अच्छी आदतों से सुधरता भाग्य है और स्वभाव अच्छा हो जाता है      Publish Date : 27/07/2025

अच्छी आदतों से सुधरता भाग्य है और स्वभाव अच्छा हो जाता है

                                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

भगवान श्री कृष्ण जी ने गीता में कहा है कि जो व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है, यानी व्यक्ति की सोच उसके कार्यों को प्रभावित करती है और बार-बार किए गए कार्य ही उसकी आदत बन जाते हैं।

यह आदतें ही हमारे स्वभाव का निर्माण करती है, जिससे हमारे भाग्य का निर्माण होता है। आदतें गहन और आंतरिक होती है। वह आदतें ही हैं जो दूसरों के साथ हमारे परिचय को दर्शाती हैं, जबकि आंतरिक आदतें केवल हमारे अपने अनुभव से जुड़ी होती है।

कुछ बाहरी आदतें पुरानी होती हैं, जिन्हें बदलना थोड़ा कठिन कार्य होता है तो वहीं कुछ नई आदतें ऐसी होती है जो हमारे जीवन में अब शामिल हो गई है। अच्छी आदतें न केवल बहुमूल्य होती है बल्कि वह हमारे जीवन को भी मूल्यवान बनती है।

इसके अतिरिक्त गलत आदतें सहजता से हमारे जीवन में प्रवेश कर जाती है और यह हमारे जीवन को मूल्यहीन बना देती है। यह गलत आदतें या तो हम सब अपनाते हैं या बुरी संगत के प्रभाव में आकर हम इन आदतों को अपना लेते हैं।

कई बार अनजाने में भी यह आदतें हमारे व्यवहार में शामिल हो जाती हैं। गलत आदतें हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं और हमें लक्ष्य से हमें भटकाती हैं। अतः इन गलत आदतों से बचने का एकमात्र उपाय यह है कि हम अच्छी आदतों को अपने जीवन में अपनाएं।

                                                    

बुरी आदतों से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं होता क्योंकि हम इससे बंधे होते हैं। अवचेतन मन में आदतें स्वचालित रूप से काम करती हैं और नई आदतें तभी जाकर लगती है जब उन्हें हमारे द्वारा लगातार दोहराया जाता रहता है।

आदतों में बदलाव लाने के लिए सोने के तरीकों में बदलाव की आवश्यकता होती है। हमें दृढ़ संकल्प के साथ अपनी आदतों को सुधारना चाहिए। छोटे-छोटे संकल्प लेना अधिक प्रभावी होता है। यदि छोटे संकल्प पूरे हो होते हैं तो इससे हमारा उत्साह बना रहता है और संकल्प शक्ति भी बढ़ती है। इस प्रकार अच्छी आदतों को अपने व्यवहार में शामिल करने से स्वभाव सुधरता है और हमारा भाग्य भी उच्च कोटि का बन जाता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।