भारत की वैश्विक स्वीकार्यता में वृद्वि      Publish Date : 25/08/2025

               भारत की वैश्विक स्वीकार्यता में वृद्वि

                                                                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

10 वर्ष पूर्व 21 जून 2015 को योग दिवस के रूप में मनाया जाना घोषित करना, इस शताब्दी की एक ऐसी घटना है जो विश्व में भारत की आवश्यकता और स्वीकार्यता दोनों का प्रमाण बन चुकी है। अब प्रश्न यह है कि जिस पश्चिम ने आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में बहुत अधिक प्रगति कर ली है उसे आज भारत के योग के प्रस्ताव को स्वीकार करने की मजबूरी क्या रही होगी? पश्चिम के विज्ञान का चिंतन है रोग दूर करने की औषधियां बनाने और बेचने का, जबकि भारत का चिंतन है मनुष्य को आरोग्य प्रदान करने का।

                                                   

इस प्रकार योग न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि यह मन और मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखता है। आज मानव केवल शरीर की बीमारियों से ही परेशान नहीं है बल्कि जब विश्व भर में मनुष्यों के द्वारा अपने निहित स्वार्थ के वशीभूत हो कर अमानवीय व्यवहार बढ़ते जा रहे हैं, जिसका दुष्परिणाम केवल मनुष्य ही नहीं अपितु संपूर्ण प्रकृति को भुगतना पड़ रहा है।

ऐसे में उस ज्ञान और विज्ञान की आवश्यकता बढ़ जाती है जो मनुष्य को सब प्रकार से आरेग्य और स्वस्थ रख सके। फिलहाल वर्तमान विश्व में इसका स्रोत केवल और केवल भारत ही है। आज योग दिवस मनाते हुए भारत के गौरव की अनुभूति तो हो ही रही है साथ ही ‘‘सर्वे संतु निरामया’’ की अपनी भूमिका निभा पाने की संतुष्टि भी हम सभी भारतीय जन अनुभव कर रहे हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।