दवाओं में मिलावट और उनका स्वास्थ्य पर कुप्रभाव      Publish Date : 23/04/2025

   दवाओं में मिलावट और उनका स्वास्थ्य पर कुप्रभाव

                                                                                                   प्रोफसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

दवाओं में मिलावट करना कोई नया विषय नहीं है। नकली दवाओं की पकड़-धकड़ की खबरें अक्सर मीडिया में आती ही रहती हैं। बाकी पदार्थों से अलग हटकर दवाओं की मिलावट अच्छे या बुरे स्वास्थ्य को नहीं बल्कि जिंदगी और मौत को निर्धारित करती है। जीवनरक्षक दवाइयों के मामलों में दवा बदलने का मौका नहीं होता है, यहां मिलावट आपको सीधा मौत ही देती है। विभिन्न प्रकार की दवाओं में मिलावट के आपके स्वास्थ्य पर अनेक असर पड़ सकते हैं, जैसे सही वक्त पर शुद्ध दवा न मिलने पर रोग का बढ़ जाना, परिणामस्वरुप शरीर के अन्य हिस्सों पर उसका असर होना।

                                      

मिलावटी दवा में मौजूद मिलावटी पदार्थों का शरीर पर सीधा हानिकारक असर होना, जिसके कारण दूसरी बीमारियां तथा समस्याएं पैदा हो जाना आदि। दवाइयों में मिलावट अथवा नकली दवाइयों को कई पहलुओं से देखा जा सकता है, जैसे जानबूझकर की गयी मिलावट, लापरवाही के कारण हुई मिलावट तथा अनजाने में की गई मिलावट आदि। ज्ञात हो कि अंग्रेजी दवाइयां फैक्ट्रियों में कच्चे माल के रूप में विभिन्न केमिकलों का इस्तेमाल कर अलग-अलग विधियों द्वारा तैयार की जाती है। यदि कच्चा माल शुद्ध नहीं है तो उसकी अशुद्धियां भी दवा की गुणवत्ता पर असर डालती हैं। इसके बाद यदि बनाने की विधि में कोई कमी या लापरवाही बरती गयी तो उससे भी दवा की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।

इसके अलावा जानबूझकर अलग से मिलाया गया कोई मिलावटी पदार्थ तो उसकी गुणवत्ता पर असर डालेगा ही। मिलावटी दवा का स्वास्थ्य पर पड़ने वाला असर दवा में मिलाये गए पदार्थ की केमिस्ट्री तथा बायोलॉजी से हुई क्रियाओं पर निर्भर करता है।

मिलावटी दवाओं के स्वास्थ्य पर कुप्रभावों में मौत के अलावा एलर्जी व अन्य त्वचा संबंधी बीमारियां, रिएक्शन, उल्टी, दस्त, सरदर्द, तेज बुखार, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का नाश, हाई ब्लड प्रेशर, कैंसर, ब्रेन हेमरेज, पागलपन, हड्डियों का खोखलापन, दवा पर निर्भरता, बालों का झड़ना व परमानेंट रूप से उड़ जाना आदि के अलावा अनेक लघु व दीर्घकालिक शारीरिक व मानसिक परेशानियां तथा बीमारियां भी शामिल हैं। वर्ष 2002 में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडीकल साइंसेज़ (एम्स), नई दिल्ली में किये गये एक अध्ययन में यह पाया गया कि वैद्यों द्वारा अपने मरीजों को दी गयी आयुर्वेदिक दवाओं में से 31 प्रतिशत में कॉटर्टीकोस्टीरॉयड्स की मिलावट की गयी थी, जबकि कॉटर्टीकोस्टीरॉयड्स की यह मिलावट होम्योपैथिक दवाओं में 3.3 प्रतिशत तथा गुप्त दवाओं में 32 प्रतिशत तक पाई गयी।

                                      

