
दुष्टता का प्रतिकार Publish Date : 23/07/2025
दुष्टता का प्रतिकार
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
‘शठे शाठ्यं समाचरेत’ नीति-शास्त्र का यह चिर-प्रसिद्ध सूत्र सिखाता है कि धूर्त की भाषा में ही धूर्त से संवाद करना उचित है। कपट करना जिसकी मूल प्रवृत्ति हो, उसे सज्जनता का पाठ पढ़ाना पानी में चांद की आकृति को पकड़ने जैसा होता है। सत्य और सरलता आदि की मर्यादा तभी तक है, जब वह दोनों पक्षों की ओर से व्यवहत हो। जब कोई बार-बार छले, भल-मनसाहत को निर्बलता समझे तब उसे उसकी ही शैली में जवाब देना आवश्यक होता है।
एक राष्ट्र अपनी सीमाओं पर शांति का झंडा लहराए, लेकिन पड़ोसी धोखे की तलवार भांजे। तब क्या करें? ऐसी परिस्थिति में नीति यही कहती है, कूटनीति की बिसात बिछाना, छल का जवाब छल-बल से देना कतई भी अनुचित नहीं। महाभारत में ‘अश्वत्थामा मारा गया’ का दांव छल नहीं, बल्कि एक रणनीति था। यह सूत्र कभी छल को प्रारंभ करने का समर्थन नहीं करता।
यह कहता है कि जब कोई दुष्टता की राह चुने तब प्रतिरोध में उसी की शैली में उत्तर देना ही न्याय की रक्षा है। यह नैतिकता की ढाल है। विवेक की तलवार है। यह नीति केवल प्रत्युत्तर के रूप में छल, बल और दमन की बात करती है। स्मरण रहे कि प्रतिरोध में, न कि प्रवृत्ति में। यही इसकी नैतिक गरिमा है।
संप्रति सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत संबंधों में भी यह सूत्र प्रासंगिक है। सज्जनता की भी एक सीमा होती है। बार-बार धोखा खाकर भी मौन रहें तो वह सज्जनता नहीं, आत्म-वंचना बन जाती है। ‘शठे शायं समाचरेत’ कोई नैतिक पतन नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण न्याय की रक्षा है। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि यदि सज्जन भी कुपित हो बैठे तो विश्व केवल बदले की अग्नि में सुलगेगा। इस तर्क का प्रतिकार यही हो सकता है कि यदि हम अन्याय और छल-कपट के समक्ष भी मौन रहे, तो न्याय का सूरज कभी नहीं उगेगा।
आवश्यकता है सज्जनता में ‘सजगता’ की। यह सूत्र हमें सिखाता है कि सज्जनता निर्बलता नहीं, शक्ति है, बशर्ते वह विवेकपूर्ण कूटनीति को अपनाए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।