
राष्ट्रीय एकता की पहचान है हिंदी Publish Date : 15/09/2025
राष्ट्रीय एकता की पहचान है हिंदी
प्रोफेसर आर एस सेंगर
हमारे पूरे देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिससे हमारे देश में ही नहीं विदेशों में भी हिंदी आगे बढ़े। विविधता से भरे इस देश में हिंदी ने अपनी उपयोगिता प्रमाणित की है। इसके साथ ही हिंदी राष्ट्रीय एकता और पहचान का प्रतीक है।
विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने के साथ ही यह समृद्धि साहित्य और परंपराओं को भी सजाती है। हिंदी में देश के विकास के महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। अब यह सिर्फ हिंदी भाषियों की भाषा नहीं रही बल्कि गैर हिंदी भाषी क्षेत्र के साथ विदेश में भी सम्मानजनक स्थान बना लिया है। भाषा के प्रभाव क्षेत्र में सृजन, संस्कृति, संस्कार एवं साहित्य के निर्झर बन उगते बढ़ाते हैं। अगर यह उर्वरक क्षेत्र महाभारत कालीन हो तो भाषा यहां गंगोत्री बनकर निकल पड़ती है।
खड़ी बोली की जन्म स्थली मेरठ के शब्द शिल्पियों ने अपनी रचनाओं से विश्व के साहित्य संसार को प्रकाशित किया है। आजादी का गर्वित पल हो या माया नगरी की चकाचौध में भी मेरठ के कलमकारों ने हर मंच को चकित किया है।
भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं बल्कि आत्मा की ध्वनि और संस्कृति का स्पंदन होती है। उत्साही और अपेक्षाकृत कम संतोषी युवा पीढ़ी अब हिंदी साहित्य में आनंद और आत्मिक शांति खोज रही है। हिंदी साहित्य की बसावट भावनाओं की नदी के किनारे आकार लेती है, जिसमें डुबकी लगाकर युवा मन रचना क्षेत्र में नई ऊर्जा के साथ उभरता है। कविता और कहानी की बुनावट और उपन्यास का प्रभाव उनकी व्यवहारिक व्यवहारिकी को अधिक व्यापक बनाती है।
यह साहित्य संसार उन्हें केवल शब्दों का सौंदर्य दिखता है बल्कि जीवन के गुण रहस्य से भी साक्षात्कार करवाता है। हिंदी साहित्य का सौंदर्य उसकी सरलता में नहीं उसकी गहराई में निहित है। यहां तुलसी की करुणा है, सूर्य का माधुर्य है, प्रेमचंद की यर्थातता है, महादेवी की कोमलता है और निराला की विद्रोही पुकार है। यही विविधता युवा मन को आकर्षित कर रही है। वे कविता पढ़ते हैं तो शब्दों में संगीत पाते हैं, जब कहानी सुनते हैं तो जीवन की झलक को देखते हैं और जब उपन्यास में डूबते हैं तो विचारों का अनंत आकाश उनके सामने खुल जाता है।
निश्चय ही युवाओं में हिंदी साहित्य के प्रति यह बढ़ता रुझान एक नव प्रभात है। एक ऐसा कल जो बताता है कि साहित्य की लौ कभी मंद नहीं पड़ती। आज के युवा उसे और भी तेजस्विता से आगे बढ़ा रहे हैं। नई पीढ़ी के रचनाकारों के बढ़ते कदम से आने वाले समय में हिंदी और तेजी से आगे बढ़ेगी। निज भाषा उन्नति है सब उन्नति को मूल भारतेंदु हरिश्चंद्र की यह पंक्तियां आज हिंदी के संदर्भ में प्रासंगिक बनती जा रही है।
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की निदेशक ट्रेंनिंग आफ प्लेसमेंट डॉक्टर आर. एस. सेंगर ने बताया कि हिंदी अब विकास की भाषा है, पूंजी की भाषा है और बाजार की भाषा है। करोड़ों लोगों के संवाद की भाषा बन चुकी है। कोई भी देश अपनी भाषा के माध्यम से ही तरक्की करता है। ऐसे में हमें अपने सभी कार्य अपनी मातृभाषा में ही करने चाहिए।
भारतीय ज्ञान परंपरा में हिंदी भाषा का योगदान अहम है। हिंदी भाषा के वैश्विक परिदृश्य पर चर्चा होनी चाहिए साथ ही अन्य क्षेत्रीय बलियो के महत्व पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
भारत विविधता वाला देश है आधुनिकता वैश्वीकरण और तकनीकी विकास के इस दौर में अंग्रेजी बोलना भले ही प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाने लगा हो लेकिन यह सत्य है कि हिंदी आज भी भारत की आत्मा संस्कृति और आम जन की पहचान है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा मानते हुए 1918 में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में इसे भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का समर्थन किया।
उनका विचार था कि जब तक जनता अपनी भाषा में संवाद नहीं करेगी तब तक लोकतंत्र मजबूत नहीं बन सकता। देश की आजादी के बाद संविधान सभा में 12 सितंबर 1947 को गोपाल स्वामी महेंद्र ने हिंदी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा। हिंदी केवल एक भाषा नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति लोग जीवन और सामाजिक संवेदना की वाहक है।
यह भाषा विविधता से भरे भारतीय समाज को जोड़ती है। आज हिंदी न केवल भारत के विभिन्न राज्यों में बोली जाने वाली भाषा है बल्कि फिजी, मॉरीशस, सूर्यनाम, नेपाल, त्रिनिदाद, गोहाना, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और ब्रिटेन सहित दुनिया के कई देशों में भारतीय प्रवासी समुदाय द्वारा इसका सम्मान किया जाता है। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र में भी हिंदी को लेकर चर्चा होती रही है और उसे वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाने का प्रयास जारी है।
हिंदी की यह वैश्विक पहचान उसकी सरलता वैज्ञानिक व्याकरण समृद्धि साहित्य और व्यापक उपयोगिता के कारण संभव है। यही कारण है कि हिंदी दिवस केवल औपचारिक आयोजन नहीं बल्कि भाषा के माध्यम से आत्म गौरव और राष्ट्र निर्माण का पर्व बनता जा रहा है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।