
ऑपरेशन सिदूर के दौरान भारतीय सशस्त्र सेनाओं में आपसी तालमेल Publish Date : 15/07/2025
ऑपरेशन सिदूर के दौरान भारतीय सशस्त्र सेनाओं में आपसी तालमेल
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
कई क्षेत्रों में होने वाले युद्धों के इस युग में, जहां खतरे सीमाओं के बदलाव से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं, वहीं भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे ने एकजुटता और रणनीतिक दूरदर्शिता की ताकत का प्रदर्शन किया है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद 7 मई, 2025 को शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर ने एक संतुलित व तीनों सेनाओं की प्रतिक्रिया को प्रदर्शित किया, जिसमें सटीकता, व्यावसायिकता और उद्देश्य का पूर्ण समावेश था। ऑपरेशन सिंदूर की परिकल्पना नियंत्रण रेखा के पार और पाकिस्तान के अंदर तक आतंकी ढांचे को नष्ट करने के लिए एक दंडात्मक कदमों और लक्षित अभियान के रूप में की गई थी। विभिन्न एजेंसियों से मिली खुफिया जानकारी के आधार पर नौ प्रमुख शिविरों की पुष्टि की, जिन्हें इस सफल ऑपरेशन में निशाना बनाया गया था। भारत की जवाबी कार्रवाई सावधानीपूर्वक बनी योजना और खुफिया नेतृत्व वाले दृष्टिकोण पर आधारित थी, जिसने सुनिश्चित किया कि ऑपरेशन न्यूनतम अतिरिक्त क्षति के साथ संचालित हों। मिशन में ऑपरेशन से जुड़ी नैतिकता पर जोर दिया गया था और नागरिकों को संभावित क्षति से बचने के लिए संयम का परिचय दिया गया था।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद, पाकिस्तान ने प्रमुख भारतीय एयरबेस और लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाते हुए जवाबी ड्रोन और यूसीएवी हमलों की एक श्रृंखला शुरू की थी। हालांकि, उसके इन प्रयासों को भारत की व्यापक और बहुस्तरीय वायु रक्षा ढांचे द्वारा पूरी तरह से निष्प्रभावी कर दिया गया था। इस सफलता का केंद्र एकीकृत कमान और नियंत्रण रणनीति (आईसीसीएस) थी, जिसने कई डोमेन में वास्तविक समय के आधार पर खतरे की पहचान, आकलन और अवरोधन की सुविधा प्रदान की। ऑपरेशन सिंदूर के हर एक क्षेत्र में सेनाओं के बीच परिचालन संबंधी तालमेल था और सरकार, एजेंसियों और विभागों के द्वारा इसका पूरी तरह से समर्थन भी किया गया था।
जमीन, हवा और समुद्र में किया गया यह ऑपरेशन भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना के बीच तालमेल का एक सहज प्रदर्शन था। भारतीय वायुसेना (आईएएफ) ने पाकिस्तान के आतंकी ढांचे के खिलाफ सटीक हमले करने में अहम भूमिका निभाई। इसने नूर खान एयर बेस और रहीमयार खान एयर बेस जैसे लक्ष्यों पर बेहद असरदार हवाई ऑपरेशन किए, जिसमें आधिकारिक ब्रीफिंग के दौरान नुकसान के दृश्य साक्ष्य प्रस्तुत किए गए थे। वायुसेना का मजबूत हवाई रक्षा वातावरण सीमा पार से जवाबी ड्रोन और यूएवी हमलों के दौरान भारतीय हवाई क्षेत्र की रक्षा करने में भी महत्वपूर्ण साबित हुआ। स्वदेशी रूप से विकसित सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली आकाश और पिकोरा और ओएसए-एके जैसे विरासत प्लेटफॉर्म को एक स्तरीय रक्षा ग्रिड में प्रभावी ढंग से तैनात किया गया था। आईएएफ की एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली ने हवाई संपत्तियों के वास्तविक समय के आधार पर समन्वय को सक्षम बनाया, जिससे भारतीय सेना हवाई खतरों को कुशलतापूर्वक बेअसर कर सकी और पूरे संघर्ष के दौरान नेट-केंद्रित संचालन बनाए रख सकी।
