्येक क्षेत्र ने पर्याप्त विकास किया है। आज भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम विश्व के सफलतम अंतरिक्ष कार्यक्रमों में शामिल है, भारतीय सेना विश्व की सबसे ताकतवर सेनाओं में सम्मिलित है तथा भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पाँच सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। अन्य क्षेत्रों में भी भारत नियमित रूप से विकास की नित नई कहानियाँ लिख रहा है।
इन उपलब्धियों के उपरांत भी एक ऐसा क्षेत्र भी है जो आज भी विकास की दौड़ में कहीं पीछे छूट गया है। खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला देश का कृषि क्षेत्र आज भी उस स्थिति में नहीं पहुँच पाया है जिसे संतोषजनक कहा जा सके। इसका परिणाम यह हुआ है कि कृषि पर निर्भर देश के करोड़ों लोग आज भी बेहद अभावों में जीवन जीने के लिए विवश हैं और कई बार यह लोग कृषि के माध्यम से अपनी बुनियादी आवश्यकताएं भी नहीं पूरी कर पाते हैं।
भारतीय कृषि के अपर्याप्त विकास के मूल में कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जिन्हें दूर किये बिना कृषि का विकास संभव नहीं है, ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
1- भारत में अधिकतर किसानों के पास कृषि में निवेश के लिये पूँजी का अभाव/कमी है। आज भी देश के अधिकांश किसानों को व्यावहारिक रूप में संस्थागत ऋण सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। कई बार किसानों के पास इतनी भी पूँजी नहीं होती कि वह कृषि के लिए बीज, खाद और सिंचाई जैसी बुनियादी चीजों का भी प्रबंध भी कर सकें। इसका परिणाम यह होता है कि किसान समय से फसलों का उत्पादन नहीं कर पाते अथवा अपर्याप्त पोषक तत्वों के कारण फसलें पर्याप्त गुणवत्ता की नहीं हो पाती हैं। इसके साथ ही पूंजी के अभाव में किसान को निजी व्यक्तियों से ऊँची ब्याज दर पर ऋण लेना पड़ता है, जिसके चलते किसान की समस्याएँ कम होने के स्थान पर बढ़ती जाती हैं। इस संबंध में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई किसान सम्मान निधि योजना किसानों के लिये काफी मददगार साबित हो रही है। इससे किसानों की कृषि संबंधी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति करने में काफी हद तक सहायता मिल जाती है।
2- भारत के अधिकांश हिस्सों में आज भी सिंचाई सुविधाओं की कमी बनी हुई है। निजी तौर पर सिंचाई सुविधाओं का प्रबंध ऐसे ही किसान कर पाते हैं जिनके पास पर्याप्त पूँजी उपलब्ध होती है, क्योंकि सिंचाई उपकरणों जैसे टयूबवेल स्थापित करने की लागत इतनी होती है कि गरीब किसानों के लिये इस खर्च को वहन कर पाना संभव नहीं होता है। इस प्रकार अधिकांश किसान मानसून पर निर्भर रहते हैं और समय पर वर्षा न होने पर उनकी फसलें खराब हो जाती हैं और कई बार उनके जीवन निर्वाह लायक भी उत्पादन नहीं हो पाता। इसी तरह अधिक वर्षा होने पर या अन्य विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी किसानों की फसलें खराब हो जाती हैं और किसान गरीबी के दलदल में फंसता जाता है।
3- भारत में एक बड़ी संख्या में किसानों के पास बहुत कम मात्रा में कृषि योग्य भूमि उपलब्ध है, हालांकि, इसका एक बड़ा कारण बढ़ती हुई जनसंख्या भी है। इसके परिणामस्वरूप कृषि किसानों के लिये लाभ कमाने का माध्यम न होकर महज जीवन निर्वाह करने का एक माध्यम बनकर ही रह गई है, जिसके माध्यम से वह जैसे तैसे करके अपना और अपने परिवार का निर्वाह कर पाते हैं। भारतीय कृषि क्षेत्र प्रछन्न बेरोजगारी की भी समस्या से जूझने वाला क्षेत्र है।
