
सम्मान और अपमान Publish Date : 01/10/2025
सम्मान और अपमान
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
सम्मान और अपमान हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित करते हैं। जब कोई कठोर वचन बोलता है, तो उसका आघात मन को प्रभावित करता है, तब हम इसे अपना अपमान कहते हैं। यह आघात हमारे आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है और हमें दुखी करता है। जब किसी के द्वारा मानमर्दन किया जाता है तो प्रायः हृदय में उस व्यक्ति के प्रति विचार और भाव प्रदूषित हो जाते हैं। जब कोई सम्मान करता है, तब उसके प्रति हमारा चिंतन संवेदनात्मक और सकारात्मक हो जाता है और इससे मन का मयूर झूम उठता है। दूसरे को सम्मानित करने से वस्तुतः हम अपना ही सम्मान करते हैं, जैसे जब कोई किसी को इत्र-चंदनादि लगाता है, तो उसका भी हाथ सुगंधित हो जाता है। इसी प्रकार दूसरों को सम्मान देने से उनके हृदय में स्नेह-प्रेम के सुगंधित पुष्प खिल उठते हैं।
कठोर शब्द खड्ग से भी तीक्ष्ण होते हैं और हृदय में गहरा घाव कर देते हैं। हमारे जीवन में शब्दों का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों भावों को समुत्पन्न करता है। सुसंग से वंचित प्रायः जो दूसरों पर कटु व्यंगबाण चलाते हैं, वे परोक्ष में अपने अंहकार और मूढ़ता का परिचय ही देते हैं, किंतु जो ‘‘वासुदेव सर्वग्य’’ इस शाश्वत तथ्य को सहज मन, वचन और कर्म में धारण करते हैं, वह सबका समुचित सम्मान करते हैं और यदि कोई अनुचित आचरण होता है, तो उसे नीतिपूर्वक समझा देते हैं, जैसे किसी के मुख पर कालिख लगी हो तो उससे नहीं कहते हैं, बल्कि उसे दर्पण के सम्मुख खड़ा कर देते हैं, जिससे वह स्वयं सचेत होकर उसे मिटा देता है।
हमें अपने शब्दों का चयन सावधानी से करना चाहिए और दूसरों के साथ संवाद करते समय हमें अपनी भावना को नियंत्रित करना चाहिए। जानबूझकर किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से हम स्वयं अपने ही सम्मान को खो बैठेंगे। सम्मान करने से जीवन सुखमय और परस्पर संवेदना आदि से युक्त हो जाता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।