
मानव जीवन का उद्देश्य Publish Date : 25/07/2025
मानव जीवन का उद्देश्य
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
मनुष्य जीवन ईश्वर का अनमोल उपहार है। इसका सही मूल्यांकन आवश्यक है। मनुष्य की गरिमा और सार्थकता इस बात में निहित है कि वह अपने कर्तव्यों और दायित्वों को पूरी तन्मयता से निभाए। यदि उसकी गतिविधियां केवल भौतिक आवश्यकताओं और लोभ-मोह तक सीमित रहें, तो उसे केवल नर-पुरुष कहा जाता है।
जब इसमें लोभ और अहंकार का समावेश हो जाए, तो यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। इस प्रकार मनुष्य जीवन, जो श्रेष्ठ सौभाग्य का प्रतीक होना चाहिए, दुर्भाग्य का कारण बन जाता है।
यदि हम अपनी जीवन ऊर्जा को सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति और भोग-विलास में लगाते हैं, तो भले ही हम भौतिक वैभव का अंबार खड़ा कर लें, लेकिन इसके परिणामस्वरूप जो हानि होगी, उसकी भरपाई कर पाना संभव नहीं है। अज्ञानता के कारण मनुष्य अक्सर सांसारिक ऐश्वर्य को सर्वाेपरि मानकर उसमें लिप्त रहता है, जिससे उसकी जीवन ऊर्जा नष्ट होती जाती है और अंततः जीवन का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
जीवन जीने के लिए मानव शरीर हमें एक उपकरण के रूप में मिला है, ताकि आत्मा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सके। आत्मा की यात्रा परमात्मा की ओर है, जहां केवल आनंद ही आनंद है। जो व्यक्ति जीवन जीने का सही दृष्टिकोण अपनाता है, वह जीवन के रहस्यों को समझ जाता है। इस दृष्टिकोण के माध्यम से वह जीवन से जुड़ी भ्रांतियों और संभावित खतरों से बच सकता है। जो व्यक्ति इन खतरों को पहचानकर उनसे बचने के उपाय खोज लेता है, वही जीवन को एक कलाकार की तरह जी सकता है।
जीवन की ऊर्जा का सही उपयोग करना और इसे उच्चतम लक्ष्यों की ओर निर्देशित करना आवश्यक है। हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और भौतिकता से ऊपर उठकर आत्मिक विकास की ओर अग्रसर हो सकें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।