
जलवायु परिवर्तन का फसलों पर व्यापक प्रभाव, उत्पादन में गिरावट Publish Date : 17/05/2025
जलवायु परिवर्तन का फसलों पर व्यापक प्रभाव, उत्पादन में गिरावट
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
वैश्विक तापमान बढ़ने से कम होती गेहूं, मक्का और जौ आदि फसलों की पैदावार
दुनियाभर में तेजी से बदलती जलवायु अब खेती को सीधे तौर पर कुप्रभावित करने लगी है। वैश्विक तापमान में वृद्धि और सूखे की बढ़ती घटनाओं के चलते प्रमुख खाद्य फसलों जैसे गेहूं, मक्का और जौ जैसी अन्या फसलों की पैदावार में गंभीर गिरावट आई है।
यह जानकारी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अध्ययन में सामने आई है। इसके नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ में प्रकाशित किए गए हैं। अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते गेहूं की पैदावार में औसतन 10 फीसदी, मक्के में 4 फीसदी, जबकि जौ की उपज में 13 फीसदी तक की कमी देखी गई है। ज्यादातर मामलों में यह नुकसान इतना बड़ा है कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने से मिलने वाले फायदों को भी पीछे छोड़ देता है, जबकि यह ग्रीन हाउस गैस प्रकाश संश्लेषण को बढ़ावा देकर पौधों की बढ़त और उपज में सुधार कर सकती है।
इसका मतलब यह है कि यदि जलवायु परिवर्तन जैसी चरम परिस्थितियां न होतीं, तो इन फसलों की पैदावार मौजूदा स्तर से कहीं बेहतर होता। शोधकर्ताओं का कहना है कि बढ़ती गर्मी और हवा में नमी की कमी, दोनों मिलकर फसलों पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं।
रोजमर्रा की जिंदगी भी हो रही प्रभावित
अध्ययन के प्रमुख लेखक डेविड लोबेल का कहना है कि हमें सिर्फ प्रमुख अनाजों पर ही नहीं, बल्कि कॉफी, कोको, संतरा और जैतून जैसी फसलों पर भी ध्यान देना होगा, जो भले ही. भूख मिटाने के लिए जरूरी न हों। इनकी आपूर्ति में रुकावट और कीमतों में उछाल बताता है कि जलवायु परिवर्तन का असर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को भी झकझोर सकता है।
भविष्य की चुनौतियों का संकेत
यह रिपोर्ट गत मार्च में प्रकाशित एक अन्य शोध की चेतावनी को भी दोहराती है, जिसमें कहा गया था कि यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बड़े निवेश नहीं किए गए तो अमेरिका जैसी अर्थव्यवस्थाओं की उत्पादकता भी गिर सकती है। इससे साफ है कि भविष्य की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने की भी गंभीर निवेश करने जरूरत है।
जलवायु मॉडल की सीमाएं और खेती की रणनीति पर प्रभाव
इस अध्ययन का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि मौजूदा जलवायु मॉडल कई बार वास्तविक स्थिति का सही पूर्वानुमान नहीं लगा पाते। इसका प्रभाव किसानों द्वारा अपनाई गई अनुकूलन रणनीतियों पर भी पड़ता है। उदाहरण के तौर पर कुछ क्षेत्रों में देर से पकने वाली किस्मों को बढ़ावा दिया गया, ताकि वे लंबे समय तक बढ़ती रहें, लेकिन अब सूखे की तेजी से बढ़ती घटनाएं इन योजनाओं को असफल बना रही हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।