शब्दों का भाषाई रूपांतरण      Publish Date : 26/08/2025

                        शब्दों का भाषाई रूपांतरण

                                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

आज कल अपने देश में भाषाओं को ले कर कुछ राजनेताओं के द्वारा विवाद उत्पन्न किए जा रहे हैं, जबकि सभी भारतीय भाषाएं किसी भी शब्द की वही मूल भावना प्रस्तुत करती हैं। लेकिन उन भाषाओं का क्या जहां शब्द की भावना और उद्देश्य ही बदल दिए गए? जैसे धर्म को अंग्रेजी रूपांतरण में रिलीजन कहा जाने लगा। क्या धर्म और रिलीजन की मूल भावना एक ही है? जी नहीं बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि धर्म तो शाश्वत है, धर्म सबको शांति देने वाला है, सभी परिस्थितियों में स्वीकार करने योग्य जो है वह धर्म ही है, धर्म कभी भी कर्तव्य के आड़े नहीं आता बल्कि कर्तव्य के लिए सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाला धर्म ही होता है।

वहीं रिलीजन तो मात्र एक पुस्तक एक देवता और एक प्रकार की उपासना पद्वति और वह भी जो अन्य सभी पुस्तकों, देवताओं और उपासना पद्धतियों का तिरस्कार करने वाला एक शब्द है। ऐसे अनेकों शब्द हमारे न केवल प्रचलन में आ गए हैं बल्कि जो हमारे मूल स्वभाव के विपरीत भी हैं हम उनका भी उपयोग करने लगे हैं। अब आप सेकुलर को ही ले लीजिए, पश्चिम के देशों में चर्चों के आपस के झगड़े ने इस शब्द को जन्म दिया और कहा कि शासन सेकुलर होना चाहिए, इससे प्रेरित होकर हमारे नेताओं ने अपनी अज्ञानता और विदेशी षडयंत्रों के चलते अपने संविधान तक में इस शब्द को सम्मिलित कर दिया, जिसका अपने देश अपने शासन तंत्र में कोई औचित्य ही नहीं था।

पश्चिम के लोग सेकुलर बन कर जो प्राप्त करना चाहते थे, हमारे धर्म के स्वभाव में वह पहले से ही विद्यमान है। एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति का अर्थ है कि सभी मार्गों का सम्मान करें क्यों कि यह सब ईश्वर तक पहुंच सकते हैं, जबकि सेकुलर का अर्थ बन गया है कि सभी मार्गों का तिरस्कार करो। हम सर्वसमावेशी की परंपरा वाले लोग सर्व तिरस्कार की भावना वाले शब्दों को भी अपने साथ ही ले कर चल रहे हैं। जो भाषा जिस प्रकार के विचार के लोगों के द्वारा विकसित की गई है उसके शब्दों की शक्ति उसी विचार को पोषित करते है।

भारत की सभी भाषाएं भारतीय विचार को व्यक्त और पोषित करती हैं इसलिए भारतीय भाषाओं का आपस में कोई भी द्वंद नहीं है, केवल कुछ राजनेता जिनकी राजनीति का आधार क्षेत्रवाद, राज्यवाद है वे ही इस प्रकार के विवाद को जन्म देते हैं और ऐसे लोगों के चक्कर में बाबा साहब द्वारा दिए गए हमारे संविधान में भी छेड़छाड़ कर सेक्युलर और सोशल जैसे शब्द जोड़ दिए गए हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।