
भारत में मशरूम की खेती की स्थिति और सम्भावनाएं Publish Date : 26/04/2025
भारत में मशरूम की खेती की स्थिति और सम्भावनाएं
डॉ0 गोपाल सिंह एवं डॉ0 आर. एस. सेंगर
भारत में सबसे पहले वर्ष 1961 में हिमाचल प्रदेश में मशरूम की खेती आरम्भ की गई थी। तब से मशरूम की खेती का प्रचार-प्रसार बढ़ता ही जा रहा है। आंकडों के अनुसार वर्ष 1995-96 में मशरूम का उत्पादन 35,000 टन हुआ जबकि वर्ष 1969-70 में यह मात्र 100 टन ही था, जबकि वर्तमान दशक में इसके उत्पादन में ओर भी तेजी दर्ज की गई है।
पहले मशरूम की खेती देश के पहाड़ी क्षेत्रों तक ही सीमित थी परन्तु अब इसकी खेती मैदानी क्षेत्रों में भी व्यापारिक स्तर पर की जाने लगी है। वर्ष 1995-96 में तामिलनाडु में 4800 टन, पंजाब में 4500 टन, हिमाचल प्रदेश में 4000 टन, उत्तर प्रदेश में 3800 टन, हरियाणा में 3500 टन, पश्चिम बंगाल में 1550 टन, मध्य प्रदेश में 1400 टन मशरूम का उत्पादन हुआ। आन्ध्र प्रदेश, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा में उत्पादन 700 एवं 900 टनों के बीच हुआ। विगत तीन-चार वर्षों में देश के सभी राज्यों के उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।
कृषि प्रधान देश होने के चलते भारत में मशरूम की खेती के विस्तार की पर्याप्त सम्भावनाएं हैं क्योंकि इसकी खेती के लिए कृषि अवशिष्टों की आवश्यकता होती है तथा भारत में कृषि अवशिष्ट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। अनुमान लगाया गया है कि भारत में प्रतिवर्ष 27 करोड़, 33 लाख टन कृषि अवशिष्ट उत्पन्न होता है। यदि इसका मात्र पांच प्रतिशत भाग मशरूम की खेती के काम में लाया जाए तो प्रतिवर्ष तीन लाख टन मशरूम उत्पन्न किया जा सकता है।
मशरूम की प्रजातियाँ
दुनिया में खाने योग्य मशरूम की लगभग 10,000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां कृत्रिम खेती के लिए उपयुक्त पाई गई हैं। भारत में भी मशरूम की कई प्रजातियों की खोज की जा चुकी है, परन्तु भारतीय वातावरण में तीन प्रकार की प्रजातियां ही अधिक उपयुक्त मानी जाती हैं। यें हैं- आयस्टर मशरूम, बटन मशरूम और पैडी-स्ट्रा मशरूम।
आयस्टर मशरूम की खेती बहुत आसान एवं सस्ती है। मशरूम की इस प्रजाति में दूसरी मशरूम प्रजातियों की तुलना में औषधीय गुण भी अधिक होते है। दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई एवं चैन्नई जैसे महानगरों में इसकी बड़ी मांग है। इसीलिए विगत तीन वर्षों में इसके उत्पादन में 10 गुना वृद्धि हुई है। तमिलनाडु और उड़ीसा में तो यह गांव-गांव में बिकता है। कर्नाटक राज्य में भी इसकी खपत काफी है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान और गुजरात राज्यों में भी आयस्टर मशरूम की कृषि लोकप्रिय हो रही है।
बटन मशरूम निम्न तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है परन्तु अब ग्रीन हाउस तकनीक द्वारा यह हर जगह उगाया जा सकता है। सरकार द्वारा बटन मशरूम की खेती के प्रचार-प्रसार को भरपूर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। फलस्वरूप अब इसका उत्पादन 20 कि.ग्रा. प्रति वर्गमीटर से अधिक है, जबकि तीन दशक पूर्व प्रति वर्ग मीटर मात्र 3 कि.ग्रा. था।
पैडी-स्ट्रा मशरूम की खेती भारत के पूर्वी राज्यों में अधिक लोकप्रिय है। इसकी कृषि गर्मी के तीन महीनों में की जाती है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में यह बहुतायत से उगाया जाता है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी इसकी खेती लोकप्रिय हो रही है।
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी मशरूम की काफी मांग है। यह ताजे रूप में सुखाकर व प्रसंस्कृत कर बंद डिब्बों में विदेशों को भेजा जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस व अन्य यूरोपीय देश भारतीय मशरूम के बड़े ग्राहक हैं। वर्ष 1994-95 एवं 1995-96 में क्रमशः 4000 एवं 5000 लाख रुपये मूल्य का मशरूम विदेशों को निर्यात किया गया।
विकास का आधार
मशरूम कम निवेश पर कम समय पर अधिक लाभ देने वाली खेती है। इसलिए भारत सरकार ने इसके विकास के लिए कई कारगर कदम उठाए हैं। आठवीं पंचवर्षीय योजना में भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने मशरूम की खेती को बढ़ावा देने एवं इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए एक करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। देश के कई राज्यों में मशरूम की खेती में वृद्धि के लिए शोध कार्य किए जा रहे हैं, जिनके परिणाम आ जाने पर मशरूम की खेती का व्यापक विस्तार होगा।
मशरूम को प्रसंस्कृत करने की नई-नई इकाइयां खुल रही हैं। वर्तमान समय में राष्ट्रीय मशरूम प्रशिक्षण और अनुसंधान केन्द्र तथा अखिल भारतीय समन्वित मशरूम विकास परियोजना मशरूम की कृषि के विकास और खोज के क्षेत्र में सहायता प्रदान कर रही है।
मशरूम की खेती को स्वरोजगार के रूप में अपनाने के लिए हमारे देश के कुछ बैंकों के द्वारा वित्त पोषण की व्यवस्था की गई है। ये बैंक हैं भारतीय स्टेट बैंक की कृषि विकास शाखा, भारतीय सेंट्रल बैंक की कृषि विकास शाखा, और पंजाब नेशनल बैंक। यह बैंक सस्ती ब्याज दर पर प्रोजेक्ट के अनुसार लघु एवं दीर्घावधि को ऋण सुविधा प्रदान करते हैं। शहरी क्षेत्र के बेरोजगार युवक नेहरू रोजगार योजना और ग्रामीण क्षेत्र के युवक प्रधानमंत्री रोजगार योजना का लाभ लेकर बिना किसी दिक्कत के मशरूम की खेती प्रारम्भ कर अपनी बेरोजगारी दूर कर सकते हैं।
समय-समय पर मशरूम की खेती का प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाया जाता है। प्रशिक्षण कार्यक्रम में सम्मिलित होकर मशरूम की खेती की विधि जानी जा सकती है। वैसे मशरूम की खेती की विधि बड़ी आसान है। यह बहुत तकनीकी नहीं है। बिना पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी इसकी खेती कर सकता है। गरीबों के लिए तो मशरूम की खेती बहुत बढ़िया व्यवसाय है क्योंकि उसमें लागत कम आती है, आय अधिक है लाभ भी कम समय में हो जाता है।
अतः बेरोजगार नवयुवकों, भूमिहीनों एवं गरीबों को मशरूम की खेती अपनानी चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि आज मशरूम की खेती रोजगार प्रदान करने एवं गरीबी दूर करने का सबसे अच्छा साधन बनकर सामने आया है।
लेखकद्वयः सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ के प्रोफेसर हैं।