
दैनिक आहार की गुणवत्ता में किया जाए अपेक्षित सुधार Publish Date : 19/04/2025
दैनिक आहार की गुणवत्ता में किया जाए अपेक्षित सुधार
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
अपने समाज में जब तक हम महिलाओ के साथ होने वाले भेदभाव को खत्म नहीं करेंगे और सभी के लिए पौष्टिक आहार की व्यवस्था नहीं करेंगे, कुपोषण का दानव हमें मुंह चिढ़ाता ही रहेगा। कुपोषण के कई रूप है, जैसे बच्चों का नाटा रह जाना, कम वनज और एनीमिया आदि प्रमुख हैं। हालांकि, इनमें से कुछ में तो समय के साथ सुधार हुआ है। ओडिशा, छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्यों में भी काफी सुधार देखा गया। यह किसी विडंचना से कम नहीं है कि कुपोषण के साथ भारत अधिक वजन, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी नई चुनौतियों का भी सामना कर रहा है, जिन्हें पोषण सम्बन्धित गैर-संचारी रोग भी कहा जाता है।
देखा जाए तो वर्तमान में हर पांच में से एक महिला और हर सात में से एक भारतीय पुरुष बढ़ते वजन से पीड़ित हैं। शहरी क्षेत्र में दिनोंदिन यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। मातृ एवं शिशु अल्पपोषण, बच्चों और व्यस्कों का बढ़ता वजन और गैर-संचारी रोग मिलकर भारत के विकास को प्रभावित करते हैं। साथ ही मातृ एवं शिशु मृत्यु दर, स्कूल प्रदर्शन को प्रभावित करने के साथ ही आर्थिक लागत में भी इजाफा करते हैं। कुल मिलाकर, भारत में कुपोषण का बोझ एक ऐसी चुनौती है, जिससे सभी को चिंतित होनी ही चाहिए। भले ही भारत में चल रहे कार्यक्रम और राजनीतिक नेतृत्व पोषण एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक सक्षम माध्यम बने हुए हों, लेकिन दो उपेक्षित चीजों पर बिना ध्यान दिए कुपोषण के सभी रूपों से छुटकारा नहीं मिल सकता है। पहली भारतीय समाज में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति और दूसरी देश भर में आहार की गुणवत्ता।
लैंगिक मामलों पर पिछले तीस वर्षों से शोधकर्ता कह रहे हैं कि महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के चलते उनमें शिक्षा की कम पहुंच, कम उम्र में शादी, स्वास्थ्य सेवाओं की कम पहुंच के साथ अन्य चीजें भारत में कुपोषण को बढ़ावा दे रही हैं। कुपोषण से निपटने के लिए हम अभी भी आइसीडीएस और स्वास्थ्य प्रणाली पर ध्यान ज्यादा केंद्रित करते हैं, और लैंगिक संबंधी चुनौतियों को नजर अंदाज कर रहे हैं।
भारत की ज्यादातर महिलाएं कुपोषित हैं। कुछ का वजन कम है और कुछ में खून की कमी है और अन्य अधिक वजन वाली हैं। दूसरा, कम उम्र और खून की कमी से पीड़ित महिलाओं से पैदा होने वाली संतान के कुपोषित होने की संभावनाएं अधिक होती है। भारत में बहुत सी महिलाओं को बच्चे तब होते हैं जब वे किशोर अवस्था में होती है। इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे भी बुरी बात यह है कि कुपोषित बच्चे बड़े होकर मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जिससे मृत्यु की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। कुल मिलाकर ध्यान न देने के कारण भारत की लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर और समाज के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। दूसरी चीज के तहत, केंद्र और राज्य की आहार की गुणवत्ता और भोजन के स्वस्थ पैटर्न पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
