
उन्नति में अवरोध है आलस्य Publish Date : 12/10/2025
उन्नति में अवरोध है आलस्य
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने की अभिालाषा तो प्रत्येक व्यक्ति की होती है, परन्तु सभी लाग सफलता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त परिश्रम एवं पुरूषार्थ नहीं कर पाते हैं। परिश्रम एवं पुरूषार्थ के मार्ग आलस्य सबसे बड़ा अवरोधक बनकर सामने आता है। आलस्य, तो मानव मानव की एक सहज प्रकृति होती है, जिसके मानव जीवन पर अत्यंत नकारात्मक एवं घातक प्रभाव होते हैं।
आलस्य से हमारा आशय, किसी काम को टालना, अनिच्छा पूर्वक किसी कार्य को करने का प्रयास करना और किसी कार्य को समय पर नहीं करना आदि से है। यह एक ऐसी आदत होती है, जो सम्बन्धित व्यक्ति की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा बनती है। आलस्य के विभिन्न कारण हो सकते हैं।
आलस्य का सबसे प्रमुख कारण व्यक्ति की मानसिक अवस्था होती है। कभी-कभी व्यक्ति मानसिक रूप से थकान का अनुभव करता है और कार्यों को पूर्ण करने की ऊर्जा को एकत्र नहीं कर पाता है। इसका दूसर और एक प्रमुख कारण काम की अधिकता अथवा कार्यों के प्रति रूचि में कमी भी हो सकती है। कई बार कोई कार्य हमें बोझिल और नीरस भी लगने लगता है, जिसके चलते उस कार्य को करने में विलम्ब हो जाता है।
इसका एक अन्य महत्वपूर्ण कारक लक्ष्य या उद्देश का अभाव भी हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में कोई स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं होता है तो वह व्यक्ति आलस्य की ओर सहजता से ही प्रवृत्त हो सकता है।
समय बहुमूल्य होता है और आलस्य हमारे मूल्यवान समय को नष्ट कर देता है। यही कारण है कि आलसी व्यक्ति अपने जीवन में कोई भी महत्वपूण उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पाता है। हालांकि यह भी सत्य है कि आलस्य का दुष्प्रभाव केवल सम्बन्धित व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह हमारे समाज और राष्ट्र को भी गहराई से प्रभावित करता है।
एक आलसी व्यक्ति अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र की प्रगति में बाधा बनता है। हमारे समाज में आलसी व्यक्तियों की बढ़ती संख्या देश की समृद्वि एवं विकास को भी बाधित कर सकती है। अतः आलस्य से छुटकारा प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में अनुशासन एवं नियमितता का उचित समावेश करें।
इसके लिए सबसे पहले जीवन के लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करना और उसकी पूर्ति की दिशा में उन्मुख होना अपने आप में महत्वपूर्ण है। समय प्रबन्धन एवं आदर्श जीवनशैली को अपनाना भी महत्वपूर्ण है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।