लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र का ही मजाक      Publish Date : 12/08/2025

            लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र का ही मजाक

                                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

लोकतंत्र में मतदान एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है जिसके कारण इस तंत्र में सभी को सहभागिता का अवसर प्राप्त होता है, इसके आधार पर ही लोकतांत्रिक निर्णय भी होता है। जब एक वोट से ही निर्णय बदल सकता हो तो ऐसे में मतदाता सूची में पारदर्शिता होना अत्यंत आवश्यक है।

दुर्भाग्य से अनेक चुनावों में वे लोग भी मतदाता बने हुए हैं जो अब इस संसार में हैं ही नहीं है और कुछ लोग योजना पूर्वक एक से अधिक स्थान पर मतदाता है। जहां एक वोट ही अपने आप में बहुत ताकतवर है वहीं किसी एक विधानसभा में ही मतदाता सूची में ऐसे हजारों नाम लोकतंत्र के निर्णय को प्रभावित कर रहे हैं। कहीं कहीं तो ऐसे नामों की संख्या किसी एक समुदाय या एक प्रकार के लोगों की अधिक दिखाई देती है जिससे यह समझ में आता है कि मतदाता सूची के सही सत्यापन न होने के कारण कुछ राजनेता या पार्टियां अपने फायदे के लिए इसे हथियार की तरह प्रयोग कर रहे होंगे।

                                                        

आज जब चुनाव आयोग पारदर्शिता की दिशा में प्रयास कर रहा है तब उसकी सराहना करने के बजाय कुछ दल और उनके लोग इसका विरोध कर रहे हैं। आश्चर्य यह है कि विरोध प्रदर्शन के लिए जो नारे उन्होंने तय किए हैं वह लोकतंत्र की रक्षा के संदर्भ में हैं। वास्तव में यह लोग लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि लोकतांत्रिक पद्धति में अपने द्वारा किए गए छेद को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। लोकतंत्र की रक्षा केवल वही व्यक्ति या समूह कर सकते हैं जो लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को पारदर्शी बनाने के पक्षधर हैं।

जहां अनेक चुनाव परिणामों में 1 प्रतिशत लोगों के इधर या उधर हो जाने मात्र से ही परिणाम पूरी तरह बदल जाते हैं वहीं एक राज्य की मतदाता सूची में 1 प्रतिशत से अधिक नाम इस प्रक्रिया में सूची बाहर हो गए हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।