कद्दूवर्गीय सब्जियों से भरपूर लाभ      Publish Date : 18/07/2025

                   कद्दूवर्गीय सब्जियों से भरपूर लाभ

                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा

किसी भी खाद्यान्न फसल की तुलना में सब्जियों की खेती से किसान 2 से 5 गुना तक ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं। सब्जियां हरेक रकबे से कम समय में ज्यादा उपज एवं आय लेने के साथ साथ प्रसंस्करण एवं निर्यात के लिए मुनासिब होने के कारण आज भी छोटे एवं मझोले किसानों के बीच काफी फायदेमंद होती जा रही हैं।

आज के समय में हमारे देश में सब्जियों के अंदर रकबे 9.3 मिलियन हेक्टेयर है और उस से कुल सब्जी उत्पादन 163 मिलियन टन है। इस के साथ ही हमारा देश चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सब्जी उत्पादक देश है, परंतु हमारी सब्जी की उत्पादकता 17.3 टन प्रति हेक्टेयर है, जो विकसित देशों की उत्पादकता से काफी कम है। इसके चलते हमारे देश में हर आदमी की हर दिन सब्जी की जरूरत 230 ग्राम है।

                                                        

यदि किसान अपनी खेती में सब्जियों की नई विकसित की गई उन्नत किस्मों, संकर प्रजातियों और सब्जी उत्पादन की उन्नत प्रौद्योगिकी को शामिल करें, तो वे सब्जियों की उत्पादकता एवं उत्पादन को कई गुना बढ़ा सकते हैं।

कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी

कद्दूवर्गीय सब्जियों की बोआई का समय, बीज दर एवं पौध अंतर

सब्जी

बोआई का उचित समय

बीज दर प्रति हेक्टेयर

नाली से नाली की दूरी

पौधे से पौधे की दूरी

लौकी

फरवरी-मार्च, जून-जुलाई

3-5 किलोग्राम

3.5 मीटर

60 सेंटीमीटर

करेला

फरवरी-मार्च, जून-जुलाई

4 किलोग्राम

2 मीटर

50-100 सेंटीमीटर

खीरा

फरवरी-मार्च, जून-जुलाई

2.5-3 किलोग्राम

2.5 मीटर

60 सेंटीमीटर

तरबूज

फरवरी के मध्य से मार्च के पहले सप्ताह में

3.0-3.5 किलोग्राम

3.5 मीटर

75 सेंटीमीटर

खरबूजा

फरवरी के मध्य से मार्च के पहले सप्ताह में

2.0-2.25 किलोग्राम

3.5 मीटर

75 सेंटीमीटर

कद्दू

फरवरी-मार्च, जून-जुलाई

4-6 किलोग्राम

3-4 मीटर

75-90 सेंटीमीटर

तुरई

फरवरी-मार्च, जून-जुलाई

4-5 किलोग्राम

2.5 मीटर

75 सेंटीमीटर

परवल

मार्च-अप्रैल, सितंबर-अक्तूबर

7-10 सेंटीमीटर लंबी जड़ कलम

3 मीटर

100 सेंटीमीटर

कुंदरू

फरवरी-अप्रैल, सितंबर-अक्तूबर

7-10 सेंटीमीटर लंबी जड़ कलम

2.5-3 मीटर

75-90 सेंटीमीटर

परोड़ा

जून-अगस्त

7-10 सेंटीमीटर लंबी जड़ कलम

6 मीटर

75-90 सेंटीमीटर

ककड़ी

फरवरी-मार्च

4 किलोग्राम

3 मीटर

70 सेंटीमीटर

सब्जियों की उपयुक्त किस्में

सब्जी

उन्नतशील किस्में

प्रजातियों की खासीयतें

करेला

पूसा विश्वास

बड़े आकार का लगभग 5 किलो वजन, फसल अवधि-120 दिन, उपज 400 से 425 क्विटल प्रति हैक्टेयर

 

