बढ़ते तापमान के चलते गेंहूँ और दलहन की चमक में अन्तर      Publish Date : 11/03/2025

बढ़ते तापमान के चलते गेंहूँ और दलहन की चमक में अन्तर

                                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

वेस्ट यूपी के समय से पूर्व गर्म होने और तापमान में होने वाली लगातार बढ़ोत्तरी से किसान एवं कृषि वैज्ञानिक दोनों ही चिंतित हैं। यहद गर्मी का यह हाल रहा तो यह तापमान गेहूँ और दलहन के उत्पादों की चमक को कम कर सकता है और इसका प्रभाव इनके उत्पादन पर भी स्पष्ट तौर से नजर आने वाला है।

                                                       

सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ0 आर. एस. सेंगर के अनुसार देश में पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष लगभग 12 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में रबी फसलों की बुंआई की गई है। इसमें दलहनी फसलों के रकबे में तीन लाख हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्र की वद्वि दर्ज की गई है।

रबी फसलों की बुआई अक्तुबर से दिसम्बर ताह के बीच की जाती है। जनवरी-फरवरी के दौरान के इन फसलों के तैयार होने का समय होता है और इन फसलों की कटाई मार्च से अप्रैल माह के मध्य में की जाती है। रबी मौसम की फसलों में मुख्य रूप से गेहूँ, मसूर, चना, मटर, जौ, सरसों, तिलहन और अलसी आदि की फसलें आती हैं, परन्तु इस बार प्रारम्भ से ही उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में फसलों को शुष्क मौसम का सामना करना पड़ा है। इस बार जनवरी का महीना भी सूखा ही रहा और फरवरी माह के दौरान भी केवल हल्की बूुदाबांदी ही हुई।

                                                          

इसके साथ ही मार्च के पहले दिन बारिश तो हुई, लेकिन इसके बाद मौसम सूखा ही बना रहा और तापमान में निरंतर बढ़ोत्तरी होती रही। निरंतर बढ़ता हुआ यह तापमान रबी की फसलों को क्षति भी पहुँचा सकता है।

कृषि विश्वविद्यालय का प्रयास है कि वह इस प्रकार की प्रजातियों को विकसित करे, जिससे कि भविष्य में किसानों को समस्या का सामना नहीं करना पड़ें। वैज्ञानिकों को प्राथमिकता के आधार पर ऐसी ही परियोजनाओं पर कार्य करना होगा।

                                                                                                  

                                                                                       - डॉ0 के. के. सिंह, कुलपति कृषि विश्वविद्यालय मेरठ।

डॉ0 आर. एस. सेंगर ने बताया कि मार्च की शुरूआत में में लगभग 19 से 22 डिगी सेल्यिस तापमान की आवश्यकता होती है, जिससे पौधों में होने वाली मेटाबॉलिक एक्टिविटीज सही तरीकेे से हो पाती है। इसके बाद ही अच्छा उत्पादन प्राप्त हो पाता है, परन्तु तामापमान में अचानक होने वाली इस वृद्वि के चलते पौधों की मेटाबॉलिक एक्टिविटीज प्रभावित हो रही हैं। इससे उत्पादन कम होने की सम्भावना दिखाई दे रही है।

कच्ची फसल के दौरान गर्मी के बढ़ने से दाने रह जाएंगे पतलेंः उत्तर भारत की फसलों पर इस बार दोहरी मार पड़ रही है। पहले तो इस वर्ष सर्दियों के मौसम में होने वाली बारिश नही हुई और इसके बाद गर्मी भी समय से पहले ही आ गई है।

डॉ0 सेंगर का कहना है कि कच्ची फसल के दौरान अचानक बढ़े इस तापमान के चलते गेहूँ के दाने पतले हो जाएंगे। एक सामान्य फसल के एक हजार दानों में 38 से 45 ग्राम तक वजन होता है, जबकि टर्मिनल हीट के कारण, प्रभावित फसल के एक हजार दानों में 28 से 30 ग्राम तक ही वजन होता है।

30 डिग्री से अधिक है तापमान

वर्तमान में दिन का तापमान 30 डिग्री से ऊपर चल रहा है, जो कि सामान्य से अधिक है तो वहीं अब रात का तापमान भी बढ़कर 15 डिग्री के आसपास पहुँच रहा है। मौसम कार्यालय पर दिन का अधिकतम तापमान 30.6 डिग्री और न्यूनतम तापमान 14.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।। शहर में प्रदूषण का स्तर 101 दर्ज किया गया, जबकि यह गंगानगर में 106, जयभीम नगर में 98, पल्लवपुरम में 99, बेगमपुल क्षेत्र में 105 और दिल्ली रोड़ पर 11 एक्युआई स्तर दर्ज किया गया है।     

    

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।