इसके साथ ही, भारतीय सेना ने रक्षात्मक और आक्रामक दोनों भूमिकाओं में अपनी तैयारी और प्रभावशीलता का सफल प्रदर्शन किया। सेना की वायु रक्षा इकाइयों ने वायु सेना के साथ मिलकर काम किया, जिसमें कंधे से दागे जाने वाले एमएएनपीएडीएस और एलएलएडी गन से लेकर लंबी दूरी की एसएएम तक की कई तरह की प्रणालियां तैनात की गईं। ये इकाइयां पाकिस्तान द्वारा लॉन्च किए गए ड्रोन और घूमते हुए हथियारों की लहरों का मुकाबला करने में सहायक रही थीं। पाकिस्तान द्वारा नुकसान पहुंचाने के अथक प्रयासों के बावजूद, भारतीय सेना सैन्य और नागरिक दोनों बुनियादी ढांचों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में पूरी तरह से सफल रही।
भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान समुद्र में अपने दबदबे को स्थापित करने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक समग्र नेटवर्क बल के रूप में काम करते हुए, नौसेना ने मिग-29 के लड़ाकू जेट और प्रारंभिक हवाई चेतावनी हेलीकॉप्टरों से लैस अपने कैरियर बैटल ग्रुप (सीबीजी) को तैनात किया। इसने समुद्री क्षेत्र में खतरों की निरंतर निगरानी और उनकी वास्तविक समय पर पहचान सुनिश्चित की। सीबीजी ने एक शक्तिशाली वायु रक्षा कवच बनाए रखा, जिसने खासकर मकरान तट से शत्रुतापूर्ण हवाई घुसपैठ को रोका। नौसेना की उपस्थिति ने एक मजबूत निवारक व्यवस्था बनाई और अपने पश्चिमी समुद्र तट पर पाकिस्तानी हवाई हमलों को प्रभावी ढंग से बेअसर कर दिया, जिससे उन्हें कोई भी परिचालन से जुड़ा स्थान नहीं मिला। नौसेना के पायलटों ने चौबीसों घंटे उड़ानें भरी, जिससे इस क्षेत्र में भारत की तत्परता और रणनीतिक पहुंच का प्रदर्शन हुआ। समुद्र पर निर्विवाद नियंत्रण स्थापित करने की नौसेना की क्षमता ने एक जटिल खतरे के माहौल में इसकी मिसाइल रोधी और विमान रोधी रक्षा क्षमताओं को भी पहचान दी।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने जम्मू और कश्मीर के सांबा जिले में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर एक बड़ी घुसपैठ की कोशिश को विफल करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीएसएफ के जवानों ने सुबह-सुबह संदिग्ध हरकत देखी और तुरंत ही इसका जवाब दिया, जिसके बाद भारी गोलीबारी हुई। इसके बाद हुई मुठभेड़ में, बीएसएफ ने कम से कम दो घुसपैठियों को सफलतापूर्वक मार गिराया और हथियार, गोला-बारूद और युद्ध जैसे अन्य सामान बरामद किए। इस ऑपरेशन ने बीएसएफ की सतर्कता, परिचालन तैयारियों और बढ़े हुए तनाव के दौरान सीमा को सुरक्षा बनाए रखने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया।