पूसा-संकर-1

बड़े आकार का और ज्यादा उपज देने वाली किस्म, उपज 520 रुपए क्विटल प्रति हेक्टेयर

 

नरेंद अग्रिम

फल छोटे गोल आकार के, गरमी के लिए उपयुक्त, जल्दी फलने लगता है, फसल अवधि 55 दिन

 

काशी हरित

2.5-3 किलोग्राम वजन के फल और उपज 300-350 क्विटल प्रति हेक्टेयर, फसल अवधि-65 दिन

 

अर्का सूर्यमुखी

फल लगभग 1 किलोग्राम वजन का होता है।

करेला

पूसा-संकर-1

फल मध्यम लंबे, बोने के 55 दिन बाद तुड़ाई के लिए उपयुक्त, यह किस्म गरमी के लिए उपयुक्त, उपज 200 क्विटल प्रति हेक्टेयर है।

 

पूसा-संकर-2

यह प्रजाति गरमी एवं बरसात दोनों मौसम में उपयुक्त, उत्पादन क्षमता 120 से 150 क्विटल प्रति हेक्टेयर

 

कल्याणपुर बारहमासी

आईआईवीआर वाराणसी से विकसित, 90 से 100 ग्राम प्रति फल का औसत वजन, उत्पादन क्षमता 200 से 220 क्विटल, यह लंबी है।

लौकी

पूसा सम्प्र प्रोलीफिक लौंग

यह किस्म गोल आकार की होती है।

 

पूसा समर प्रोलीफिक राउंड

यह किस्म गरमी एवं बरसात दोनों ऋतु के लिए उपयुक्त।

 

पूसा संतुष्टि

फल आकर्षक, बेलनाकर, जल्दी फलत वाली, अवधि 55 दिन, औसत उपज 300 क्विटल प्रति हेक्टेयर

 

एनडीबी जी-619

फल हरे, सीधे लंबे होते हैं यह दूर पैकिंग कर ले जाने में आसान, फल तुड़ाई के लिए 55 से 60 दिन में।

 

पूसा संकर-3

फल हरे, लंबे और दोनों ऋतुओं खरीफ और ग्रीष्मकालीन खेती के लिए उपयुक्त।

 

पूसा मेघदूत

फल गौल, अधिक उत्पादन देने वाली और दोनों ऋतुओं के लिए उपयुक्त

 

पूसा मंजरी

फल हरे।

 

पूसा नवीन

ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों ऋतु के लिए उपयुक्त पकने की अवधि 50 से 55 दिन, औसत उपज 155 क्विटल प्रति हेक्टेयर

खीरा

पूसा उदय

20 से 30 सेंटीमीटर लंबे, अच्छी फलत आती है, पहली तुड़ाई 50 दिन बाद, उपज 299 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

पूसा संयोग

फल 20 सेंटीमीटर लंबे व आकर्षक, 50 दिन में तुड़ाई के लिए उपयुक्त, उपज 200 क्विटल प्रति हेक्टेयर

 

पूसा संकर खीरा-1

चूर्णिल आसिता प्रतिरोधी और खरीफ के लिए उपयुक्त, औसत उपज 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर,

 

फले सुवांगी

एक पौधे में 15 से 17 फल आते हैं, 60 दिन में फल देना प्रारंभ, यह दोनों सीजन खरीफ एवं रबी के लिए उपयुक्त, औसत उपज 200 से 225 क्विटल प्रति हेक्टेयर

तुरई

पूसा चिकनी

खूब गुच्छेदार, खरीफ एवं रबी दोनों मौसम के लिए उपयुक्त व औसत उपज 130 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

पूसा नूतन

फल 30 से 40 सेंटीमीटर लंबे, उपज 125 से 150 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

पूसा संकर तुरई-1

बोने के 45 दिन से 50 दिन में फल प्राप्त होते हैं, उपज 150 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

पूसा नगदार

फल 20 सेंटीमीटर लंबा और नया व गुच्छे के लिए उपयुक्त, 65 दिन में फल देना प्रारंभ और औसत उपज 100 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

