देश का शक्तिशाली होना ही एक मात्र विकल्प      Publish Date : 24/08/2025

         देश का शक्तिशाली होना ही एक मात्र विकल्प

                                                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

इस धरती पर उपलब्ध राष्ट्रों के बारे में हमारा अनुभव हमें बताता है कि कोई भी राष्ट्र पूर्णतः स्वतंत्र नहीं है। प्रत्येक देश किसी न किसी रूप में दूसरे देश से जुड़ा हुआ है। उनके बीच कई तरह के आदान-प्रदान होते रहते हैं। परिणामस्वरूप, विभिन्न प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।

परिस्थितियों के अनुसार एक-दूसरे के साथ व्यवहार करने के तरीकों पर गहराई से विचार करना आवश्यक है। जब हम दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों को देखते हैं, तो हम पाते हैं कि उनमें से कुछ में देश मजहब के आधार पर, कुछ में राष्ट्रीयता के आधार पर, जबकि कुछ में दोनों के आधार पर एक साथ आए हैं।

पश्चिमी देशों में मुसलमानों के साथ-साथ ईसाइयों के भी कई स्वतंत्र राज्य हैं और आज भी उनके भीतर विस्तारवाद अच्छी तरह से जागृत है। वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे प्रयासों में लगे हुए हैं। उनके साथ हमारे संबंध शत्रुतापूर्ण या मित्रवत हो सकते हैं। इसका दुखद पहलू यह है कि देशों के विस्तारवादी इरादों का समर्थन करने वाले उनके लोग हमारे देश में भी रह रहे हैं।

चीन हमारे देश के उत्तर में है और जापान उससे भी दूर है। दक्षिण-पूर्व में कुछ छोटे-छोटे राष्ट्र हैं, जो खुद को गुलामी से मुक्त करने के बाद की कोशिश में लगे हैं, जो खुद पश्चिम में पूंजीवादी और लोकतांत्रिक देशों के समूह का एक शक्तिशाली सदस्य है। हमारे पड़ोसी म्यांमार (ब्रह्मदेश) के साथ हाल तक बहुत करीबी संबंध थे। दक्षिण में स्थित श्रीलंका वास्तव में हमारे देश का एक अविभाज्य अंग है, लेकिन वह हमारे बहुत निकट नहीं है।

वहीं उत्तर में नेपाल और भूटान हिंदू राष्ट्र के रूप में हमारे साथ घनिष्ठ संबंध रखते थे लेकिन विगत वर्षों में वहां की परिस्थितियाँ भी बदली हैं। इधर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की परिस्थिति से तो हम सब परिचित ही हैं। चारों तरफ दृष्टि दौड़ाने के बाद यह ध्यान में आता है कि भारत के पास शक्तिशाली होने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं है।

विश्व के वे सभी देश जो बड़ी ताकतों का शिकार रहे या हो रहे हैं उन सबके भारत का शक्तिशाली होना रास आ रहा है क्योंकि उन्हें यह पता है कि भारत की शक्ति सर्वे भवन्तु सुखिनः का व्यवहार करती है। जो तथाकथित बड़ी ताकतें हैं उनके भीतर से भी एक आवाज उठती हुई सुनाई देती है कि भारत का शक्तिशाली होना आवश्यक है क्योंकि उन देशों की बड़ी ताकतों ने उन्हें अर्थात उनके नागरिकों को भी सुख प्रदान नहीं किया है क्योंकि उनके पास भारत जैसा श्रेष्ठ ऋषियों द्वारा प्राप्त पारंपरिक ज्ञान और चिंतन है ही नहीं। हमे किसी पर निर्भर रहे बिना अपनी सुरक्षा करनी है और साथ ही अपनी शक्ति के आधार पर विश्व को अभय प्रदान करना है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।