इस प्रकार ऑपरेशन सिंदूर मात्र एक सामरिक सफलता ही नहीं थी बल्कि यह एक रणनीतिक पहल भी थी। इसने जमीन, हवा और समुद्र में बेहद सटीक, समन्वित सैन्य कार्रवाई के लिए भारत की क्षमता को प्रदर्शित किया। यह ऑपरेशन रक्षा तैयारियों में वर्षों के निवेश और भारत सरकार की बेजोड़ नीति और बजटीय सहायता के चलते ही संभव हो पाया। यह एक संदेश स्पष्ट थाः कि जब तर्क और कूटनीति की अपीलों का सामना लगातार आक्रामकता से होता है, तो निर्णायक जवाब उचित और आवश्यक हो जाता है। कुल मिलाकर, ऑपरेशन सिंदूर को भारत के रक्षा इतिहास में एक निर्णायक क्षण- सैन्य सटीकता, अंतर-सेवा सहयोग और राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक के रूप में याद किया जाएगा। इसने आतंकी खतरों को सफलतापूर्वक समाप्त किया, भारत के क्षेत्रीय प्रभुत्व की पुष्टि की और एक मजबूत संदेश दिया कि अब सीमा पार से होने वाले आतंकवाद का जवाब एक संतुलित लेकिन दृढ़ प्रतिक्रिया के साथ दिया जाएगा।
सरकार के नेतृत्व में सशस्त्र बलों के बीच समन्वय से जुड़े प्रमुख प्रयासः
1. चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस): 24 दिसंबर 2019 को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चीफ ऑफ डिफ्रेंस स्टाफ (सीडीएस) पद बनाए जाने को मंजूरी दी, जो एक चार सितारा जनरल होता है और सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) का प्रमुख होता है और तीनों सेनाओं के मामलों पर रक्षा मंत्री के प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करता है।
2. एकीकृत थिएटर कमांड (आईटीसी): सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए, एकीकृत थिएटर कमांड (आईटीसी) और एकीकृत युद्ध समूहों (आईबीजी) की स्थापना के माध्यम से बलों के पुनर्गठन के प्रयास किए जाते रहे हैं। इन सुधारों का उद्देश्य भूगोल और कार्य के आधार पर थल सेना, नौसेना और वायु सेना की क्षमताओं को एकीकृत करके परिचालन तैयारियों को अनुकूलित करना है। सेवा मुख्यालय स्तर पर अध्ययनों में जमीनी सीमाओं, समुद्री और संयुक्त/एकीकृत वायु रक्षा के लिए थिएटर कमांड पर सक्रिय रूप से गौर किया जा रहा है, ताकि तालमेल और युद्ध प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सके। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने जोर देकर कहा कि संयुक्तता और एकीकरण आईटीसी के लिए आवश्यक पूर्वापेक्षाएं हैं, जो स्पष्ट रूप से परिचालन भूमिकाओं को प्रशासनिक रेज-ट्रेन-सस्टेन यानी बढ़ाओ-प्रशिक्षित करो-बनाए रखो (आरटीएस) कार्यों से अलग कर देगा, जिससे कमांडरों के लिए सुरक्षा और संचालन पर ध्यान केंद्रित करना संभव होगा। आईटीसी बहु-क्षेत्रीय संचालन की दिशा में व्यापक सुधारों की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करते हैं, अंतरिक्ष और साइबरस्पेस को पारंपरिक डोमेन के साथ एकीकृत करते हैं और डिजिटलीकरण एवं डेटा-केंद्रित युद्ध को आगे बढ़ाते हैं।
3. सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) का निर्माण सचिव के रूप में सीडीएस को शामिल करने के साथ, वर्ष 2020 में सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) का निर्माण किया गया था, ताकि संसाधनों के अधिकतम उपयोग को सुगम बनाया जा सके और तीनों सेनाओं के बीच एकजुटता को बढ़ावा दिया जा सके। डीएमए को आवंटित विषयों में शामिल हैं:
- संघ के सशस्त्र बल, अर्थात् थल सेना, नौसेना और वायु सेना।
- रक्षा मंत्रालय का एकीकृत मुख्यालय जिसमें सेना मुख्यालय, नौसेना मुख्यालय, वायु सेना मुख्यालय और रक्षा स्टाफ मुख्यालय शामिल हैं।
- थलसेना, नौसेना और वायु सेना से संबंधित कार्य।
- सेवाओं के लिए संयुक्त योजना और उनकी आवश्यकताओं के एकीकरण के माध्यम से खरीद, प्रशिक्षण और स्टाफिंग में एकजुटता को बढ़ावा देना।
