जलवायु कार्य योजना की अनदेखी      Publish Date : 12/03/2025

                जलवायु कार्य योजना की अनदेखी

                                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

जलवायु परिवर्तन पर देश-विदेश में लगातार सम्मेलन और संवाद आयोजित किए जा रहे हैं। इसके बावजूद भी अभी तक ऐसी कोई जलवायु कार्ययोजना उपलब्ध नही हो पाई है, जिसके माध्यम से लोगों को जलवायु परिवर्तन के संकट से बचाया जा सके। देश के पूर्व, पश्चिम और हिमालय में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हो रही समस्याओं के विषय पर वैज्ञानिकों की सलाह को गंभीरता से समझना जरूरी है। मौसम विभाग भी सही जानकारी दे रहा है।

फरवरी के अंत से मार्च के प्रथम सप्ताह तक मौसम विभाग के अलर्ट में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के 3000 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भारी बर्फवारी के संकेत दिए गए थे। लेकिन इसके बाद जो सावधानी बरती जानी चाहिए थी, उसमें गैर-जिम्मेदारी की बात सामने आई है। उदाहरण के लिए उत्तराखंड में सीमा क्षेत्र के पहले गांव माणा में सड़क चौड़ीकरण में लगे 55 मजदूरों का हिमस्खलन की चपेट में आना और वह बर्फ के नीचे दब गए। हेली सेवाओं, आईटीबीपी और सेना के 200 जवानों के द्वारा 44 लोगों को बड़ी मुश्किल से रेस्क्यू किया जा सका। यदि मौसम विभाग द्वारा बताई गई सावधानियों के प्रति गंभीरता दिखाई जाती तो इतने लोगों को बचाने में जो ऊर्जा खर्ग हुई, उसकी बचत होती और जिन आठ लोगों की जिंदगी समाप्त हो गई, उन्हें भी बचाया जा सकता था।

बद्रीनाथ के पास स्थित माणा बाईपास के निर्माण में लगे मजदूरों को इस दौरान छुट्टी दे देनी चाहिए थी, क्योंकि इस दौरान 10 हजार फीट की ऊँचाई पर मजदूरों के रहने लायक स्थितियां नहीं है, और उनसे काम भी नहीं करवाया जा सकता। यह समझना जरूरी है कि वर्ष 2021-24 के बीच यहां आसपास हिमस्खलन की घटनाएं हो चुकी हैं। केदारनाथ में वर्ष 2013 की आपदा के बाद से बोराबाड़ी ग्लेशियर से हिमस्खलन की घटनाएं थम नहीं रही है। माणा में जहां सक्दूरों को रात में रहने की व्यवस्था थी, वहां पर पहले भी हिमस्खलन चुका है। अतः ध्यान देना जरूरी है कि वर्षा और बर्फवारी का समय अब बिल्कुल बदल चुका है, जिससे ग्लेशियरों की सतह कमजोर पड़ रही है और शीतकाल के समय में भी तापमान बढ़ रहा है।

दिसम्बर-जनकरी में दोपहर के समय केदारनाथ जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्र में तापमान 12-16 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया जा रहा है। पिछले वर्षों में भी जनवरी में दोपहर का तापमान 20 डिग्री तक पहुंच चुका है। यही स्थिति केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ के ग्लेशियरों की भी रही है, जिसके चलते बेमौसमों बर्फ पिघलने की गति तेजी से बढ़ती जा रही है।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता के अनुसार पहले दिसम्बर-जनवरी में गिरने वाली बर्क शुष्क होती थी, जिसमे हिमस्खलन कम होता था और यह बर्फ ग्लेशियर को पिघालाने की गति को भी कम करता था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मौसम में बदलाव होने से नवम्बर-जनवरी तक बर्फबारी बहुत कम हो गई है। फरवरी-मार्च में पड़ने वाली बर्फ बढ़ते तापमान के कारण जम ही नहीं पाती है। माणा में हिमस्खलन का कारण भी यही बताया जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों से बद्रीनाथ के ग्लेशियरों से लगातार एवलांच की घटनाएं हो रही हैं। वैज्ञानिक एसपी सती ने वर्ष 2021 में चिपको नेत्री गौरा देवी के गांव रैपी के निकट हिमस्खलन की घटना के बाद इस घाटी के संवेदनशील बर्फ वाले इलाके चिन्हित किए थे। जहां हिमस्खलन की आशंका है।

माणा के पास मजदूरों का कैंप भी इसी तरह के क्षेत्र में स्थित था। लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। पुराने समय में में यहां मानवीय आवाजाही कम होती थी। कहा जाता है कि बद्रीनाथ धाम में बर्फ की चोटियों में कंपन न हो, इसलिए मंदिर में शंख नहीं बजता था। लेकिन अब इसी क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां इतनी बढ़ गई है कि बद्रीनाथ मास्टर प्लान के तहत साइक निर्माण में तेज व्यनि करने वाली जेसीबी मशीनों का प्रयोग हो रहा है। अंधाधुंध हवाई सेवाएं जारी हैं। जलवायु नियंत्रित करने वाले वनों का तेवी से क्षरण हो रहा है, जिसका ग्लेशियरों पर सीधा प्रभाव यह रहा है। बद्रीनाथ में नीलकंठ, सनारायण, कंचन जंघा, सतोपंथ, माणा और कुबेर पर्वत स्थित है। अन्य घाटियां भी हैं जो कि बर्फ से ढकी रहती हैं।

यहां जो निर्माण हो रहा है उसका प्रभाव बढ़ते तापमान से सम्बन्ध साफतौर पर नजर आ रहा है। लोग कहते हैं कि सदियों पूर्व बद्रीनाथ मंदिर का जब निर्माण हुआ, तो स्थानीय और लोक विज्ञान के पहलू को ध्यान में रखते हुए मंदिर बनाया गया था। इसी दौरान गंगोत्री के पास हर्षिल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को शीतकाल यात्रा का संदेश देने के लिए पहुंचना था जिसे मौसम के कारण 6 मार्च तक के लिए बदल दिया गया है। हिमालय में भी भारी भूस्खलन के चालते 480 सड़क बंद रहीं और इसके कारण जगह-जगह पर लोगों की मौत हुई। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात बाधित होने के कारण हजारों लोग फसे हैं सो अलग। जलवायु परिवर्तन की ऐसी घटनाएं भविष्य में और बढ़ सकती हैं। इसलिए साल भर में जलवायु का कैलेंडर बनाया जाना चाहिए। पेड़-पौधे जीव-जंतु जल संरक्षण की दिशा में प्रयास करने होंगे। शीतकालीन सैलानी, पर्वतारोही मौसम की अनदेखी न करें। मनुष्य को अपनी विकास की योजनाओं पर नियंत्रण करके प्रकृति को बचाने की दिशा में एकजुट प्रयासों को महत्व देना होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।