बड़े से बड़े संकट में धर्म जीवन का आशा केंद्र बना      Publish Date : 18/07/2025

          बड़े से बड़े संकट में धर्म जीवन का आशा केंद्र बना

                                                                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

जब हम धर्म का संरक्षण करते हैं तब धर्म हमारा संरक्षण करता है। आजकल त्रिनिदाद बहुत चर्चा में है क्योंकि प्रधानमंत्री वहां गए हैं। १७वीं शताब्दी में अंग्रेजों के द्वारा दिए गए प्रलोभन के चक्कर में धनोपार्जन की आशा लिए मॉरिशस, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो इत्यादि देशों में गए भारतीय नागरिकों, जो कि श्रमिक थे ने जब सात समुद्र पार स्वयं को असहाय पाया तब धर्म ही उनकी आशा का केंद्र बना।

रामलीलाओं का मंचन और रामायण का वाचन करके वे स्वयं को आनंदित करते थे और अपनी जड़ों से जुड़े भी रहते थे जिसका परिणाम यह है कि जिन देशों में वे गुलाम, मजदूर बनकर ले जाए गए थे आज उन्हीं देशों में न केवल शासन कर रहे हैं, बल्कि उस देश की विकास यात्रा के आधार बने हैं। मॉरिशस में नवीन चंद्र राम गुलाम, फिजी में नवीन बालाजी, सूरीनाम में चंद्रिका प्रसाद संतोखी, त्रिनिदाद के पूर्व प्रधानमंत्री बासदेव पाण्डेय या वर्तमान प्रधानमंत्री कमला प्रसाद हों इन सभी को स्वयं को हिंदू होने का गर्व है और अब इनके अपने देश के प्रति जिम्मेदारी का भाव भी।

वहीं भारत के जो लोग भारत में ही रहकर अपना धर्म संरक्षित नहीं कर सके और धर्म छोड़ कर चले गए स्वयं को हिंदू नहीं कहते हैं आज उनकी भारत के प्रति कैसी सोच है इससे तो हम सब परिचित ही हैं। लगभग २०० वर्ष पूर्व निर्धनता की लाचारी के कारण अपने देश से बाहर गए लोग भी हमारे ही हैं, यह हिंदुत्व की शक्ति है कि आज वही लोग विश्व में अनेक स्थानों पर नेतृत्व कर रहे हैं और अपनी पुण्यभूमि के प्रति अगाध स्नेह और श्रद्धा को भी बरकरार रखे हुए हैं। भारत की बढ़ती हिंदू संगठनात्मक शक्ति ने उन लोगों को भी बल प्रदान किया है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।