दिल क्या चाहे और दिमाग क्या समझाए      Publish Date : 20/04/2025

          दिल क्या चाहे और दिमाग क्या समझाए

                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

दिल और दिमाग दोनों जिस काम पर राजी हो जाएं, उस काम को करना आसान हो जाता है। लेकिन समस्या यह है कि अधिकतर इनके बीच ठनी ही रहती है। करियर हो या फिर शादी और घर-परिवार से जुड़ी बातें, कई बार किसी एक फैसले पर पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

                                           

ऐसे में क्या आपके दिल और दिमाग के बीच कभी तकरार हुई है? बचपन में मुझे लगता था कि मैं बड़ी हो कर कलाकार बनने जा रही हूँ, परन्तु आठवीं कक्षा में कुछ अचानक बदला और अब जब भी कोई पूछता कि मैं क्या बनूंगी, तो मैं कहती कि कलाकार बनूंगी या डॉक्टर। दरअसल मेरे माता-पिता भी दोनों ही डॉक्टर थे और उन्हें लगता था कि इससे सम्मानजनक पेशा तो कोई और है ही नहीं।

                                     

डॉक्टर जीवन बचाता है। डॉक्टर कभी बेराजगार नहीं होते। हमारे समाज में उपलब्धियां ही महत्वपूर्ण होती हैं। नतीजा, हम असफलता से इतना डरते हैं कि कुछ भी नया करने की कोशिश नहीं करते। अपने आसपास हम एक सुरक्षित घेरा बना कर चलते हैं, तो इसमें कुछ बुराई नहीं लगती, पर जब हम अपने बारे में सोचते हैं, तो लगता है कि हमें क्या होना था और हम क्या हो गए और रह गई एक औसत दर्जे की जिंदगी।

बचपन कितना सहज होता है, पर बड़े होने के बाद जीवन अलग होता है। बहुत कुछ सोचना होता है- खर्च कैसे चलेंगे और इस संसार में अपनी जगह कैसे बनाएंगे? यह सच है कि सभी व्यवसाय समान नहीं हैं। कला और संगीत जैसे क्षेत्र में अगर सफलता नहीं मिलती तो दिक्कतें आती हैं। वहीं दूसरी ओर वे पेशे हैं, जिनकी हमेशा मांग होती है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।