- संयुक्त/थिएटर कमांड की स्थापना के माध्यम से संचालन में एकजुटता लाकर संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए सैन्य कमांड के पुनर्गठन की सुविधा।
4. अंतर-सेवा संगठन (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) अधिनियम, वर्ष 2023 अंतर-सेवा संगठन (कर्माड, नियंत्रण और अनुशासन) अधिनियम, वर्ष 2023 तीनों सेनाओं के कर्मियों पर अधिकार के साथ त्रि-सेवा संरचनाओं के कमांडरों को सशक्त बनाकर भारतीय सशस्त्र बलों में एकजुटता को बढ़ावा देता है। यह अनुशासनात्मक श्रृंखला को एकीकृत करता है, निर्णय लेने की गति को बढ़ाता है, और परिचालन और सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा देता है। व्यक्तिगत सेवा पहचान को प्रभावित किए बिना कमांड को सुव्यवस्थित करके, अधिनियम भविष्य के एकीकृत थिएटर कमांड के लिए कानूनी आधार तैयार करता है। इस अधिनियम के मुख्य निहितार्थ हैं:
एकीकृत कमानः आईएसओ कमांडर एक प्राधिकरण के तहत सभी कर्मियों को अनुशासित कर सकते हैं।
तेज प्रक्रियाएं: अंतर-सेवा समन्वय से होने वाली देरी को कम करती हैं।
संयुक्त संस्कृतिः विभिन्न सेवाओं के बीच सामंजस्य और साझा जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करती है।
थिएटर कमांड के लिए कानूनी आधारः भविष्य के एकीकृत संचालन का समर्थन करता है।
सेवा पहचान बरकरार रखी गईः प्रत्येक सेवा के अद्वितीय मानदंड बरकरार रहते हैं।
5. संयुक्त लॉजिस्टिक नोड (जेएलएन) तीन संयुक्त लॉजिस्टिक नोड (जेएलएन) स्थापित किए गए हैं और तीनों सेवाओं के बीच लॉजिस्टिक एकीकरण के लिए मुंबई, गुवाहाटी और पोर्ट ब्लेयर में वर्ष 2021 से चालू हैं। ये जेएलएन सशस्त्र बलों को उनके छोटे हथियारों, गोला-बारूद, राशन, ईंधन, सामान्य स्टोर, नागरिक परिवहन, विमानन कपड़े, पुर्जों और इंजीनियरिंग सहायता के लिए एकीकृत लॉजिस्टिक कवर प्रदान करेंगे, ताकि उनके परिचालन प्रयासों में तालमेल बिठाया जा सके। इस पहल से जनशक्ति की बचत, संसाधनों के किफायती उपयोग के अलावा वित्तीय बचत के मामले में लाभ होगा।
6. संयुक्त प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, सेमिनार और अभ्यास
तीनों सेनाओं का भविष्य युद्ध पाठ्यक्रमः चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान की एक प्रमुख पहल है, जो मेजर जनरल से लेकर मेजर और अन्य सेवाओं के उनके समकक्ष स्तर के अधिकारियों के लिए तैयार किया गया एक पाठ्यक्रम है। पाठ्यक्रम का उद्देश्य अधिकारियों को आधुनिक युद्ध के परिचालन और तकनीकी पहलुओं से परिचित कराना है। तीनों सेनाओं के अधिकारियों के लिए भविष्य युद्ध पाठ्यक्रम की आवश्यकता आधुनिक युद्ध की तेजी से विकसित होती प्रकृति, तकनीकी प्रगति, बदलती वैश्विक गतिशीलता और उभरते खतरों से प्रेरित होने के कारण उत्पन्न हुई। इस पाठ्यक्रम को अनुभवी और सेवारत विषय विशेषज्ञों की मदद से मुख्यालय एकीकृत रक्षा स्टाफ द्वारा तैयार किया गया है। इसका पहला संस्करण 23 से 27 सितंबर 2024 तक नई दिल्ली में आयोजित किया गया था और दूसरा संस्करण 21 अप्रैल से 09 मई, 2025 तक नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में आयोजित किया गया था। दूसरे संस्करण में सैन्य अभियानों में विशेष विषयों और डोमेन-केंद्रित युद्ध विकास को कवर करने वाला एक उन्नत पाठ्यक्रम शामिल था।