पूसा तुरई-1

फल लंबे, गहरे हरे व औसत उपज 280 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

पीकेएम-1

फल लंबे, हल्के हरे व औसत उपज 120 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

ककड़ी

कल्याणपुर बारहमासी

फल गोलकार, इनको हरे व औसत उपज 120 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

अर्का शीतल-4

सब्जी के लिए उपयुक्त, औसत उपज 1,050 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

कुदरू

इंदिरा कुंदरु-05

लंबी, हलकी हरे रंग की सब्जी के लिए उपयुक्त व औसत उपज 936 स्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

इंदिरा कुंदरू-35

अगेती किस्म 80 से 90 दिन में पकती है. एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाने के लिए उपयुक्त, औसत उपज 150 से 170 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

खरबूजा

पूसा मधुरस

इस किस्म में फरवरी 11 से 13 फरवरी, औसत उपज 300 से 200 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

पूसा मधुरस

पूसा मधुरस और फल का वजन 500 ग्राम, अधिकतम मीठा होता है, 75 से 80 दिन में पकती है, पैदावार 200 से 250 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

पूसा रसराज

फल गोलकार, सुगंध 13 से 14 फरवरी, सुगंधित मीठा रसराज।

 

दुर्गा मणि

यह शीघ्र प्रजाति है तथा इस किस्म का एक फल तैयार होने में 85 दिन लगते हैं व औसत उपज 300 से 350 क्विटल प्रति हेक्टेयर होती है।

 

दुर्गा बेरी

यह फल में सबसे अच्छी किस्म है, औसत उपज 350 से 450 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

दुर्गा केसर

भंडारण एवं परिवहन क्षमता अच्छी है, सुगंधित, प्रचुरता अधिक है एवं रोग प्रतिरोधी है व औसत उपज 500 से 600 क्विटल प्रति हेक्टेयर होती है।

 

अकाबिक

फल गूदेदार और बीज मुलायम, प्रत्येक गांठ पर फल लगता है व औसत उपज 200 से 250 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

पालक

पूसा ज्योति

यह प्रजाति सिंचाई वाले के लिए उपयुक्त, औसत उपज 300 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

 

डीओएजी-2

डीओएजी-1

यह प्रजाति के पत्तों में हलकी मीठास भरी होती है, दूर के बाजार में भेजने के लिए उपयुक्त और औसत उपज 310 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

खेत की तैयारी

कद्दूवर्गीय फसलें नदी के किनारे की रेतीली मिट्टी में उगाई जाती हैं। भूमि का चयन करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि उस में जल निकास का अच्छा प्रबंधन हो। गुणवत्तायुक्त उपज के लिए भूमि का पीएच मान 6 से 7 होना उत्तम है।

कदूवर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिए कम लागत के पौलीहाउस में पौध उत्पादन उत्तरी भारत के मैदानी भाग में कम लागत के अस्थायी पौलीहाउस में जनवरी महीने में लौकी, करेला और खीरा आदि को उगाया जा सकता है। खरबूजा, तरबूज, कद्द आदि फसलों की नर्सरी तैयार कर जायद मौसम में इन की अगेती फसल ली जा सकती है। पीवीसी पाइप अथवा बांस और 700 गेज की पौलीथिन चादर द्वारा जरूरत के मुताबिक और जगह की प्राप्ति की वजह से किसी भी आकार की झोंपड़ीनुमा आकार को बनाया जा सकता है। इस अस्थायी पौलीहाउस के अंदर का तापमान बाहर के तापमान की तुलना में 6-10 डिगरी सैल्सियस ज्यादा रहता है। पौध को तैयार करने के लिए 15×10 सैंटीमीटर आकार की पौलीथिन की थैलियों में 1:1:1 मिट्टी, बालू और गोबर की खाद भर कर जल निकास की व्यवस्था के लिए सूजे से 4-5 छेद कर लेते हैं। इस के अलावा 5 सेंटीमीटर व्यास के 50 खाने वाले प्रो ट्रे में भी पौध उगा सकते हैं। इन प्रो ट्रे में लगभग 1 सैंटीमीटर की गहराई पर बीज की बोआई कर के बालू की बारीक परत बिछा लेते हैं और फव्वारे की मदद से पानी लगाते हैं। तकरीबन 4-5 सप्ताह में पौधे खेतों में लगाने के लायक हो जाते हैं। जब फरवरी माहमें पाला पड़ने का डर खत्म हो जाए, तो पौलीथिन की थैली को ब्लेड से काट कर हटाने के बाद पौधे को मिट्टी के साथ ही खेत में बनी नालियों की मेंड़ों पर रोपाई कर के पानी लगाते हैं।

