
क्यों पनप रहे हिंसा के बीज Publish Date : 04/10/2025
क्यों पनप रहे हिंसा के बीज
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
शास्त्रों में कहा गया है कि क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। यह न केवल व्यक्ति को अंदर से खोखला कर देता है, बल्कि उसके आस-पास रहने वाले लोगों के लिए भी समस्याएं पैदा करता है। आजकल किशोरों में क्रोध और हिंसा की समस्या तेजी से बढ़ रही है। छोटी-छोटी बातों पर ये अपना आपा खो देते हैं और कई बार तो ऐसे हिंसक कदम उठा लेते हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। हाल के दिनों में भारत में ऐसी कई दुखद घटनाएं सामने आई हैं, जहां किशोरों ने गुस्से में आकर सहपाठियों या शिक्षकों तक की जान ले ली। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है जिस पर गहराई से विचार करना जरूरी है।
क्यों बढ़ रहा है गुस्सा
हाल ही में अहमदाबाद और गाजीपुर में कुछ स्कूल परिसरों में विद्यार्थियों द्वारा हिंसक घटनाओं को अंजाम देने की खबरें सामने आई हैं। जहां मामूली झगड़ों में चाकू व अन्य हथियारों का खुलकर इस्तेमाल किया गया और इस सब में एक विद्यार्थी को जान भी चली गई। इन घटनाओं ने समाज को झकझोर कर रख दिया है और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर हमारे किशोर इतने हिंसक और आक्रामक क्यों होते जा रहे है। किशोरावस्था जीवन का एक नाजुक दौर होता है। इस दौरान शारीरिक और हार्माेनल बदलाव होते हैं, जिसकी वजह से भावनात्मक उथल पुथल आती है।
पढ़ाई का दबाव, करियर की चिंता, माता-पिता और शिक्षकों की अपेक्षाएं और दोस्तों या सहपाठियों का दबाव यह सभी चीजें किशोरों पर मानसिक दबाव डालती हैं। जब यह दबाव असहनीय हो जाता है, तो गुस्सा एक स्वाभाविक प्रतिक्रियां के रूप में सामने आता है। आज की जीवनशैली भी किशोरों में बढ़ते गुस्से के लिए जिम्मेदार है।
संयुक्त परिवारों का टूटना और माता-पिता द्वारा अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण बच्यों को पर्याप्त समय और ध्यान नहीं दे पाना यह भी एक ऐसा ही कारक है जिसके चलते बच्चे अकेलापन महसूस करते हैं और अपनी भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते, जिससे उनके अंदर गुस्सा और निराशा की भावना बढ़ती जाती है।
टीवी और ओटीटी बन रहे उत्प्रेरक
आजकल किशोरों का अपना अधिकांश समय टीवी और ओटीटी प्लेटफार्मों पर बीताते हैं। इन पर दिखाए जाने वाले कई कार्यक्रम हिंसा और नकारात्मकता से भरे होते हैं। इनमें अक्सर किरदारों को गुस्से में तोड़फोड़ करते, अपशब्द बोलते या हिंसक होते हुए दिखाया जाता है। किशोर भी इन दृश्यों से प्रभावित होते हैं और उन्हें लगता है कि गुस्सा व्यक्त करने का यह एकमात्र और सही तरीका है। लगातार हिंसक सामग्री देखने वे हिंसा के प्रति असंवेदनशील होते जाते हैं। कई शोधों में भी यह बात सामने आई है कि हिंसक वीडियो गेम और फिल्में बच्चों को आक्रामक बनाती हैं।
इसके साथ ही आज की इंटरनेटमीडिया व सामान्य जीवन में होने वाली ट्रोलिंग और बुलिंग का भी किशोरों के कोमल मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि वे इसके पीड़ित होते हैं तो वे इस बारे में किसी से खुलकर बात नहीं कर पाते, ऐसे में उनके भीतर भावनाओं का ज्वार उमड़ता रहता है। इससे भी खतरनाक स्थिति तब होती है जब किशोर स्वयं किसी को बुली कर रहे होते हैं, क्योंकि यह उन्हें नकारात्मक तौर पर आत्मविश्वास देता है, ऐसे में वे अपनी खुशी के लिए किसी की हत्या करने में भी तरस नहीं खाते हैं। जैसा कि अहमदाबाद में हुई घटना में सामने आया, जब आरोपी किशोर की चैट में खुलासा हुआ कि उसे हत्या करने का कोई पश्चताप तक नहीं।
ये हैं समाधान
किशोरों में बढ़ती हिंसा की समस्या से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
परिवार की भूमिकाः माता-पिता को बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताना चाहिए। उनसे खुलकर बात करनी चाहिए, उनकी समस्याओं को सुनना और समझाना बहुत महत्वपूर्ण है। घर का माहौल शांत और सकारात्मक होना चाहिए। माता-पिता द्वारा बच्चों को समय नहीं देना, उनकी भावनाओं को न समझना और केवल शैक्षणिक सफलता पर ही जोर देना भी उन्हें भवनात्मक रूप से कमजोर बनाता है। उन्हें सही और गलत के बीच फर्क सिखाने और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में माता-पिता को अहम भूमिका निभानी चाहिए।
स्कूल की भूमिकाः स्कूलों की सिर्फ अकादमिक शिक्षा पर नहीं, बल्कि नैतिक और भावनात्मक विकास पर भी जोर देना चाहिए। छात्रों की भावनाओं को नियंत्रित करने और समस्याओं को शांति से हल करने के तरीके सिखाने चाहिए। इसके सम्बन्ध में भी स्कूलों को अपनी जिम्मेदानी समझनी चाहिए।
मीडिया की जिम्मेदारीः टीवी और ओटीटी प्लेटफार्म सम्बन्धी हिंसा को बंद करना चाहिए और समझना चाहिए कि इससे समाज में हिसां बढ़ती है। सरकार को भी मीडिया में हिंसक सामग्री के प्रसारको नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
सामाजिक जागरुकताः समाज में इस मुद्दे पर खुली चर्चा होनी चाहिए। किशोरों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराई जाए और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना चाहिए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।