असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है दशहरा      Publish Date : 05/10/2025

                                    असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है दशहरा

                                                                                                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

असत्य और अन्याय पर सत्य एवं न्याय की जीत के साथ मानव जीवन में मर्यादा के सन्दर्भों स्थापना का पर्व जिसे दशहरा या विजयदशमी भी कहते हैं। विजयदशमी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम ने लंका के राजा रावण का वध करके अपनी पत्नी सीता को उसके कब्जे से मुक्त करवाया था। इसके उपलक्ष्य में यह दिन विजयदशमी का पर्व के रूप में मनाया जाता है।

दशहरा का पर्व हमें कई सीख देता है। यह एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श मित्र और एक आदर्श स्वामी कैसा होना चाहिए, यह बात हमें राम के चरित्र से सीखने को मिलती है, जिसे हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए। इसीलिए राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। राम सम्मानित इसीलिए हैं कि वह कुलीन वंशीय क्षत्रिय होने के बाद भी शबरी के झूठे बेर खाकर उन्हें सम्मान देते हैं तो निषाद राज को भी वह अपने गले से लगाते हैं। वानर, भालू, कोल, भील, गिद्ध और गिलहरी आदि सभी के साथ एक समान व्यवहार करते हैं।

                                                                      

राम एक कुशल संगठन कर्ता और प्रबंधक भी थे, पिता की आज्ञा के उपरांत वन गमन करने के बाद, जब उनकी पत्नी सीता का हरण हुआ तो राम ने न तो अपने राज्य से मदद मांगी और न अन्य राजाओं से, बल्कि वन में रहने वाले वानर और भालूओं को साथ लेकर ऐसी प्रभावशाली सी तैयार कर डाली, जिसने देवताओं को भी जीतने वाले लंकाधिपति रावण को परास्त कर दिया।

चाहे बाली के अत्याचार से दुखी सुग्रीव हो अथवा रावण से अपमानित विभीषण राम न केवल उनको अभिदान देते हैं, बल्कि उन्हें सम्मानित कर उन्हें वहां का राजा भी बना देते हैं।

कह सकते है कि राम की शरण में जो भी आया उन्होंने उसे नफे नुकसान की परवाह किए बिना संरक्षण देना ही राम का चरित्र है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पद चिन्हों पर हम चल सकें इसकी प्रेरणा लेने के लिए देश में अनेक स्थानों पर राम लीलाओं का मंचन किया जाता हैं। काशी में रामनगर की रामलीला कल्लू और मैसूर के दशहरा देखने देश विदेश से हजारों लोग हर साल आते हैं।

उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम के आसपास आदि शंकराचार्य के द्वारा रामायण के मंचन करने की परंपरा डाली गई थी। दक्षिण भारत में नृत्य शैली में रामलीला के पात्रों द्वारा अभिनय किया जाता है, इसमें कलाकार मुखौटे भी लगते हैं। रामायण को यूनेस्को के द्वारा विश्व धरोहर की अमूर्त श्रेणी में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।