स्वेच्छा से अपनाया गया अनुशासन ही चरित्र बनाता है      Publish Date : 26/07/2025

   स्वेच्छा से अपनाया गया अनुशासन ही चरित्र बनाता है

                                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

यदि हम स्वेच्छा से अपने ऊपर अनुशासन को लागू करें और इसके लाभ को समझते हुए बुरी आदतों से बचकर चलें, तो ऐसा करने से आत्मानुशासन की भावना अधिक प्रगाढ़ और दृढ़ हो जाती है।

आत्मानुशासन का गुण, संतोष के काफी करीब है। वास्तव में, संतोष से पहले अन्य आंतरिक मूल्यों के संदर्भ में थोड़ा आत्मानुशासन आवश्यक है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अनुशासन स्वेच्छा से आता है। दबाव में यह कम प्रभावशाली होता है और लाभ के स्थान पर, कई बार हानि की आशंका भी रहती है। यदि किसी बाहरी प्राधिकार अथवा धार्मिक परंपराओं के कारण अनुशासन लागू होता है, तो मन में उत्साह की भावना कम हो जाती है। दूसरी ओर, यदि हम स्वेच्छा से अपने ऊपर अनुशासन लागू करें, और इसके लाभ को समझते हुए बुरी आदतों से बचकर चलें, तो हम अधिक कृतसंकल्प होकर इसका पालन कर सकते हैं।

ऐसा करने से आत्मानुशासन की भावना अधिक प्रगाढ़ और दृढ़ हो जाती है। हमें आत्मानुशासन को स्वेच्छा से विकसित करने के लिए इसके लाभ पर विचार करना होगा। यह लाभ केवल अपने लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति के संदर्भ में देखना चाहिए। इससे दृढ़ संकल्प कायम करने का उत्साह पैदा होता है।

                                                      

सबसे पहले, हमें किसी इच्छा या बुरी आदत के सामने समर्पण करने से शारीरिक तौर पर होने वाली क्षति को समझना होगा। यह सोचना आसान है कि हमारा व्यक्तिगत व्यवहार या हमारी आदतें दूसरों को प्रभावित नहीं करती, परंतु ऐसा नहीं होता। उदाहरण के लिए, यदि परिवार का कोई सदस्य नशे का आदी है, तो परिवार के अन्य सदस्य शारीरिक या मानसिक स्तर पर नशे से प्रभावित तो नहीं होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है कि उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। वे अवश्य अपने परिवार के प्रभावित सदस्य को लेकर चिंतित और परेशान होते होंगे। उन्हें कष्ट और अन्य जटिलताओं से निपटना भी मुश्किल लगता होगा। इसलिए, जब हम आत्मानुशासन की कमी और अपनी व्यक्तिगत आदत्तों से होने वाले नुकसान पर विचार करते हैं, तो हमें उन लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए, जो हमसे जुड़े हैं, और जिनका कल्याण-हमारे अपने कल्याण से जुड़ा हुआ है।

अनुशासन की कमी से होने वाली क्षति को सामाजिक स्तर पर भी समझने की आवश्यकता है। आत्मानुशासन की कमी के नकारात्मक प्रभाव समझ में आने पर, हम धीरे-धीरे जीवन में इच्छाओं पर नियंत्रण करना भी सीख सकते हैं। लगातार अभ्यास द्वारा, आत्मानुशासन जीवन में स्वतः आ जाता है और हमें उसके लिए अलग से प्रयास नहीं करने की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसी स्थिति में, नियंत्रण और ईमानदारी हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाते हैं, तो फिर हमें स्वयं पर नियंत्रण द्वारा प्राप्त स्वतंत्रता का बेहतर एहसास होता है। आत्मानुशासन के गुण की विश्व के सभी प्रमुख धर्म प्रशंसा करते हैं। इस गुण के धारक को ईश्वर का प्रिय माना जाता है।

अतः हमें शरीर, वचन, और मन के स्तर पर आत्मानुशासन द्वारा विनाशकारी भावनाओं को पूरी तरह नियंत्रित करके, आंतरिक ऊहापोह की स्थिति से छुटकारा मिल जाता है, और हमें अपने व्यवहार को आदर्श एवं वास्तविक स्थिति के बीच संतुलित करना आ जाता है। इसकी आदत धीरे-धीरे आत्मविश्वास और निष्ठा का स्थान ले लेती है, जो कि सबके लिए एक वांछनीय गुण हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।