आल्पपोषण हो या एनीमिया या अधिक वजन और मोटापा, भारत की आधी आबादी द्वारा किए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता और विविधता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आहार की गुणवत्ता को किसी भी व्यक्ति के जीवन में भोजन के सभी स्रोतों के संदर्भ में देखना जरूरी है। चाहे वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत दिया जाने वाला भोजन हो, सह-मोल में उपलब्ध कराया जा रहा भोजन हो. आइसोटोप्स या देश के बाजारों में खाद्य पदार्थ हो। वर्तमान चुनौती उच्च अनाज और कम प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थों की है। पीडीएस ज्यादातर चावल, मे तेल और चीनी की आवृति भरवा है. आइसोड खाद्य पदार्थों में भी अनाज को मात्रा अधिक होती है और चीनी के तत्व भी शामिल होते हैं।
शोध बताते हैं कि भले ही स्वस्थ खाद्य पदार्थ जैसे अंडा, डेयरी उत्पाद, फल, सब्जियां और बाजारों में उपलब्ध विभिन्न खाद्य, लेकिन उसकी लागत अधिकांश लोगों की पहुंच से दूर है। भारत के बाजारों में पदार्थों की उपलब्धता और प्रचार-प्रसार भी भारत की खराब गुणवता में योगदान कर रहा है। भारत में कुपोषण को खत्म करने के लिए सरकार कृषि और खाद्य प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती उत्पादन, उपलब्धता और पहुंच में सुधार करने की है। आहार को गुणवत्ता में सुधार से मातृ और बाल कुपोषण में सुधार के साथ-साथ गैर-संचारी रोगों से छुटकारा मिलेगा।
छोड़िए दोषारोपण कीजिए सुपोषण
देश में कुपोषण की गंभीर स्थिति को बताने वाले आंकड़ों की कमी नहीं है। बुलंद भारत की इस बदरंग तस्वीर के कई कारण हैं। इनमें सबसे बड़ा कारक लोगों का पौष्टिक खुराक न लेना है। सुविधा संपन्न और वंचित तबकों. को समान रूप से यह कारक प्रभावित करता है। अधिकांश लोग भूख शांत करने के नाम पर पेट भरने के लिए कुछ भी खा लेते हैं, उन्हें पता ही नहीं कि वह भोजन उनकी शारीरिक और मानसिक जरूरतों को पूरा करने में कितना सक्षम है। हमारे पुरखों को देखिए- सर्दी, गर्मी, बरसात हाड़ तोड़ मेहनत करते थे, बीमार भी नहीं पड़ते थे, बदले में खाने के लिए कोदौ, सांवा, चना, ज्वार, बाजरा और मक्का जैसे मोटे अनाज मिलते थे। इनका सेवन करना उनकी विवशता थी, विकल्प के रूप में कुछ होता भी नहीं था। ऐसी मौसमी सब्जियां उनकी खुराक का हिस्सा होती थीं जो बिना उपक्रम उग आती थीं। लता वाली फलियां, फल, कंदमूल जैसे आहार विवशता में ही सही, लेकिन वे पौष्टिक खुराक ले रहे थे। लिहाजा उन्हें विटामिन सप्लीमेंट्स की जरूरत नहीं पढ़ती थी। आाज बाजार में मोटे अनाजों के पैकेट मिलने लगे हैं। किसान इन्हें उगाना बंद कर चुके है क्योंकि कम पैदावार और कम न्यूनतम समर्थन मूल्य से नकदी फसलें ज्यादा मुफीद साबित हो रही हैं। जो वंचित तबका है, वह सुपोषित भोजन के प्रति जागरूक नहीं है, और उसे ये सब हासिल भी नहीं है।
