अधिकतम उत्पादन के लिए आधुनिक त्वरित खेती      Publish Date : 26/03/2025

     अधिकतम उत्पादन के लिए आधुनिक त्वरित खेती

                                                                                                                            डॉ. वीरेन्द्र सिंह गहलान

“मंत्र, यंत्र और तंत्र द्वारा प्रति इकाई भूमि से अधिकतम उत्पादन की वैज्ञानिक पद्धति”

परिचय

कृषि उत्पादन को उच्चतम स्तर तक ले जाने के लिए केवल पारंपरिक तरीकों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। आधुनिक त्वरित खेती (Modern Rapid Farming) एक समग्र वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर मंत्र (ज्ञान एवं नवाचार), यंत्र (स्वचालित कृषि मशीनीकरण) और तंत्र (नीतियां, प्रबंधन एवं प्रणालीगत दृष्टिकोण) के माध्यम से कृषि की उत्पादकता बढ़ाने पर केंद्रित है।

इस पद्धति का उद्देश्य प्रति इकाई भूमि से अधिकतम कृषि उत्पादन प्राप्त करना है। यह लक्ष्य वैज्ञानिक नवाचार, स्वचालित कृषि मशीनीकरण, सटीक संसाधन प्रबंधन, सरकारी योजनाओं एवं नीतियों के सही तालमेल से ही संभव है।

1. मंत्र (Know-How): वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान

कृषि में तेजी से प्रगति करने के लिए ज्ञान, अनुसंधान और नवाचार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कृषि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से त्वरित खेती को अपनाने के लिए निम्नलिखित प्रमुख बिंदु आवश्यक हैं:

(i) तीव्र फसल चक्र (High-Frequency Crop Rotation)

लघु अवधि वाली फसलें: ऐसी फसलें, जिनका जीवन चक्र कम होता है, तेजी से लगाया और काटा जा सकता है। जैसे- मूंग, लोबिया और हरी सब्जियां आदि।

समुदाय आधारित खेती: किसानों के समूह बनाकर क्षेत्रवार फसल चक्र अपनाना।

प्री-नर्सरी एवं समयानुकूल रोपाई: खेत खाली होने से पहले पौध तैयार रखना।

(ii) बहुस्तरीय कृषि (Multilayer Farming)

  • एक ही भूमि पर विभिन्न ऊँचाइयों की फसलें उगाकर कृषि भूमि का अधिकतम उपयोग किया जाता है।

भूमिगत फसलें – अदरक, हल्दी, मूली आदि।

भूमि स्तर फसलें – धनिया, पालक, मेथी आदि।

झाड़ीय पौधे – बैंगन, मिर्च, टमाटर आदि।

ऊपरी स्तर फसलें – पपीता, केला, सहजन आदि।

(iii) सटीक पोषण प्रबंधन (Precision Nutrient Management)

4R सिद्धांत:

Right Source (सही पोषक तत्व स्रोत) – जैविक खाद, माइकोराइज़ा, बायो-स्टिमुलेंट्स आदि।

Right Rate (सही मात्रा) – फसल की वृद्धि अवस्था के अनुसार।

Right Time (सही समय) – विकास चरणानुसार पोषण।

(iv) Right Place (सही स्थान) – जड़ क्षेत्र में ड्रिप सिंचाई से पोषण

2. यंत्र (Automated Farm Mechanization): स्वचालित कृषि मशीनीकरण

कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में आधुनिक कृषि यंत्र और स्वचालित प्रणालियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

(i) स्मार्ट सिंचाई एवं जल प्रबंधन (Smart Irrigation & Water Management)

ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई – जल की बचत और नियंत्रित पोषण आपूर्ति आदि।

स्मार्ट सेंसर आधारित सिंचाई – नमी संवेदनशील सेंसर द्वारा जल प्रबंधन आदि।

(ii) उच्च घनत्व खेती एवं इंटरक्रॉपिंग (High-Density & Intercropping)

उच्च घनत्व रोपण (HDI Farming): फसलों को समीप लगाकर प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक उत्पादन लिया जाता है।

इंटरक्रॉपिंग तकनीक: मुख्य फसल के साथ तेजी से बढ़ने वाली सहायक फसल लगाकर उत्पादन बढ़ाया जाता है।

(iii) स्वचालित कटाई एवं भंडारण (Automated Harvesting & Storage)

मैकेनिकल हार्वेस्टिंग – गेहूं, धान, और मक्का के लिए आधुनिक कटाई मशीनें।

वैक्यूम कूलिंग एवं कोल्ड स्टोरेज – सब्जियों और फलों की गुणवत्ता बनाए रखना।

(iv) नियंत्रित वातावरण खेती (Protected Cultivation & Hydroponics)

ग्रीनहाउस और पॉलीहाउस खेती: तापमान और नमी नियंत्रण कर उत्पादकता बढ़ाई जाती है।

हाइड्रोपोनिक्स और एरोपोनिक्स: बिना मिट्टी के जल आधारित खेती प्रणाली।

3. तंत्र (System Approach & Government Policies): सरकारी नीतियां और प्रबंधन

कृषि क्षेत्र में त्वरित विकास के लिए सरकारी योजनाएं, नीतियां, और बाजार प्रबंधन को सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए।

(i) सरकार द्वारा संचालित योजनाएं एवं नीतियां-

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिए।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): उन्नत बीज और तकनीक के लिए अनुदान।

PM किसान सम्मान निधि: किसानों की आय बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: पोषण संतुलन बनाए रखने के लिए।

(ii) ई-नाम और डिजिटल कृषि विपणन (E-NAM & Digital Agriculture)

E-NAM प्लेटफॉर्म: किसानों को ऑनलाइन बाजार से जोड़कर बिचौलियों को हटाना।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग: किसानों और कंपनियों के बीच दीर्घकालिक अनुबंध।

(iii) फार्म को-ऑपरेटिव्स और एफपीओ (Farmer Producer Organizations - FPOs)

  • छोटे किसानों को संगठित कर सामूहिक कृषि गतिविधियां बढ़ाना।
  • कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग और ब्रांडिंग करना।

लेखक: डॉ. वीरेन्द्र सिंह गहलान, सस्यविद, Ex. Chief Scientist, CSIR-IHBT, Palampur Himachal Pradesh.