
भारत की राष्ट्र की अवधारणा मानव के कल्याण के लिए है Publish Date : 07/10/2025
भारत की राष्ट्र की अवधारणा मानव के कल्याण के लिए है
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
विश्व में कुछ लोग राष्ट्र के सिद्धांत को एक संकीर्ण दृष्टिकोण बताते हैं और इसे मानव के बीच संघर्ष का कारण भी मानते हैं। अधिकतर वह सभी इसे संघर्षों का मूल कारण भी मानते हैं। उनका मानना है कि इसी के कारण आधुनिक समय में दबाव और शांति का अभाव पैदा हुआ है। वास्तव में वह नेशनलिज्म की दृष्टि से हमारे राष्ट्र को भी देखते हैं जबकि हमारे धर्मग्रंथ परस्पर सहयोग पर आधारित शांतिपूर्ण जीवन का संदेश देते हुए ही आए हैं।
भारत में इतनी विविधता होने के उपरांत भी, सभी अपनी-अपनी विशेषताओं को बनाए रखते हुए युगों से शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं, यह विश्व के अन्य सभी राष्ट्रों के साथ भी हो सकता है, बशर्ते सभी का उद्देश्य मानव जाति का कल्याण हो। इसका विरोध करने की कोई आवश्यकता नहीं है। हमारे विचारकों ने कहा है कि प्रत्येक राष्ट्र की अपनी विशिष्टताएँ होती हैं और वह एक विशेष दिशा में सोचता है।
प्रत्येक राष्ट्र मानव जाति के विकास और प्रगति में अपने तरीके से योगदान दे सकता है। इसलिए, राष्ट्र की अवधारणा में कोई दोष नहीं है हालाँकि, यह एक सैद्धांतिक दृष्टिकोण है। लेकिन इस रूप में भी, यह हमारे विचारों, कार्यों और कार्यक्रमों के लिए एक प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करता है। यह हमें राष्ट्र के लिए सर्वाेच्च स्तर का समर्पण करने के लिए भी प्रेरित करता है, कोई अन्य चीज़ ऐसा प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकती। इसलिए हम सभी को इस महान उद्देश्य के लिए अपनी बौद्धिक संपदा को एकत्रित करना होगा।
हम सभी जानते हैं कि यह हमारा देश वस्तुतः एक हिंदू राष्ट्र है और इसीलिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम एकता के सूत्र में बंधे हैं। हम सभी का इस पर दृढ़ विश्वास है। यही कारण है कि विचार या धारणा की कोई भी अन्य शक्ति स्वयंसेवकों के मार्ग में बाधा उत्पन्न नहीं कर सकती। इसलिए, हमारे सभी कार्य इसी एक विचार पर केंद्रित हैं। राष्ट्र का विचार हमारे कार्य का केंद्र बिंदु है और हम सभी ने इस लक्ष्य के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता जताई है।
हमें अपने राष्ट्र को विश्व में एक गरिमामय और गौरवशाली स्थान दिलाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ निरंतर प्रयास करना होगा और हमे स्वयं को इस योग्य बनाना होगा। हमें ऐसा सुरक्षित वातावरण बनाना होगा जो हमारे गुणों के निरंतर विकास के लिए अनुकूल हो ताकि उनका उपयोग संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए किया जा सके। यह विचार हमारे मन में निरंतर रहेगा तो हम अपने मन और बुद्धि को नियंत्रित करने और अपने शरीर को अनुशासित करने में सफल होंगे।
इस प्रकार हम अपने राष्ट्र की शक्ति को बढ़ा सकेंगे। यही हमारे संगठन का रहस्य है। यदि हम एक अनुशासित, सुव्यवस्थित और शक्तिशाली संगठन बनाना चाहते हैं, तो हमें संगठन के नियमों का पालन करना होगा। कठोर तपस्या के बिना इस संसार को किसी समस्या से मुक्ति नहीं दिलाई जा सकती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।