
जीवन को देखने का दृष्टिकोण Publish Date : 04/07/2025
जीवन को देखने का दृष्टिकोण
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
मनुष्य अकेला नहीं रह सकता, क्योंकि उसे दूसरों से अलग रहना पसंद नहीं है। उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति समूह में सामूहिक रूप से रहना है। यही कारण है कि लोग मिलकर समाज के रूप में एक साथ रहते हैं। हम इस तरह से अपना जीवन अच्छे से जी सकते हैं तभी हम स्वयं का विकास और अपने भीतर के श्रेष्ठ गुणों को उजागर भी कर सकते है।
इस तरह के सामाजिक जीवन में व्यक्ति हर एक कदम पर विकसित होता है और धीरे-धीरे जीवन के अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ता है। अतः हमें एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनानी होगी, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति समाज के साथ घुलमिल सके और अपनी पूरी ताकत से उस समाज की सेवा भी कर सके।
हमें इसे एक मजबूत आधार प्रदान करना चाहिए, ताकि समाज का प्रत्येक व्यक्ति परम सत्य तक पहुँच सके। इसके लिए हमें बिना किसी स्वार्थ के समाज की सेवा करनी चाहिए। नर ही नारायण हैं इसलिए मनुष्य की सेवा करना ही ईश्वर की सेवा है, यह हमारे जीवन दर्शन की एक विशेषता है। हमारी संस्कृति के अनुरूप ही स्वाभाविक रूप से हमने हमेशा व्यक्ति की बुद्धि और मानव कल्याण की भावना को उसकी भौतिक संपदा की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है।
हमारे विचार में हृदय की विशालता, आत्मा की पवित्रता और उत्तम चरित्र ही हमारे जीवन के महान मूल्यों की कसौटी हैं। हम किसी व्यक्ति की महानता का मूल्यांकन उसके बाह्य संपदा से नहीं, बल्कि आंतरिक संपदा के आधार पर करते हैं।
आज जो बाह्य संपदा है, वह कल समाप्त भी हो सकती है। फिर हम ऐसी वस्तुओं के पीछे क्यों भागें जो केवल क्षणिक हैं। हमें मानव जीवन में उस संपदा का पीछा करना चाहिए, जो अद्वितीय है और जिसे निरंतर बढ़ाया जा सकता है।
महान मूल्य, ज्ञान और आत्मा की पवित्रता ही उस संपदा का निर्माण करते हैं। यही एकमात्र सत्य है जो शाश्वत है। अन्य देशों में लोग सेना के वीर प्रधान या राज्य के शक्तिशाली मंत्री में ईश्वर को देखते हैं। लेकिन हमारे देश में वीर पुरुषों और शासकों ने भी उन तपस्वियों के चरण स्पर्श किए हैं जो जंगलों में रहते हैं और जिनके पास कोई धन-संपत्ति उपलब्ध नहीं है।
यहां तक कि अपना एक छोटा-सा कपड़ा भी नहीं है। ऐसा क्यों होता है? इसका कारण है मानव जीवन को देखने का हमारा दृष्टिकोण।
इस मत के अनुसार हमारी आत्मा शाश्वत है, जो एक जन्म से दूसरे जन्म में तब तक विचरण करती रहती है, जब तक कि हम परम पूर्ण सत्य को नहीं देख लेते। इस गहन अनुभव ने हमें जीवन के प्रति यह दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।