रक्षा सेवा तकनीकी स्टाफ कोर्सः रक्षा सेवा तकनीको स्टाफ कोर्स (डीएसटीएससी) 10 जून 2024 को एमआईएलआईटी, पुणे में आयोजित किया गया था, जिसमे सेना, नौसेना, वायु सेना, तटरक्षक बल और मित्र देशों के 166 अधिकारी शामिल हुए थे। पहली बार, यह कोर्स तीनों सेनाओं की संयुक्त प्रशिक्षण टीमों द्वारा आयोजित किया गया था, जो संयुक्तता और बहु-क्षेत्रीय परिचालन तत्परता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अधिकारियों को उभरती प्रौद्योगिकियों, रक्षा रणनीति और भू-राजनीतिक जागरुकता के साथ-साथ लाइव अभ्यास, रक्षा अनुसंधान और विकास और औद्योगिक गलियारों के बारे में प्रशिक्षित किया गया, जो सैन्य क्षमता में तकनीकी नेतृत्व और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक साहसिक कदम है।
परिवर्तन चिंतन सम्मेलनः तीनों सेनाओं का सम्मेलन ‘परिवर्तन चिंतन’ 08 अप्रैल 2024 को नई दिल्ली में आयोजित किया गया। ‘चिंतन’ को सशस्त्र बलों में संयुक्तता और एकीकरण को आगे बढ़ाने के लिए नए और नए विचारों, पहलों और सुधारों को आकार देने के लिए विचार-मंथन और विचार-विमर्श के रूप में तैयार किया गया था। संयुक्तता और एकीकरण संयुक्त संरचनाओं में परिवर्तन की आधारशिला हैं, जिस पर भारतीय सशस्त्र बल ‘भविष्य के लिए तैयार’ होने के इरादे से आगे बढ़ रहे हैं।
वायु और नौसेना बलों का तालमेलः हिंद महासागर क्षेत्र में युद्ध शक्ति को बढ़ाना विषय पर संगोष्ठीः दक्षिणी वायु कमान मुख्यालय ने वायु शक्ति अध्ययन केंद्र (सीएपीएस) के सहयोग से 25 फरवरी 2025 को ‘वायु और नौसेना बलों का तालमेलः हिंद महासागर क्षेत्र में युद्ध शक्ति को बढ़ाना’ विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी में दो सत्र शामिल थे, जिसमें मुख्यालय एकीकृत रक्षा स्टाफ, दक्षिणी वायु कमान मुख्यालय, भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और सीएपीएस के वरिष्ठ अधिकारी, सेवारत और सेवानिवृत्त दोनों ही एक साथ नजर आए। प्रतिभागियों ने समुद्री वायु संचालन में तालमेल बिठाने और युद्ध शक्ति को बढ़ाने पर विचार-विमर्श किया, संयुक्त परिचालन क्षमताओं को मजबूत करने पर बहुमूल्य जानकारियां और दृष्टिकोण प्रदान किए।
संयुक्त अभ्यासः
अभ्यास प्रचंड प्रहार 2025: भारतीय सशस्त्र बलों ने अरुणाचल प्रदेश में उत्तरी सीमाओं के साथ हिमालय के बेहद ऊंचाई वाले इलाके में एक तीनों सेवाओं के एकीकृत बहु-क्षेत्रीय अभ्यास, प्रचंड प्रहार का आयोजन किया। 25 से 27 मार्च, 2025 तक आयोजित तीन दिवसीय अभ्यास में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के समन्वित संचालन पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रचंड प्रहार नवंबर 2024 में आयोजित अभ्यास पूर्वी प्रहार के बाद हुआ है, जिसमें विमानन परिसंपत्तियों के एकीकृत अनुप्रयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इस अभ्यास ने संघर्ष के पूरे स्पेक्ट्रम को कवर करते हुए तीनों सेवाओं में एकीकृत योजना, कमान और नियंत्रण और निगरानी और फायर पावर प्लेटफार्मों के निर्बाध निष्पादन को पहचान दी।
