
मोक्ष का मार्ग Publish Date : 20/07/2025
मोक्ष का मार्ग
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
योग और मोक्ष प्राप्ति के लिए सब कुछ परित्याग करना कतई आवश्यक नहीं। मनुष्य अनासक्त भाव से सत्कर्म करते हुए भी इनकी प्राप्ति कर सकता है। इसके लिए आवश्यक है पारदर्शी विचारधारा एवं मन-वचन और कर्म से कर्तव्यबोध की अनुभूति।
हमारे ग्रंथों एवं मनीषियों ने जीवन जीने की कला को समझने के लिए दो दृष्टि सुझाई हैं- अभिनव एवं व्यावहारिक। अभिनव से आशय है-नित-नित नवीन। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि समाज के साथ उठना- बोलना-चलना। सामाजिक जीवन जीते हुए भी व्यक्ति के लिए नवीनता और आधुनिकता दोनों सापेक्षित हों, किंतु उनमें धर्मशास्त्रानुकूल सांस्कृतिक मूल्यों का विनियोग विवेकपूर्वक आवश्यक है। इससे आधुनिकता में प्राचीनता की मधुरता आलोकित होगी। मर्यादित जीवनशैली और अनासक्त भाव से समस्त कर्मों का क्रियान्वन करते हुए मानव योग और मोक्ष दोनों को सहज ही वरण कर सकता है।
संप्रति मानव जीवन का पथ सुमनाच्छादित न होकर कंटकाकीर्ण है। हम इन मार्गों पर किस प्रकार चलें ताकि हमारा जीवन-रथ सुरक्षित रूप से गतिमान रहे। इस मार्ग पर हमें सुख-दुख के झंझावात विचलित न कर पाएं। स्मरण रहे कि भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के जीवन में जब भी प्रतिकूलताएं आईं तो वे उनसे विचलित नहीं हुए तथा अनुकूलता आने पर प्रफुल्लित नहीं हुए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने वनवास को वरदान और राज्य को कर्तव्यधर्म माना। वहीं, योगेश्वर श्रीकृष्ण महाभाग ने धर्माधर्म के मध्य जीवन को सामान्य और मधुर बनाए रखा। प्रतिकूलता भावी जीवन को मंगलमय बनाने के लिए एक सुयोग्य अवसर है तथा अनुकूलता वर्तमान जीवन को तपोमय बनाने के लिए एक अनुपम संयोग है।
योग एवं मोक्ष की सुलभता के लिए प्रसन्नता बहुत आवश्यक है। प्रसन्नतापूर्वक संपादित नित्य-नैमेत्यिक कर्मों से मनुष्य लोक में समृद्धि, शांति प्राप्त करते हुए अंत में मोक्ष का पात्र बनता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।