हमारे शास्त्रों का संकेत      Publish Date : 28/09/2025

                             हमारे शास्त्रों का संकेत

                                                                                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

भारत का धर्म किसी पुस्तक या किसी व्यक्ति पर आश्रित नहीं है। हालांकि, सभी धर्मग्रंथों में ईश्वर की एक विशेषता का वर्णन मिलता है कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है। जब सभी ईश्वर की कृति ही हैं तो फिर किसी के साथ भेदभाव का व्यवहार करना क्या ईश्वर का अपमान करना नहीं है?

ईशोपनिषद का प्रथम मंत्र ‘‘ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्याञ्जगत’’ स्पष्ट रूप से कहता है कि इस संसार में सभी जड़ और चेतन में ईश्वर स्वयं विद्यमान है अर्थात सब कुछ ईश्वर की ही रचना है। संपूर्ण वेदान्त का सार इस एक वाक्य में ही निहीत है जिसे समझ कर मनुष्य अपने सभी प्रकार के भ्रम को दूर कर सकता है।

कण कण में व्याप्त ईश्वर के प्रति हमारा व्यवहार ही वास्तविक धर्म है या हम कह सकते हैं कि प्रत्येक चीज में ईश्वर के अस्तित्व को समझकर ही उनके प्रति उचित व्यवहार करना ही मानव का सबसे बड़ा धर्म है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।