इस विधि को अपनाने से किसी भी कदूवर्गीय फसल की खेतों में सीधी बोआई मार्च माह में की जाती है, तो सामान्य पद्धति की तुलना में एक से डेढ़ माह पहले उपज मिलनी शुरू हो जाती है, जिस से किसानों को अपने उत्पाद की अधिक कीमत बाजार में मिलती है और उन के कुल लाभ में इजाफा होता है। इस के अलावा एक डेढ़ माह के समय तक खेत में अन्य फसल का उत्पादन लेने से प्रति इकाई भूमि से सालभर में प्राप्त कुल उपज में भी बढ़वार होती है और किसानों की सालाना आय अधिक होती है।

संतुलित उर्वरकों की मात्रा, देने का समय 

गोबर की सड़ी खाद

उर्वरक की उचित मात्रा

पोटाश

खाद एवं उर्वरक के प्रयोग का समय

अवधि

नाइट्रोजन

फास्फोरस

लौकी, कद्दू, खीरा, तरबूज, खरबूज व ककड़ी

30 दिन प्रति हेक्टेयर

400 किलोग्राम कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट प्रति हेक्टेयर

300 किलोग्राम सुपर फास्फेट प्रति हेक्टेयर

100 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति हेक्टेयर

जब फूल आने शुरू हो जाएं, तो फसल पर किसी भी उर्वरक का प्रयोग न करें।

करेला व तुरई

15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर

158 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर

87 किलोग्राम सुपर फास्फेट प्रति हेक्टेयर

67 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति हेक्टेयर

गोबर की खाद, डीएपी व म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय, एकतिहाई यूरिया बोआई के 20 से 25 दिन बाद व एकतिहाई यूरिया फूल आने के समय दें।

परवल, कुंदरू, परीडा

30 से 35 टन प्रति हेक्टेयर

60 किलोग्राम डीएपी प्रति हेक्टेयर

40 किलोग्राम सुपर फास्फेट प्रति हेक्टेयर

40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति हेक्टेयर

गोबर की खाद, डीएपी व म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय, एकतिहाई यूरिया फरवरी माह में निराईगुड़ाई के बाद प्रयोग करें और उस के 25 दिन बाद बाकी बची यूरिया की मात्रा प्रयोग करें।

कीट प्रबंधनकद्दू का लाल भृंग

लक्षण:यह कीड़ा जनवरीमार्च माह तक बहुत सक्रिय रहता है। इस कीट की सूंड़ी एवं वयस्क दोनों ही पौधों के जमने के तुरंत बाद इस कीड़े से ज्यादा नुकसान होता है, जिस से पौधा सूख जाता है। प्रौढ़ कीट से पत्तियों को अधिक नुकसान होता है और ग्रब पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं।

नियंत्रण के लिए अनुशंसित दवा: फोरेट 10 जी कार्बारिल 50 W.P. या ट्राइजोफास 40 ईसी 1.2 से 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

दवा की प्रति हेक्टेयर मात्रा: 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या कार्बोरिल पाउडर को 1.2 से 1.5 किलोग्राम की दर से छिड़काव करते हैं।

उपयोग करने का समय एवं विधि: पानी में घोल बना कर सुबह या शाम को बुरकाव करना चाहिए। खड़ी फसल में आधिक अतिस्तर आने पर 500 लिटर पानी में घोल बना क