
भारत के नव निर्माण में हमारी सक्रिय भूमिका Publish Date : 13/09/2025
भारत के नव निर्माण में हमारी सक्रिय भूमिका
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
समय के साथ साथ सब कुछ बदलता रहता है, कुछ नया निर्माण होता रहता है इसे ही प्रगति कहते हैं। लेकिन जिसे हम नया निर्माण कहते हैं वह वास्तव में नया नहीं है बल्कि किसी का बदला हुआ स्वरूप है। ईंट सीमेंट लोहा जैसे वस्तुएं जब एकत्र आ कर अपना स्वरूप बदलती हैं तो नया भवन बन जाता है। यह नई रचनाएं बनना ही समय की गति है, हमे तो केवल यह प्रयास करना है कि यह रचनाएं लोक कल्याण और सृष्टि के हित में ही हों।
कुम्हार के चाक पर मिट्टी के बर्तनों का निर्माण वास्तव में वह डंडा करता है जिसे कुम्हार थोड़ी देर तक घुमाता है। लेकिन उस बर्तन को अच्छे घड़े में बदलने के लिए कुम्हार को हाथ लगाना होता है इसी से तय होता है कि वह घड़ा कितना सुंदर बनेगा। मनुष्य जिस घड़े को केवल चाक और डंडे के भरोसे छोड़ेगा वह घड़ा संभवतः उपयोग की वस्तु भी नहीं बनेगा। जीवन भर नवनिर्माण में मनुष्य की सक्रियता ही यह तय करती है कि उसके जीवन की सार्थकता कितनी रही है।
यह सक्रियता यदि स्वार्थ से प्रेरित रहे तो नव निर्माण के बाद भी विध्वंस दिखाई देगा यदि यह परमार्थ से प्रेरित रही तो सर्वत्र सृजन ही दिखाई देगा। हमे हमारे पूर्वजों ने सृजन का मार्ग दिखाया है, विध्वंस की एक सीमा है जबकि सृजन की कोई सीमा नहीं है इसलिए सृजन के मार्ग पर बढ़ते हुए परम आनंद की अनुभूति करना हमे जिस हिंदू परम्परा से प्राप्त हुआ है लोकहित में उसका संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।