
स्वस्थ पृथ्वी के लिए पंचभूतों को भी प्रदूषण से बचाना होगा Publish Date : 15/05/2025
स्वस्थ पृथ्वी के लिए पंचभूतों को भी प्रदूषण से बचाना होगा
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा पंचतत्व रचित अति अधम शरीरा। भारतीय दर्शन तथा योग में पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और गगन को पंचतत्व, यानी पंच महाभूत कहा जाता है। इस पृथ्वी के समस्त सजीव-निर्जीव इन्हों पंचभूतों से निर्मित हैं। मगर समय के साथ ये भी प्रभावित हुए है और आज इन सभी का हाल भी बेहाल हो चुका है, खासकर प्रदूषण का इन सब पर गंभीर असर पड़ा है।
निस्संदेह, आज हमारी पृथ्वी मृदा यानी मिट्टी और भूमि प्रदूषण से जूझ रही है। औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि रसायनों के अत्याधिक उपयोग और प्लास्टिक कचरे के कारण मिटूटी की गुणवत्ता कम होती है, जिससे इसके पोषक तत्वों में कमी आती है। नतीजतन, फसलों की पैदावार कम होती है। ठोस कचरे, औद्योगिक अपशिष्ट और रासायनिक पदार्थों के कारण भूमि दूषित होती है। यह प्रदूषण पौधों के विकास को प्रभावित करता है और मिट्टी में वास करने वाले सूक्ष्म जीवों को नुकसान पहुंचाता है। प्रदूषण के कारण जल की स्थिति भी बहुत खराब है। नदियों व समुद्री स्तर तक प्रदूषण व्यापकता में पहुंच चुका है।
औद्योगिक व घरेलू कचरे, कृषि रसायनों और प्लास्टिक के कारण जलस्रोत भी दूषित होते हैं। इससे बीमारियां फैलती हैं और जलीय जंतुओं की मृत्यु होती है। समुद्र में पहुंचने वाले प्लास्टिक के कचरे, औद्योगिक अपशिष्ट और जलयानों से होने वाले तेल रिसाव से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर पड़ता है।
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इसे ग्लोबल वार्मिंग की संज्ञा दी जाती है। इससे जलवायु परिवर्तन को न्योता मिल रहा है, जो एक वैश्विक समस्या का रूप धारण करती जा रही है। कहीं ज्यादा गर्मी, कहीं हाड़ कंपाती ठंड, कहीं सूखा, तो कहीं बाढ़ जलवायु परिवर्तन के कारण ही हमें यह सब देखने को मिल रहे हैं।
चरम मौसम की घटनाएं, मसलन, अचानक तेज बारिश होने या फिर सूखा पड़ जाने की मूल वजह जलवायु परिवर्तन ही है। जलवायु परिवर्तन के कारण न केवल गर्मियों में, बल्कि सर्दियों में भी जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसके साथ ही कई अन्य तरह की मौसमी घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य, दोनों को नुकसान पहुंच रहा है। प्रदूषण का बुरा असर पंचभूतों पर पड़ता है। इससे मानव के जीव-जंतुओं की सेहत, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है।
प्रदूषण ने आसपास की आबोहवा को इतना दूषित कर दिया है कि इसका प्रभाव हमारी उम्र पर भी पड़ने लगा है, जिससे हम समझ सकते हैं कि चार महाभूतों की क्या गति हो चुकी है। अब रही बात पांचवें और अन्तिम महाभूत आकाश करें, तो शहरीकरण और अधिक या अवांछित रोशनी के कारण, जिसे प्रकाश प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है, आकाश के प्राकृतिक दृश्य बाधित होने लगे हैं। हालात यह है कि आकाश के मनोरम दृश्य को देखने के लिए अब गाँवों और देहातों का रुख करना पड़ता है। न केवल आकाश दर्शन, बल्कि पक्षी और अन्य जीव-जंतु भी इस प्रकाश प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं।
नतीजतन, इसके कारण जैव-विविधता को भी नुकसान पहुंचता है। बात करें कि आकाश का विशिष्ट गुण है शब्द। इस लिहाज से ध्वनि प्रदूषण भी आकाश महाभूत को तार-तार कर रहा है। वाहनों, निर्माण गतिविधियों और विभिन्न उद्योगों से निकलने वाली तेज आवाजों के कारण ध्वनि प्रदूरण होता है, जिसका मनुष्यों और जीवों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
जाहिर है, प्रदूषण का पंचभूतों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे मानव की सेहत और जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था आदि सभी को नुकसान पहुंचता है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे, जैसे अक्षय ऊर्जा का अधिकतम उपयोग करना, कचरे का सही प्रबंधन, पौधारोपण करना तथा प्रदूषण के बारे में समाज में जागरुकता फैलाना। हमें अब कमर कस लेनी चाहिए, अन्यथा नई पीढ़ी को हम स्वच्छ पृथ्वी नहीं सौंप सकेंगे। प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को मनाया जाने वाले विश्व पृथ्वी दिवस की इस बार की थीम है। ‘‘हमारी शक्ति हमारा ग्रह’’ लिहाजा, यह उचित मौका है कि हम अपने ग्रह के बारे में गंभीरता से विचार करें।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।