ईश्वरीय इम्तिहान      Publish Date : 28/06/2025

                           ईश्वरीय इम्तिहान

                                                                                                                                                               प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

बहुत भाग्यवान होते हैं वह लोग, जो कि सही सलामत अपना जीवन बिता रहे हैं। जीवन के इम्तिहान कभी-कभी प्रशासनिक सेवा के इम्तिहान से भी कठिन हो जाते हैं।

वनिता आज शाम पार्क में टहल रही थी, अचानक एक दस वर्षीय बच्ची को उसकी सहायिका छोटी सी गाड़ी में बैठाकर घुमा रही थी। उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ और पूछ बैठी, क्या हुआ? कोई परेशानी है क्या? जवाब मिला, हां जी, बच्ची को दिमागी बीमारी है और यह चल भी नहीं पाती है।

इसके बाद वनिता दुखी मन से घर वापस आ गई। घर तो आ गई, पर विचार उसे बचपन में ले गए। स्कूल की ललिता मैम को वह बहुत पसंद करती थी, असल में ललिता मैम सब बच्चों को बहुत प्यार से पढ़ाती थीं। वह उनके घर के पास ही रहती थी। एक दिन मैम ने उससे कहा कि वनिता, जरा मेरे साथ ये कॉपियां घर पहुंचा दो।

                                                           

मैम का कोई भी काम करने को वनिता हमेशा तत्पर रहती थी, इसलिए वह चल दी। घर का ताला खोल मैम उसे बाहर ही बैठाकर, एक कमरे में गई। कमरे से अजीब सी आऊं आऊं की एक आवाज आ रही थी।

वनिता बिना देखे नहीं रह पाई और झांकने लगी। अचानक उसे बहुत घबराहट होने लगी, क्योंकि उसने अपने जीवन में पहली बार ऐसा कुछ देखा था। वहां एक दस बारह वर्ष का लड़का बिस्तर पर लेटा था, मैम जल्दी से उसको इधर उधर सरका के बिस्तर साफ कर रही थी, उसके शरीर को भी पोछ रही थी।

वनिता बोल पड़ी, मैम, मैं घर जा रही हूं और घर आकर अपनी मम्मी से लिपट कर रोने लगी।

अरे, बता तो सही, क्या हुआ, किसी से लड़ाई हुई क्या?

मम्मी, मेरी ललिता मैम मुझे अपने घर ले गई थीं, आप जानती हैं उनको, वहां मैंने एक लड़के को देखा, जो चल फिर नहीं सकता था, ठीक से बोल भी नहीं सकता था।

अरे बेटा, अभी भूल जा, खाना खा लो, आराम करो, वो लड़का कुछ बीमार होगा, शाम को उनके घर चलेंगे।

शाम को वनिता और उसकी मम्मी ललिता मैम के घर पहुंच गई। दरवाजा खोलते ही उन्होंने बड़े प्रेम से उन्हें बैठाया। बोली, मुझे पता था, ये मेरे बेटे अमित को देखकर घबरा गई होगी, और फिर जरूर आएगी।

मैं और मेरा बारह वर्ष का बेटा, हम दोनों ही यहां रहते हैं। इसके पापा एक रोड एक्सीडेंट में पांच वर्ष पूर्व नहीं रहे। शादी के चार वर्ष बाद एक बेटा हुआ, एक वर्ष हम बहुत खुश रहे। दूसरे ही वर्ष से हमें लगा कि हमारे बेटे में कुछ कमी है। मेरे पति कई डॉक्टरों के पास ले गए, तो निष्कर्ष ये निकला कि ये दिमागी पक्षाघात का शिकार है, हाथ, पैर भी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए।

ईश्वर भी कभी-कभी एक के बाद एक परीक्षाएं लेता है, जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं, पर जो उन पर विजय प्राप्त करता है, वही सही मायने में मानव कहलाता है, वरना जानवर और मनुष्य में क्या फर्क रह जाएगा। फिर एक कठिन घड़ी में मैं बेटे के साथ अकेली रह गई।

डिग्री होल्डर थी इसलिए शिक्षिका के तौरपर नौकरी लग गई। मेरे बेटे अमित के निजी काम के लिए कोई नौकर भी तैयार नहीं होता। सब कुछ खिलाना, पिलाना और सब निजी क्रियाएं भी मैं ही करती हूं। पर कभी मन बहुत परेशान हो जाता है, मेरे बाद इसका क्या होगा? क्योंकि डॉक्टर कहते हैं, ये जन्मजात बीमारी है जो कभी ठीक नहीं होती हैं।

मम्मी और वनिता अवाक् वह सब सुने जा रही थी। मम्मी ने उनसे कहा, ‘‘मैम, मेरे लायक कोई भी सेवा हो तो बताएं।’’

विचारों से बाहर आते ही, ईश्वर की याद आई. और वह दीया जलाने लगी। बहुत भाग्यवान हैं वे लोग, जो सही सलामत जीवन बिता रहे हैं। जीवन के इम्तिहान कभी-कभी प्रशासनिक सेवा के इम्तिहान से भी कठिन हो जाते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।