
फसल और पशुधन का एकीकरणः किसान का आर्थिक लाभ Publish Date : 24/04/2025
फसल और पशुधन का एकीकरणः किसान का आर्थिक लाभ
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु
फसल और पशु्धन एकीकरणः- कृषि-पारिस्थितिकी के एक सिद्धांतं के रूप में, इसमें संसाधन-बचत प्रक्रियाओं की एक श्रंखृला शामिल होती है जो फसल और पशधुन उत्पादन के बीच लाभकारी तालमेल बनाकर प्राकृतिक संसाधनों के कुशल पुनचर्क्रण का समर्थन करती है, इस प्रकार एक प्रणाली के आउटपुट को दूसरी प्रणाली के लिए इनपुट या संसाधनों के रूप मे उपयोग किया जा सकता हैं। यह एकीकिण मुख्य रूप से चार स्तम्भों पर आधारित होता हैः
1) फसल उत्पादन के माध्यम से उत्पादित चारे का उपयोग पशु-उत्पादन (चारा फसलें, फसल अवशेष, परती) आदि के पक्ष में किया जाता है।
2) विविध खाद्य और गैर-खाद्य उत्पादों, जैसे दूध, मांस, शहद, ऊन, चमड़ा और अंडे तथा बायोगैस ईंधन आदि के स्रोत के रूप में पशुधन।
3) फसल उत्पादन और अन्य कृषि गतिविधियों, जैसे जुताई, मडाई, चराई, बुआई और फसल का परिवहन, आदि के पक्ष में परिवहन और मसौदा शस्य क्रिया।
4) खेती की गतिववधियों के इनपुट के रूप में पशुधन, जैसे खाद, चारागाह प्रबंधन, और जानवरों का रौंदना।
फसल और पशुध्न एकीकरण में किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण कार्य
➢ फसल और पशु्धन के एकीकरण के लिए उपयुक्त फार्म किसी भी फसल और पशुधन के एकीकरण में संलग्न होने से पहले, जानवरों के शेडड और चराई के लिए उपयुक्त स्थान, खलिहानों के लिए पर्याप्त् चारा या उप-उत्पाद, पर्याप्त् जानकारी के संदर्भ में फार्म की स्थिति का आकलन करने की आवश्यक्ता है। विभिन्न प्रकार के जानवरों को खिलाने, खलिहान की साफ-सफाई और उनका उपचार करने पर।
➢ एकीकरण का उचित-आकलन करें कि क्या एकीकरण पशुधन को अपने इनपुट और आउटपुट कार्यों (पशुखाद का उपयोग, स्वयं के उपभोग या बिक्री के लिए पशु-उत्पादों का उपयोग) को पूरा करने की अनमुति प्रदान की है।
➢ पशु इनपुट्स की पहुंच-कृषि प्रणाली के अंदर और बाहर पर्याप्त श्रम उपलब्ध होना, अच्छी गुणवत्ता का पर्याप्त् चारा और पानी, पशुचिकित्सा सहायता और जानवरों की उपयुक्त् नस्लें होना महत्वपूर्ण है।
➢ पशु-जनसंख्या- कृषि पशुओं की संख्या को परिभाषित करतें समय, ध्यान रखें कि आर्थिक लाभ तब ही अधिक होगा जब कम पशुओं को रखा जाएगा और उन्हें अच्छी तरह से खिलाया पिलाया जाएगा।
➢ पशुचयन- पशुचयन के मानदंडों के अंतर्गत भोजन की आवश्यकताएं, विकास अवधि, उत्पादन क्षमता, स्थानीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूलता, भोजन और गरै-खाद्य लाभों के लिए पशुधन आउटपुट का उपयोग शामिल है। फसल और पशु्धन एकीकरण के लिए कृषि -पारिस्थितिकी निर्भरता।
➢ पशु्धन उत्पादन को स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल बनाना- पशुधन उत्पाद जिनकी आवश्यकताएं स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के लिए उपयुक्त हों, उपयुक्त स्थानीय प्रजातियों का प्रजनन, स्थानीय कृषि-पारिस्थितिकी और सामाजिक स्थितियों का सम्मान करना।
➢ स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने वाली पशु्धन प्रणाली को बढावा देना- कृषि प्रणाली पर पशुचारे का उत्पादन और उपयोग, खपत जैविक पद्वतियों का उत्पादन।
पशुधन और फसल विविधीकरण की संभावना
✓ कृषि प्रणालियों में चारा फसलों और पेडों को एकीकृत करें- फसल चक्र, फसल संघ और कृषि वानिकी को बढावा दें, जिसमें पशुचारा और चारा फसलों और पेड़ों का उत्पादन शामिल है। फसल और पशुधन एकीकरण निम्नलिखित कृषि, सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिक लाभ प्राथमिक रूप से तय करना है।
✓ यह विधि कृषि उपयोग में सुधार करती है और प्रति इकाई क्षेत्र की उत्पादकता को बढाती है।
✓ यह विविध प्रकार के उत्पाद प्रदान करती है, जिससे खाद्य सुरक्षा और पोषण का स्तर बढता है।
✓ यह भुखमरी का मुकाबला करने और जोखिम प्रबंधन रणनीतियाँ प्रदान करती है (जानवरों को ‘‘खुरका बैंक’’ के रूप में जरूरत के समय में धन जुटाने की अनुमति प्रदान करती है)।
✓ यह उचित फसल चक्र और जैविक खाद के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता और मिट्टी की भौतिक संरचना में सुधार करती है।
✓ यह पशुचराई और फसल चक्र के माध्यम से खरपतवार, कीटों और बीमारियों को कम करती है।
✓ यह फसल अवशेषों और पशुधन अपशिष्टों का पुनचक्रण और उपयोग करती है।
✓ यह किसान की आर्थिक स्थिति को मजबूत करती है (बाहृय आदानों - उर्वरक, कृषि रसायन, चारा, ऊर्जा, आदि पर कम निर्भर है)।
✓ यह किसान परिवार की भूमि और श्रम संसाधनों पर उच्च शुद्ध रिटर्न की अनुमति देता है।
निष्कर्षः
कृषि के अधकिांश इतिहास में पशुधन को फसल उत्पादन प्रणालियों में एकीकृत किया गया है, जो उर्वरता, खरपतवार और कीट नियंत्रण और कृषि अवशेषों का विघटन प्रदान करता है। पशधुन किसानों के लिए एक अतिरिक्त आय का स्रोत भी प्रदान कर सकता है, साल भर नकदी प्रवाह पैदा कर सकता है या बारहमासी फसल का उत्पादन शुरू होने से पहले के वर्षों में आय प्रदान कर सकता है। हालाँकि, पशुधन भी संदषूण के स्रोत हो सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ पैदा हो सकती हैं, विशेषकर उन किसानों के लिए जो ऐसी फसलें उगाते हैं जो ताजा खाई जाती हैं, जैसे कि फल और सब्जियाँ आदि।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।