परम सत्य हममें ही विद्यमान हैं      Publish Date : 07/08/2025

                 परम सत्य हममें ही विद्यमान हैं

                                                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

संघ का अंतिम लक्ष्य क्या है, जिसके लिए संगठन निर्माण के अथक प्रयासों से इतनी तीव्र प्रेरणा मिली है? संघ का अंतिम लक्ष्य है कि पूरा समाज ऐसी स्थिति में पहुँचे जहाँ प्रत्येक जन एक सशक्त और अनुशासित समाज की आदर्श और उत्साही इकाई बन जाए। यह कुछ दिनों या कुछ वर्षों में हासिल नहीं किया जा सकता था, बल्कि यह एक लंबी 100 वर्षों की यात्रा चली है जो तीव्र गति से आगे भी जारी है।

इसके लिए सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों समर्पित जीवन के मौन अथक प्रयासों की आवश्यकता रही है और आगे भी रहेगी। इसके लिए स्वस्थ, मजबूत और दृढ़ हृदय की आवश्यकता है जो गंभीर विपत्तियों का सामना करने और विभिन्न आकर्षणों को दूर करने में सक्षम हो। संघ के दैनिक अभ्यास इस तरह से योजनाबद्ध हैं कि बुद्धि और भावनाओं को इस तरह से तैयार किया जाता है कि राष्ट्र के लिए पूरा जीवन समर्पित करने के लिए मन मजबूत हो।

हमें इसी जीवन में सत्य को जानना है, हमें विकास की प्रक्रिया में उलझना भी नहीं है और न ही अज्ञानता के अंधकार में घिरते जाना है। यदि कोई व्यक्ति बिना किसी बुरे उद्देश्य के कोई गलत कार्य करता है, तो उसका अपराध कम गंभीर माना जाता है, वह अपने पाप से मुक्त भी हो सकता है, ऐसा हमारे पवित्र शास्त्र हमें बताते हैं। इसका अर्थ यह है कि हमारे चिंतन में कार्य से अधिक महत्व उद्देश्य का है। यदि उद्देश्य लोक कल्याण का है तो कार्य कोई भी हो चलेगा, इसलिए बिना किसी स्वार्थ या भोग की लालसा के केवल कर्तव्य भावना से ही अपना कार्य करते जाना ही सत्य के निकट जाना है।

इसका अर्थ यह है कि यदि हम अपने द्वारा किए गए कार्य से अपनी आसक्ति और भोग की इच्छा को समाप्त कर दें, तो हम अपने कर्मों और उनके फल से मुक्ति पा सकते हैं। आज अपने आस-पास के वातावरण के प्रभाव से मुक्त रहना एक बड़ी चुनौती है, जिससे निपटे बिना हम अपने भीतर के सत्य पर ध्यान केंद्रित ही नहीं कर सकेंगे। इसलिए हमारे पूर्वजों का दर्शन हमें अपने कार्य के प्रति समर्पित रहने और बदले की आशा किए बिना अपना कर्तव्य निभाने के लिए कहता है। स्वाभाविक प्रश्न है कि हमें किस प्रकार का कार्य करना चाहिए? हमारा कर्तव्य क्या है?

हमें कहाँ से शुरू करना चाहिए

हमें अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत करना चाहिए, ताकि हम परम सत्य तक पहुँच सकें? क्या यह पर्याप्त होगा कि हम केवल सत्य पर विश्वास करें और कहें कि इसका प्रकटीकरण स्वतः हो जाएगा? इसका उत्तर है, “नहीं”। इस भौतिकवादी दुनिया में सत्य को मूर्त रूप में अभिव्यक्त किया जाना चाहिए।

हमारे दार्शनिक कहते हैं कि मनुष्य अपनी इन्द्रियों के माध्यम से उस सत्य को प्रकट कर लेता है और इसलिए हमें उसकी पूजा करनी चाहिए। प्रत्येक मनुष्य हमारी तरह सत्य की एक सुंदर अभिव्यक्ति है। अतः हम अधिक से अधिक लोगों के सुख-दुख में शामिल होने का प्रयास करके अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं, यही अनुभव ही वास्तविक व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। अंततः हम स्वयं के माध्यम से उस महान सार्वभौमिक सत्य को व्यक्त करने में सक्षम होंगे।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।