
हमारा प्रत्येक विचार हमारा भविष्य बनाता है Publish Date : 14/07/2025
हमारा प्रत्येक विचार हमारा भविष्य बनाता है
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
बचपन में ही हमारी आस्थाएं स्थापित होती हैं और फिर उन्हीं आस्थाओं का अनुभव करते हुए हम जीवन में आगे बढ़ते हैं। अपने जीवन में पीछे की ओर देखिए और ध्यान दीजिए कि कितनी बार आप उसके अनुभव से गुजरे हैं।
हम जो कुछ भी अपने विषय में सोचते हैं, वह हमारे लिए सच हो जाता है। मैं मानता हूं कि हर व्यक्ति, जिनमें मैं भी शामिल हूं, अपने जीवन में हर अच्छी या बुरी चीज के लिए स्वयं जिम्मेदार होता है। हमारे मस्तिष्क में आने वाला हर विचार हमारा भविष्य बनाता है। हममें से हर व्यक्ति अपने विचारों और अपनी भावनाओं द्वारा अपने अनुभवों को जन्म देता है। हम खुद परिस्थितियों को जन्म देते हैं और फिर अपनी कुंठा के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को दोषी ठहराते हुए अपनी ऊर्जा नष्ट करते हैं।
कोई व्यक्ति, कोई स्थान और कोई चीज हमसे अधिक शक्तिशाली नहीं है, क्योंकि अपने मस्तिष्क में केवल ‘हम’ ही सोचते हैं। जब हम अपने मस्तिष्क में शांति, तालमेल और संतुलन बुला लेते हैं, तो यह सब हमारे जीवन में भी आ जाता है। हम जो भी स्वीकार करते हैं, हमारा अवचेतन मन उसे स्वीकार कर लेता है। हमारे पास सोचने के लिए असीमित विकल्प होते हैं। हम अपने साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं. जैसा हमारे माता-पिता हमारे साथ करते थे।
हम उसी तरीके से स्वयं को डांटते और सजा देते हैं। हम सभी पीड़ितों द्वारा पीड़ित हैं, और शायद वे हमें कुछ ऐसा नहीं सिखा पाते, जो वे नहीं जानते थे। यदि आपकी मां नहीं जानती थी कि अपने-आप से प्यार कैसे करना है या आपके पिता नहीं जानते थे कि वह अपने-आप से प्यार कैसे करें, तो उनके लिए आपको खुद से प्यार करना सिखाना असंभव था।
यदि आप अपने माता-पिता को अधिक समझना चाहते हैं, तो उन्हें अपने बचपन के बारे में बताने के लिए प्रेरित कीजिए और यदि आप संवेदना के साथ सुनें, तो आपको पता चलेगा कि उनकी शंकाएं और सख्ती कहां से आई है। जिन लोगों ने ‘आपके साथ वह सब किया’ वे आपकी तरह ही भयभीत और सहमे हुए थे। हममें से हर कोई इस धरती पर एक सुनिश्चित समय और स्थान पर जन्म लेता है। हम यहां एक विशेष पाठ पढ़ने के लिए आए हैं, जो हमें आध्यात्मिक विकास के पथ पर आगे बढ़ाएगा। हम अपना लिंग, अपना रंग, अपना देश चुनते हैं और फिर हम किसी खास माता-पिता को खोजते हैं, जो उस स्वरूप को प्रतिबिंबित करेंगे, जिस पर हम जीवन में काम करना चाहते हैं। फिर जब हम बड़े होते हैं, तो आम तौर पर अपने माता-पिता पर अंगुली उठाते हैं और रिरियाते हुए शिकायत करते हैं। लेकिन वास्तव में हमने उन्हें इसलिए चुना, क्योंकि वे हमारे कार्यों के लिए बिल्कुल उपयुक्त थे।
हमारे बचपन में ही हमारी आस्थाएं स्थापित होती हैं और फिर उन्हीं आस्थाओं का अनुभव करते हुए जीवन में आगे बढ़ते हैं। अपने जीवन में पीछे की ओर देखिए और ध्यान दीजिए कि कितनी बार आप उसी अनुभव से गुजरे हैं। मेरा मानना है कि आपने उन अनुभवों को एक के बाद एक स्वयं बनाया, क्योंकि वे आपके अपने विश्वास को प्रतिबिंबित कर रहे थे। यह मायने नहीं रखता कि हमें कितने लंबे समय से कोई समस्या थी, या वह कितनी बड़ी है या वह हमारे जीवन के लिए कितनी घातक है।
आलोचना से बचें
आलोचना हमें उस व्यवहार में कैद कर देती है, जिसे हम बदलने की कोशिश कर रहे हैं। स्वयं को समझते हुए अपने साथ सौम्य रहना हमें उस कैद से निकलने में मदद करता है। याद रखिए आप वर्षों से खुद की आलोचना करते आ रहे हैं और इससे कोई लाभ नहीं हुआ। अपना अनुमोदन प्राप्त करने का प्रयास कीजिए और देखिए कि क्या होता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।