यह दवाइयां जोड़ों के दर्द (Osteoarthritis), दमा (bronchial asthma), त्वचा की एलर्जी, मधुमेह (Diabetes), नर्वस सिस्टम में कमी (Neuropathy), हाइपोथाइरायड (Hypothyroidism), सफेद दाग (Leucoderma) तथा हृदय रोगियों (Cardiac Problems) के लिए दी गयी थीं। कार्टीकोस्टीरॉयड्स का प्रयोग शरीर पर घातक साइडइफेक्ट्स छोड़ता है, जिनमें उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हड्डियों का खोखलापन (Osteoporosis), मोतियाबिंद (Cataract), मांस पेशियों की कमजोरी, पेट का अल्सर, शरीर पर काले तथा नीले निशान पड़ना, जोड़ों और मांसपेशियों की सूजन (Edema), शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, मुहांसे, त्वचा का पतला होना, घावों के भरने में देरी होना, आदि शामिल हैं।

अन्य मिलावटी, अशुद्ध तथा हानिकारक उत्पादों का स्वास्थ्य पर कुप्रभाव

खाने-पीने की वस्तुओं तथा सौंदर्य प्रसाधनों के अलावा अनेक ऐसी वस्तुएं हैं जो आम आदमी रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग करता है और अनजाने में ही उनके उपयोग से होने वाले नुकसानों का खामियाजा भुगतता है। उदाहरण के लिए मच्छरों, कॉकरोचों और अन्य यरेलू व खेती-बाड़ी के कीड़े-मकोड़ों को मारने के लिए अनेक प्रकार के पेस्टीसाइडों का प्रयेग किया जाता है, जिनमें से कई बार कुछ पेस्टीसाइड उनके हानिकारक प्रभाव के कारण प्रतिबंधित होते हैं। इन हानिकारक केमिकलों को मिलाकर पेस्टीसाइडों के नाम पर बेचा जाता है। इसी प्रकार घरों में पूजा व खुशबू के लिए उपयोग की जाने वाली अगरबत्ती तथा धूपबत्तियों में परफ्यूम के जरिये अत्यंत खतरनाक एरोमा-केमिकल्स को मिलाया जाता है जो जलने पर सांस द्वारा शरीर में प्रवेश कर दिमाग व शरीर पर हानिकारक प्रभाव छोड़ते हैं।

                                      

घरों में प्रयोग की जाने वाली फिनायल में भी उसे सस्ता करने के लिए अनेक हानिकारक पदार्थ मिलाये जाते हैं। किसी जमाने में पैकेजिंग की दुनिया में क्रांति लाने वाली प्लास्टिक आज अपने साथ जुड़ी समस्याओं व हानिकारक प्रभावों के कारण समूचे मानव समाज के लिए सरदर्द बनी हुई है। केमिकल अशुद्धियों से भरपूर प्लास्टिक की थैलियों में खाद्य पदार्थों का भण्डारण स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि भण्डारण के दौरान प्लास्टिक की वे अशुद्धियां आसानी से खाद्य पदार्थों में समा जाती हैं और शरीर में जाकर अपना हानिकारक प्रभाव डालती हैं। इसके अलावा त्वचा पर छूने वाले अनेक उत्पाद, जैसे बड़ी के फीते, जूते-चप्पल, चश्मे के फ्रेम आदि कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं जो हमारे शरीर पर रहकर इनमें छिपी अशुद्धियों को शरीर के अंदर भेजते हैं।

आजकल बाजार में यह जुमला आम सुनने तथा पढ़ने को मिलता है कि फैशन के इस दौर में गारंटी की उम्मीद न करें। इस जुमले को पैदा करने में नकली व मिलावटी वस्तुओं का मुख्य हाथ है। कपड़ों के रंगों की ही बात ले लीजिए, सूती से लेकर सिंथेटिक तक किसी के रंग के पक्के होने की गारंटी नहीं है। गरम पानी में कॉस्टिक सोडा से धोने की बात तो छोड़ ही दीजिए ठण्डे पानी में डुबोते ही रंग निकल जाता है, मानों यह रंग नहीं बल्कि धूल हो। कपड़ों के यह रंग जब शरीर के संपर्क में आते हैं तो एलर्जी सहित कैंसर जैसे कई रोगों का कारण भी बनते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।