
राष्ट्रभाव वैश्विक एकता के लिए आवश्यक Publish Date : 13/07/2025
राष्ट्रभाव वैश्विक एकता के लिए आवश्यक
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
आज का मानव समाज अनेक समूहों में विभाजित है। राष्ट्र, राज्य और समाज एक ही इकाई के विभिन्न नाम हैं, इन सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं। ‘जहाँ स्वार्थ है, वहाँ संघर्ष है’ का सिद्धांत परस्पर संघर्षों को जन्म देता है। जब तक यह संघर्ष रहेगा, तब तक मानवता में एकता की कोई संभावना नहीं है। इसलिए, कई लोग इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि राष्ट्रवाद की भावना ही विभाजनकारी है और मानवीय एकता में बाधक है, इसलिए इसे जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए। समाजवादी विचारधाराएँ इसी सोच पर काम करती हैं।
दूसरी बात यह है कि राष्ट्रवादी भावनाएं सदियों से लोगों के हृदयों में गहरी जड़ें जमा चुकी हैं और उन्हें उखाड़ना अब संभव ही नहीं है। रूस में, जिस राष्ट्रवादी भावनाओं के विनाश के सिद्धांत पर आधारित साम्यवाद का प्रयोग किया, यह पाया गया कि जीवन के लिए प्रेरक तत्व पूरी तरह से बिखर गया है। रूसी क्रांति के बाद शुरुआती उल्लास के दौरान कुछ भौतिक विकास हुआ। पंचवर्षीय योजनाएं भी सफल रहीं, लेकिन धीरे-धीरे उत्साह कम होता गया और काम करने की प्रेरणा कम होती गई, यहां तक कि कारखानों में सेनाएं तैनात कर लोगों से जबरन काम करवाना पड़ा।
जब स्थिति बदतर हो गई, तो मातृभूमि या पितृभूमि जैसे शब्दों का प्रयोग करके राष्ट्र की भावना को जगाना पड़ा, ताकि उनकी सोई हुई भावनाओं को फिर से जगाया जा सके। मातृभूमि या पितृभूमि जैसे शब्दों के प्रयोग से जब स्नेह और अपनेपन की भावना जागृत होती है, तो सामाजिक परंपराओं और अपनेपन की भावना समाज के लिए काम करने की प्रेरणा पैदा करती है।
इस प्रकार, हमारे पास सभी देशों और विश्व समुदाय के बीच सद्भाव लाने का एकमात्र विकल्प बचता है। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इस सद्भाव को कैसे बनाया जाए। इस दिशा में अलग-अलग समय में कई प्रयोग हुए हैं। अतीत का साम्राज्यवादी सिद्धांत, जिसे छोटे देशों के बीच लड़ाई को समाप्त करने के लिए एक नया और शानदार समाधान के रूप में प्रस्तावित किया गया था, भी इन संघर्षों को समाप्त नहीं कर सका, क्योंकि यह भी स्वार्थ पर ही आधारित था।
पहले राष्ट्र संघ और अब संयुक्त राष्ट्र संघ भी दुनिया के देशों को एक सूत्र में पिरोने के असफल प्रयोग हैं। विश्व राज्य के बारे में चर्चा हुई, लेकिन क्या छोटे देश अपनी पहचान छोड़ने को तैयार हैं? ऐसी स्थिति में, जहाँ आप राष्ट्रीय भावना को नहीं मार सकते वहीं विश्व राज्य का निर्माण असंभव है, हां संपूर्ण विश्व एक परिवार का भाव प्रभावी हो सकता है लेकिन इसके लिए “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना का राष्ट्र और सशक्त होना चाहिए।।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।