देश के विभाजन का सपना देखने वाले कम्युनिस्ट      Publish Date : 18/09/2025

            देश के विभाजन का सपना देखने वाले कम्युनिस्ट

                                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी और जापान के विरुद्ध जब सोवियत रूस ने इंग्लैंड और अमेरिका से हाथ मिला लिया तब भारत के कम्युनिस्टों का रुख भी बदल गया। अभी तक जो साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ने की बात कर रहे थे वह भारत के 16 टुकड़े करने और उसे साम्यवादी बनाने के सपने देखने लगे थे।

भारत के केवल दो टुकड़े ही नहीं बल्कि अलग-अलग 16 टुकड़े होने चाहिए, इसके पक्ष में लेख लिखे जाने लगे भाषण दिए जाने लगे। साथ ही यह नहीं होने की स्थिति में अंग्रेजी साम्राज्य बना रहे ऐसी मंशा कम्युनिस्ट नेताओं की दिखाई देने लगी, और इसके लिए वे प्रयास भी करने लगे। हिंदुओं को लोकलाइज करना और मुसलमानों को ग्लोबलाइज करने की नीति इनके द्वारा चलाई जाने लगी।

इस समय कम्युनिस्टों को मुस्लिम लीग भारत की प्रमुख पार्टी के रूप में दिखाई देती थी जिसका विचार उन्हें उचित लगता था और वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा सांप्रदायिक दिखाई देती थी जिसका सभी प्रकार से विरोध करते हुए यह थकते नहीं थे।  कम्युनिस्टों की किसी एक सभा में जब एक नवयुवक ने कहा कि यदि हिंदू धर्म के रूप में अफीम है तो कम्युनिज्म को साइनाईट की गोली क्यों नहीं कहा जाए।

इस पर यह RSS वाला है ऐसा कहते हुए उसकी पिटाई की जाती है और वही लोग मुस्लिम लीग के गुंडों के साथ समर्थन में दिखाई देते हैं जो तत्कालीन पंजाब में हिंदुओं का नरसंहार कर रहे थे।

कम्युनिस्टों को इस बात की कोई चिंता नहीं थी कि भारत अंग्रेजों का गुलाम रहेगा या भारत के टुकड़े हो जायेंगे। इसके विपरीत उनकी चिंता तो यह थी कि नवयुवक संघ के साथ क्यों जुड़ रहा है, क्योंकि वे यह जानते थे कि संघ से जुड़ने वाला युवक राष्ट्रीय विचारों का हो जाता है।

वह भाषा प्रांत के संघर्ष को दरकिनार करता हुआ राष्ट्रीय चेतना ले कर भारत के लिए कार्य करता है और यही उनके मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है।

भारत राष्ट्र के शत्रुओं की विशेषता यह है कि उनका कोई पक्ष नहीं है न साम्यवादी न साम्राज्यवादी, वे किसी के साथ कभी भी कहीं भी जुड़ सकते हैं केवल उनका एक ही पक्ष है भारत के विरोध का, भारत को कमजोर करने का। ध्यान रखने की बात यह है कि यह मानसिकता आज भी जीवित है जिसका उत्तर केवल राष्ट्रीय शक्तियां हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।