
एकता का मार्ग Publish Date : 02/08/2025
एकता का मार्ग
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
जिन लोगों के पास खजाना है, उसका कर्तव्य है कि वह उसकी रक्षा करे और दूसरों तक उसे आसानी से पहुँचाए। इस कर्तव्य से विमुख होना न केवल हमारे बल्कि पूरे विश्व के विनाश का कारण होगा। हमारे समाज में समय-समय पर इस ज्ञान को विश्व को बाँटने के लिए महान आत्माएँ पैदा होती रही हैं, उसे किसी भी प्रकार से न केवल जीवित रखने की आवश्यकता है बल्कि उसे सशक्त समाज बनाना होगा, इसी उद्देश्य के लिए संगठित होते हैं।
इस प्रकार हिंदू संगठन विश्व के कल्याण के लिए है। हमारे पूर्वजों का लक्ष्य संपूर्ण सृष्टि की रक्षा करना था। केवल हिंदू समाज ही ऐसे व्यक्ति को जन्म दे सकता है जो अपने अनुभव के आधार पर इस ज्ञान को विश्व के सामने प्रस्तुत कर सके।
दूसरों के लिए ऐसा करना संभव नहीं है, क्योंकि किसी आदर्श को प्राप्त करने के लिए कुछ साधनों की आवश्यकता होती है, हमारे पूर्वजों ने ऐसे साधनों की खोज की थी और उन्हें प्रभावी बनाने के लिए एक विज्ञान बनाया था जबकि पश्चिम के लोग इस विज्ञान से परिचित नहीं हैं। वे बाहर की ओर देखते हैं, वे अपने भीतर की ओर नहीं देखते लेकिन हम अपने भीतर की ओर देखते हैं।
हमें इस ज्ञान को देने में सक्षम होना होगा इसलिए, यह हमारे लिए करने योग्य काम है कि हम हिंदू समाज को आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ इस स्तर तक जागृत करें कि वह अपना ज्ञान उस दुनिया को दे सके जो केवल बाहर की ओर देखने की प्रवृत्ति रखती है। हमारे पास यह ‘सुझाव’ज्ञान देने का साधन है, और ‘शक्ति’भी। हमारे शास्त्रों में शक्तिपात (शरीर के अंगों के स्पर्श मात्र से शक्ति का संचार) के अनुभव करने का वर्णन है, जिससे ज्ञान का रूपांतरण होता है ।
संत ज्ञानेश्वर ने अपनी ज्ञानेश्वरी में वर्णन किया है कि भगवान कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान, भक्ति और कर्म का संपूर्ण ज्ञान देकर उसे गले लगाया। यह कोई साधारण गले लगाना नहीं था, बल्कि ज्ञान को हृदय से हृदय में पहुंचाना था, यह एक विद्युतीय परिवर्तन था। इस परिवर्तन की विधि के लिए सबसे पहले हमारे पास दिव्य शक्ति होनी चाहिए, तभी गलत धारणाओं को दूर करके सत्य की अनुभूति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, फिर चाहे वह संपर्क से हो या संघर्ष से।
हमारा दृढ़ निश्चय है कि हम पूरी दुनिया को एकता के मार्ग पर ले जाएंगे, या तो ‘सुझाव से या फिर ‘शक्ति’से, लेकिन कोई कमजोर समाज ‘सलाह’कैसे दे सकता है या ‘शक्ति कैसे दिखा सकता है? वह समाज क्या रास्ता दिखाएगा जो खुद अपनी समृद्धि के लिए प्रेरित होने के योग्य भी नहीं है? जो लोग कठिनाइयों का सामना करने से डरकर भागते हैं, उनके पास क्या शब्द होंगे?
‘निवृत्ति’का हमने गलत अर्थ निकाला है। यह जीवन की समस्याओं से पीछे हटना नहीं है, बल्कि जीवन के सभी संकटों पर विजय प्राप्त करना है। आज अपना समाज विजय प्राप्त करता हुआ विश्व के नेतृत्व के लिए तैयार होता हुआ दिखाई दे रहा है यही पिछली शताब्दी के हिंदू संगठन की शक्ति का ही परिणाम है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।