
क्या है डिजिटल फार्मिंग Publish Date : 10/03/2025
क्या है डिजिटल फार्मिंग
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु
हमारे देश में सुरक्षित पौष्टिक, उत्पादन और खाद्यान्न उपलब्ध कराने के साथ खेती को रासायनिक मुक्त सामाजिक आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से लाभदायक एवं टिकाऊ बनाने के लिए आईसीटी का इस्तेमाल ही करना डिजिटल कृषि कहलाता है। डिजिटल फार्मिंग एक प्रकार का सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी आईसीटी और डाटा परितंत्र है जो खेती को लाभदायक बनाने हेतु समय पर लक्षित सूचना सेवाओं के विकास एवं उनके वितरण का समर्थन करता है।
भारत में कई प्रकार की क्रांतिया आई, और इसी प्रकार से अब डिजिटल खेती भी एक क्रांति है, जिसमें मशीन लर्निंग, जीपीएस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों की मदद से खेती जाती है। यूरोप, अमेरिका और लैटिन अमेरिका जैसे देशों में डिजिटल खेती ने क्रांति ही ला दी है। यहां के किसान इसकी मदद से किफायती और कमाऊ खेती कर रहे हैं। हालांकि यह खेती महंगी होती है, लेकिन यह केवल एक बार के लिए महंगी होती है।
डिजिटल फार्मिंग के अंतर्गत सेंसर रिमोट, सेंसिंग डीप लर्निंग, डाटा मापन, मौसम की निगरानी, रोबोटिक्स, ड्रोन प्रौद्योगिकी, 3डी प्रिंटिंग सिस्टम, इंटीग्रेशन, सर्वव्यापी कनेक्टिविटी, डिजिटल ट्विंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) में विकास को व्यवहार से मिलकर दक्षता एवं पर्यावरण निरंतर का संवर्धित उपयोग कर मृदा, पानी, पौधों एवं पर्यावरण की निगरानी के माध्यम से कृषि उत्पादकता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। कृषि के डिजिटल पारितंत्र में विभिन्न हितधारक सरकार, अनुसंधान, उद्योग, बाजार और सामाजिक नेटवर्क डोमेन आदि शामिल होते हैं।
सुरक्षित, पौष्टिक व किफायती उत्पादन और खाद्यान्न उपलब्ध कराने के साथ खेती को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से लाभदायक एवं टिकाऊ बनाने के लिए आईसीटी का इस्तेमाल करना डिजिटल कृषि कहलाता है। डिजिटल कृषि एक प्रकार का सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) और डेटा पारितंत्र है जो खेती को लाभदायक एवं टिकाऊ बनाने हेतु समय पर लक्षित सूचना, सेवाओं के विकास व वितरण का समर्थन करता है।
डिजिटल खेती एक क्रांति है, जिसमें मशीन, जीपीएस, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी तकनीकों की मदद से खेती की जाती है। यूरोप, अमेरिका, लेटिन अमेरिका जैसे देशों में डिजिटल खेती ने क्रांति ला दी है। यहां के किसान इसकी मदद से किफायती और कमाऊ खेती कर रहे हैं। हालांकि यह खेती मंहगी होती है, लेकिन यह केवल एक बार के लिए मंहगी होती है। डिजिटल कृषि के अंतर्गत सेंसर, रिमोट सेंसिंग, डीप लर्निंग, डेटा मापन, मौसम निगरानी, रोबोटिक्स, ड्रोन प्रौद्योगिकी, 3डी प्रिंटिंग, सिस्टम इंटीग्रेशन, सर्वव्यापी कनेक्टिविटी, डिजिटल ट्विन्स, अर्टीफिशियल इंटेलीजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) में हुए विकास को व्यवहार में लाकर दक्षता एवं पर्यावरणीय निरंतरता का संवर्द्धित उपयोग कर मृदा, पानी, पौधों एवं पर्यावरण की निगरानी के माध्यम से कृषि उत्पादकता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। कृषि के डिजिटल पारितंत्र में विभिन्न हितधारक- सरकार, अनुसंधान, उद्योग, बाजार, सामाजिक नेटवर्क, पारिस्थितिकी डोमेन आदि शामिल होते हैं।
डिजिटल कृषि‘ कृषि के विकास (पहले 3 प्रतिमान- कृषि मशीनीकरण, रासायनिक कृषि और आनुवांशिक विकास-जनित कृषि) का चौथा प्रतिमान है, इसलिए इसे कृषि 4.0 भी कहा जाता है। यह संपूर्ण खाद्य उत्पादन श्रृंखला को प्रभावित करने वाली गतिविधियों की दक्षता का विस्तार, गति और वृद्धि आदि को संवर्धित करती है। कृषि पारितंत्र की मॉडलिंग ने प्राकृतिक संसाधनों के कृषि प्रबंधन पर मौसम पूर्वानुमान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये मॉडलिंग टूल्स कृषि प्रक्रियाओं को समझने व अनुमान लगाने में बहुत मददगार सिद्ध हो रहे हैं। डेटा एनालिटिक्स से इन मॉडलिंग प्लेटफॉर्म द्वारा निर्मित ज्ञान को किसान अनुकूल अनुप्रयोगों से जोड़ने के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है।
खाद्य सुरक्षा, मिट्टी, हवा व पानी की गुणवत्ताः बेहतर आर्थिक प्रतिफलः फसल व पशु उत्पादन की दक्षता और जीवन की गुणवत्ता आदि डिजिटल कृषि के अनगिनत लाभ हैं। डिजिटल खेती न केवल संसाधनों की बर्बादी रोंकती है, बल्कि संसाधनों की दक्षता और धारणीयता को भी बढ़ाती है। कृषि उत्पादकता को बढ़ाती और मृदा के क्षरण को रोकती है। फसल उत्पादन में रासायनिक अनुप्रयोग को कम करती है और जल संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करती है। यह कृषि में निवेशित आगतों की गुणवत्ता, मात्रा और उत्पादन की कम लागत के लिए आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रसार करती है, जिससे अंततः किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव आता है और कृषि की धारणीयता बढ़ती है।
यद्यपि देश में नवाचारी निवेशकों की अभिनव पहलों और स्टार्टअप द्वारा डिजिटल फार्मिंग का विस्तार लगातार बढ़ रहा है। इसके अलावा, किसानों को सही सलाह, डिजिटल सुगमता व आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना-कृषि (एनईजीपी-ए) लांच की है। इसमें 75 घटकों के साथ सेवाओं के 12 समूह हैं। इसका उद्देश्य एकीकृत तरीके से सरकार से किसान (जी2एफ), सरकार से कारोबार (जी2बी) और सरकार से सरकार (जी2जी) कृषि सेवाएं प्रदान करना है। इससे न केवल कृषि विस्तार सेवाओं का दायरा और प्रभाव बढ रहा है, बल्कि समूचे फसल चक्र के दौरान किसानों को बेहतर जानकारी और सेवाएं भी उपलब्ध हो रही हैं। लेकिन इजराइल, नीदरलैंड, अमेरिका, चीन जैसे देशों की तुलना में भारत कृषि में डिजिटल तकनीकों का उपयोग करने में अभी काफी पीछे है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।