
विवेकपूर्ण जीवन: सुख के लिए आवश्यक Publish Date : 26/09/2025
विवेकपूर्ण जीवन: सुख के लिए आवश्यक
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
सम्पूर्ण सजीव और निर्जीव पर्यावरण में, चर को जड़ से श्रेष्ठ माना जाता है। चर प्रजातियों में भी, प्राणी जगत को वनस्पति जगत से श्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि प्राणी जगत, अपने स्वभाव से ही, विभिन्न पर्यावरणीय चुनौतियों से लड़ने में सक्षम है। प्राणी जगत में, मनुष्य को इन संघर्षों में सबसे अधिक सफलता प्राप्त करते देखा गया है।
इसलिए, मनुष्य को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है लेकिन सभी मनुष्य समान नहीं हैं। शक्ति और बुद्धि मनुष्यों में समान रूप से वितरित नहीं हैं। जो लोग इस असमानता के कारणों का पता लगाने में रुचि रखते हैं, वे अपना शोध कर रहे हैं। याद रखने वाली बात यह है कि जो मनुष्य शक्ति और शोध से युक्त है, वही सबसे योग्य माना जाता है।
चूँकि मनुष्य बुद्धि और विवेक से युक्त है, इसलिए वह अन्य प्राणियों की तरह क्रिया-प्रतिक्रिया के आधार पर प्रकृति के प्रहारों से केवल अपनी रक्षा ही नहीं करता बल्कि वह अपनी बुद्धि का प्रयोग करके सभी प्राकृतिक वस्तुओं और शक्तियों का उपयोग अपने सुख के लिए करने का प्रयास करता है। उसके सारे प्रयास उसी सुख को अधिकाधिक प्राप्त करने के लिए होते हैं। वह केवल खाने-पीने और प्रजनन द्वारा अपनी संतानों की वृद्धि करने से संतुष्ट नहीं होता। वह अधिकाधिक सुखों की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करता रहता है।
ये प्रयास उसके सुखों की खोज की प्रवृत्ति को जन्म देते हैं। वह शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक आदि विभिन्न प्रकार के सुखों का अनुभव करता है। उसके मन में व्यक्तिगत सुख के साथ-साथ समाज के कल्याण का भी विचार उत्पन्न होता है। यह आम धारणा है कि लोग सम्पूर्ण समाज के सुख के लिए अपने व्यक्तिगत सुखों का त्याग करने में भी आनंद का अनुभव करते हैं। जो लोग इस प्रकार सोचते हैं, उन्हें बुद्धिजीवियों में सर्वोच्च सम्मान प्राप्त होता है।
कहा जाता है कि अच्छे-बुरे में भेद करने की बुद्धि और विवेक हमारे सभी कार्यों को नियंत्रित करें। निःसंदेह, यह विवेक हमारा मार्गदर्शन करे और हमें गलत मार्ग चुनने से रोके। क्या सही है और क्या गलत, किसका अनुसरण करना चाहिए और किससे बचना चाहिए, यह तय करना विवेक का अधिकार क्षेत्र है।
लेकिन विवेक की परीक्षाएँ क्या हैं? कहा जाता है कि नित्य और अनित्य, महत्वपूर्ण और महत्वहीन, सत्य और असत्य के बीच का अंतर जानना और नित्य, महत्वपूर्ण और सत्य का चुनाव करना तथा जो अनित्य, महत्वहीन और असत्य है, उसे अस्वीकार करना ही विवेक का सच्चा कार्य है। इसी के माध्यम से सर्वोच्च सुख प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए, यह विचार करना लाभदायक है कि हमारे जीवन में नित्य, महत्वपूर्ण और सत्य क्या है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।