देश के हर नागरिक को स्वस्थ और पोषित रखना निःसन्देह सरकार का कर्तव्य है, लेकिन कुछ हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम खुद को सुपोषित रखें। लिहाजा संसाधनों और तमाम चीजों की कमी का रोना छोड़ हम अपनी खुराक में उन चीजों को ज्यादा से ज्यादा शामिल करें, जो स्थानीय स्तर पर आसानी से सुलभ हैं, सस्ती और पौष्टिकता से भरपूर हैं। तमाम महंगी चीजों में मिलने वाले पोषक तत्वों के सस्ते और सुलभ विकल्प हमारे आसपास मौजूद हैं। सितंबर से केंद्र सरकार कुपोषण के खिलाफ देशव्यापी मुहिम चलाने जा रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटे अनाज के सेवन की विरत होती प्रवृत्ति पर चिंता जाहिर की है। आइए हम खुद को सुपोषित रखकर सरकार के इस महती अभियान के भागीदार बनें। तो छोड़िए दोषारोपण, कीजिए सुपोषण।
तेल में पक रही बीमारियां
लोगों को लगता है कि तेल हमेशा भोजन का हिस्सा रहा है। फिर यह नुकसानदायक कैसे, मगर वास्तविकता है कि बार-बार एक ही तेल में पक रहे भोजन के साथ बीमारियां घुल-मिल कर तेल को रंगत बता सकती है कि आप जो भोजन खा रहे हैं, वह कितनी तरह की बीमारियां दे सकता है। भोजन बार-बार एक ही तेल में तैयार करने से हृदय रोग, नसों में ब्लाकेज, पेट संबंधी तकलीफों के साथ ही बैड कोलेस्ट्रॉल का कारण बन सकता है। खाना पकाने के लिए सही तेल का चयन आवश्यक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कथन है कि तेल की मात्रा नियंत्रित करनी है। कम तेल का इस्तेमाल करने का अर्थ है कि आप मात्रा के बजाय गुणवत्ता पर ध्यान दें। घटिया या ज्यादा बार एक ही तेल को पकाकर उसका सेवन कम करने से आप अनावश्यक कैलोरी कम कर सकते हैं।
संतुलित कर ले जीवनशैलीः तेल को बार-बार गर्म करने से उसमें फ्री रेडिकल्स बनने लगते हैं, जो कैंसर, स्ट्रोक व अल्जाइमर आदि को बुलावा देते हैं। ये रेडिकल्स एंटीआक्सीडेंट की मात्रा कम कर देते हैं, जिससे त्वचा संबंधी रोग होने लगते हैं तो वहीं इस तेल से निकले विषैले रसायन पेट में गैस व अपच की समस्या शुरू कर देते हैं। अब प्रश्न है कि घर में तेल की जांच तो संभव है, मगर पार्टी के दौरान आहार में तेल की मात्रा व गुणवत्ता का नियंत्रण नहीं रह पाता। ऐसे में सबसे आसान है कि व्यायाम के जरिए इस अत्यधिक कैलोरी को खत्म करें। कुछ शारीरिक गतिविधियों करना फायदेमंद है। मिड-पेस वाले कार्डियो से शुरुआत करें, जैसे तेज चलना, साइकिल चलाना या हल्की जागिंग करें ताकि फैट घटाने में मदद मिले और मेटाबालिज्म मजबूत हो। फाइबर युक्त चीजें खाएं और पर्याप्त पानी पीना भी जरूरी है।
चुनें पोषक विकल्पः यह समझना जरूरी है कि हेल्दी आयल दुश्मन नहीं होते, लेकिन अगर तेल से ज्यादा कैलोरी ले रहे हैं ती इसे संतुलित करें। तेल को डाइट से पूरी तरह हटाने के बजाय नारियल का तेल या नट आयल जैसे पौषक विकल्प चुनें, जो न केवल ऊर्जा, बल्कि फायदेमंद फैटी एसिड भी देते हैं। हेल्दी फैटी एसिड मस्तिष्क को बेहतर बनाते हैं और जोड़ों व दिल की सेहत के लिए जरूरी होते हैं। आप प्रोसेस्ड आयल पर निर्भरता कम करके वर्जिन आलिव आयल या एवोकाडो आयल जैसे पौष्टिक विकल्पों को अपना सकते हैं। ये एंटीआक्सीडेंट और मोनोअनसैचुरेटेड वसा देते हैं, जो हमारे सेल्स के निर्माण में और ऊर्जा उत्पादन में मदद करते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।