4- किसानों को अक्सर उनकी उपज की पर्याप्त कीमत नहीं मिल पाती है, इसका एक बड़ा कारण यह है कि किसान अपनी फसलों को विभिन्न कारणों से जैसे ऋण चुकाने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी कम कीमतों पर ही बेचने के लिए विवश होते हैं। जिसके कारण उन्हें हानि का सामना करना पड़ता है।
5- कुछ अन्य कारणों में कृषि में आधुनिक उपकरणों और तकनीकों का प्रयोग न कर पाना, परिवहन सुविधाओं की कमी, भंडारण सुविधाओं में कमी, परिवहन की सुविधाओं में कमी, अन्य आधारभूत सुविधाओं का अभाव तथा मिट्टी की गुणवत्ता में कमी के कारण उपज में आने वाली कमी आदि समस्याएँ भी शामिल होती हैं।
भारत सरकार इस क्षेत्र में सुधारों और किसानों की आय दोगुनी करने के लिये 7 सूत्रीय रणनीति पर काम कर रही है जो कि इस प्रकार हैं-
1- प्रति बूंद-अधिक फसल रणनीति (Per Drop More Crop)- इस रणनीति के तहत सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली पर बल दिया जा रहा है। इससे कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले पानी की मात्रा में कमी आएगी, इससे जल संरक्षण के साथ ही सिंचाई की लागत में भी कमी आएगी। यह रणनीति पानी की कमी वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से लाभदायक रही है।
2- कृषि क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग करने पर बल दिया जा रहा है साथ ही खेतों में उर्वरकों की आवश्यक मात्रा का प्रयोग करने करने के लिये जागरूकता का प्रसार किया जा रहा है जितनी मात्रा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार प्रयोग करना उचित रहता है। इससे मृदा की गुणवत्ता में सुधार होगा साथ ही उर्वरकों पर होने वाले खर्च में भी प्रभावी कमी आएगी। इसके चलते मृदा और जल प्रदूषण में भी कमी आएगी।
3- कृषि उपज को नष्ट होने से बचाने के लिये गोदामों और कोल्ड स्टोरेज पर निवेश को बढ़ाया जा रहा है। इससे उपज की बर्बादी रुकेगी, खाद्य सुरक्षा की स्थिति और मजबूत होगी तथा शेष उपज का अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में निर्यात भी किया जा सकता है।
4- खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से कृषि क्षेत्र में मूल्यवर्धन को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अपार संभावनाएँ निहित है।
5- उपज का सही मूल्य दिलाने के लिये राष्ट्रीय कृषि बाजार के निर्माण पर बल दिया गया है। इससे देशभर में कीमतों में समानता आएगी और किसानों को पर्याप्त लाभ मिल सकेगा।
6- भारत में हर साल अलग-अलग क्षेत्रों में सूखे, अग्नि, चक्रवात, अतिवृष्टि, ओले जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इन जोखिमों को कम करने के लिये वहनीय कीमतों पर फसल बीमा उपलब्ध कराया गया है। हालाँकि इसका वास्तविक लाभ अब तक पर्याप्त किसानों को नहीं मिल पाया है, इसका लाभ अधिकांश लोगों तक पहुँचे इसके लिये समुचित उपाय किये जाने चाहिये।
7- विभिन्न योजनाओं के माध्यम से डेयरी, पशुपालन, मधुमक्खी पालन, पोल्ट्री, मत्स्य पालन इत्यादि कृषि सहायक क्षेत्रों के विकास पर बल दिया जा रहा है। चूंकि देश के अधिकांश कृषक इन चीजों से पहले से ही जुड़े हुए हैं अतः इसका सीधा लाभ उन्हें मिल सकता है। आवश्यकता है जागरूकता, पशुओं की नस्ल सुधार जैसे कारकों पर प्रभावी तरीके से काम किया जाए।
चूंकि देश की अधिकांश आबादी कृषि पर ही निर्भर है अतः देश में गरीबी उन्मूलन, रोजगार में वृद्धि, भुखमरी का उन्मूलन इत्यादि तभी संभव है जब कृषि और किसानों की हालत में सुधार किया जाए। उपरोक्त उपायों को यदि प्रभावी तरीके से लागू किया जाए तो निश्चित तौर पर कृषि की दशा में सुधार आ सकता है। इससे इस क्षेत्र में व्याप्त निराशा में कमी आएगी, किसानों की आत्महत्या रुकेगी, और खेती छोड़ चुके लोग फिर से इस क्षेत्र में रुचि लेने लगेंगे।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।