एक्सरसाइज डेजर्ट हंट 2025: भारतीय वायु सेना के द्वारा 24 से 28 फरवरी 2025 तक जोधपुर वायु सेना स्टेशन पर एक्सरसाइज डेजर्ट हंट वर्ष 2025 नामक एक एकीकृत त्रि-सेवा विशेष बल अभ्यास आयोजित किया गया। इस अभ्यास में भारतीय थल सेना के विशिष्ट पैरा (विशेष बल), भारतीय नौसेना के मरीन कमांडो और भारतीय वायु सेना के गरुड़ (विशेष बल) शामिल थे, जिन्होंने एक साथ मिलकर एक नकली युद्ध जैसे वातावरण में भाग लिया। इस बेहद-तीव्रता वाले अभ्यास का उद्देश्य उभरती सुरक्षा चुनौतियों के प्रति त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए तीन विशेष बल इकाइयों के बीच अंतर संचालन, समन्वय और तालमेल को बढ़ाना था।
7. प्रौद्योगिकी एकीकरण और नेटवर्क- केंद्रित युद्ध रक्षा संचार नेटवर्क (डीसीएन): डीसीएन एक रणनीतिक, विशिष्ट, सुरक्षित और अत्याधुनिक संचार नेटवर्क है। डीसीएन का कार्यान्वयन भारतीय उद्योग की ताकत का प्रमाण है और इसने मेक इन इंडिया कार्यक्रम पर सरकार के जोर की पुष्टि की है। डीसीएन तीनों सेनाओं, एकीकृत रक्षा स्टाफ और सामरिक बल कमान में नेटवर्क केंद्रितता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह नेटवर्क पर्याप्त अतिरेक के साथ सुरक्षित प्रणाली के आधार पर तीनों सेनाओं को अभिसरित आवाज, डेटा और वीडियो सेवाएं प्रदान करता है।
एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (आईएसीसीएस): भारतीय वायु सेना की एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (आईएसीसीएस) वास्तविक समय पर समन्वय के लिए रीढ़ प्रदान करती है, जिससे थल सेना, नौसेना और वायु सेना की कई इकाइयों में व्यवस्थित प्रतिक्रियाएं सक्षम होती हैं। इस प्रणाली ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान अपनी क्षमता साबित की।
8. रक्षा सुधारों का वर्ष- 2025: रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने रक्षा मंत्रालय के सभी सचिवों के साथ मिलकर सर्वसम्मति से वर्ष 2025 को रक्षा मंत्रालय में ‘सुधारों का वर्ष’ मनाने का निर्णय लिया। इसका उद्देश्य सशस्त्र बलों को तकनीकी रूप से उन्नत युद्ध-तैयार बल में बदलना है, जो बहु-क्षेत्रीय एकीकृत संचालन में सक्षम हो। वर्ष 2025 में केंद्रित हस्तक्षेप के लिए पहचाने गए व्यापक क्षेत्रों में शामिल हैं:
- सुधारों का उद्देश्य संयुक्तता और एकीकरण पहल को और मजबूत करना तथा एकीकृत थिएटर कमांड की स्थापना को सुगम बनाना होना चाहिए।
- अंतर-सेवा सहयोग और प्रशिक्षण के माध्यम से परिचालन आवश्यकताओं और संयुक्त परिचालन क्षमताओं की साझा समझ विकसित करना।
भूमि, समुद्र और वायु में शक्ति प्रदर्शित करने की भारत की क्षमता अब सैद्धांतिक नहीं रह गई है यह संरचित, समन्वित और गहराई से एकीकृत है। राष्ट्र की तीनों सेनाओं का ढांचा अब एक एकजुट शक्ति के रूप में काम करता है। जैसे-जैसे आधुनिक खतरे पारंपरिक सीमाओं को धुंधला करते जा रहे हैं, यह एकीकृत स्थिति यह सुनिश्चित करती है कि चाहे ऊंचे हिमालय पर आक्रमण का सामना करना हो, समुद्री सीमाओं की सुरक्षा करनी हो या हवाई घुसपैठ को बेअसर करना हो, भारत इसके लिए एकदम तैयार, लचीला और एकजुट है। राष्ट्रीय सुरक्षा का भविष्य एकजुटता में निहित है और भारत पहले से ही उद्देश्य और संकल्प के साथ उस भविष्य की रूपरेखा तैयार कर रहा है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।