वैश्विक एकता और हिंदुओं को संगठित करना      Publish Date : 24/07/2025

       वैश्विक एकता और हिंदुओं को संगठित करना

                                                                                                                                                                    पोफेसर आर. एस. सेंगर

एक सामान्य व्यक्ति के लिए यह संकल्प करना ही काफी है कि, “मैं हिंदू हूं और मैं अपने समाज को एक आदर्श सामाजिक जीवन के लिए संगठित करूंगा।”लेकिन, जब हम वैश्विक स्तर पर इसके बारे में सोचते हैं, तो एक सवाल उठता है: “हमारा प्रयास एक आदर्श संगठित जीवन के माध्यम से हमारे समाज के लिए एक संपूर्ण जीवन पद्धति प्राप्त करना है ।

यह मानवता से कैसे संबंधित है? क्या यह विश्व के लिए फायदेमंद होगा या नहीं?” हमारे देश में आज ऐसे लोग हैं, जो संपूर्ण मानव समाज की बात करते करते इस हद तक चले जाते हैं कि वे राष्ट्रवाद और अंतर्राष्ट्रीयता के बीच सामंजस्य के बारे में सोचना ही भूल जाते हैं, और कहना शुरू कर दिया कि I am a global citizen and Nationalism is anti globle.

                                                            

इसकी आड़ में कुछ लोग हमारे देश में विदेशी ‘विचारधाराओं’ का भी प्रचार करना चाहते हैं। उनका दावा है कि ऐसी विचारधाराओं से ही वैश्विक एकता संभव है। जबकि अपने राष्ट्र का तो शाश्वत विचार ही है वसुधैव कुटुंबकम् का। अपनी धरती पर जो भी कार्य शुरू किए गए है वह मानव कल्याण के लिए ही हैं अतः वह मानव एकता के प्रयासों को भी बढ़ावा देता ही है।

लेकिन, केवल तर्क संगत विचारों से ही काम नहीं चलेगा। हमें एक ऐसे विचार की आवश्यकता है जो व्यावहारिक हो और जो वास्तव में हमारे मन को संतुष्ट करे।

जब हम वर्तमान वैश्विक विचारधाराओं के बारे में सोचते हैं, तो दो बुनियादी सवाल उठते हैं। एक- क्या मानवीय एकता प्राप्त करने के लिए हमें राष्ट्रीय अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहिए? दो- क्या राष्ट्रीय अस्तित्व को जीवित रखते हुए हम शेष विश्व के साथ सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं और विकसित कर सकते हैं? यदि हाँ तो कैसे? यदि यह वैश्विक एकता की समस्या है, तो क्या हम भी इस पर विचार कर सकते हैं?

                                                          

सम्पूर्ण मानवता की एकता, मानव-मानव के बीच संघर्ष का अभाव और भाईचारे पर आधारित जीवन का आदर्श प्राचीन काल से ही हमारा आदर्श रहा है । “सर्वेपि सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः” (सभी सुखी और स्वस्थ रहें) हमारा आदर्श होने के कारण, हम किसी भी व्यक्ति को दुखी या बीमार देखना असहनीय मानते हैं, हमारा आदर्श सभी का पूर्ण सुख रहा है।

हमारे लोग विश्व में जिस देश में गए वहां उस भूमि के निवासियों के साथ न केवल सद्भाव से रहे बल्कि उस देश के विकास में अपनी महती भूमिका भी निभाई है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।