समाज का आधार परिवार      Publish Date : 18/04/2025

                        समाज का आधार परिवार

                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

हमारे चिंतन में परिवार को समाज की सबसे छोटी इकाई माना गया है जबकि पश्चिमी चिंतन मनुष्य को सबसे छोटी इकाई की तरह स्वतंत्र देखा जाता है। इसी चिंतन के अनुरूप ही जीवन शैली विकसित हुई है, अतः हमारी और उनकी जीवन शैली अलग प्रकार की है। जब लक्ष्य अलग हैं तो मार्ग तो भिन्न होना निश्चित ही है, तो क्या हम उनके मार्ग पर चलकर अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं?

                                          

पहले तो हमने यह प्रयास किया कि की उनके तरीके से जीवन जीते हुए अपने प्रकार का आनंद लें, लेकिन धीरे- धीरे जब यह संभव नहीं लगा तब हमने अपने जीवन आनंद की परिभाषा को ही बदलना प्रारंभ कर लिया और थोड़ा-थोड़ा स्वयं को ही समाज की अंतिम और स्वतंत्र इकाई समझने लगे।

जब हम परिवार नामक इकाई की बात करते हैं उसके अनुरूप जीवन जीते हैं तब समाज, राष्ट्र और सृष्टि का विचार स्वाभाविक रूप से स्वतः ही हमारी जीवन शैली में समाहित हो जाते हैं। लेकिन जब हम केवल अपने शरीर का विचार ले कर आगे बढ़ते हैं तब वायु धरती और जल तक का विचार भी हमारी जीवन शैली में से गायब हो जाता है। जिसके कारण आज दुनिया एक बड़े संकट से घिरती जा रही है।

ऐसे में विश्व समुदाय के लिए भारत का चिंतन एक मात्र आशा की किरण है और मनुष्य के सुख पर आने वाली विपत्तियों के लिए परिवार नामक संस्था एक मात्र सुरक्षा कंवच। हम परिवार को आत्म-विस्तार की दिशा में पहला कदम मानते हैं।

                                        

इसलिए सामाजिक कर्तव्यों का निर्वहन करते समय हमें यह नहीं चाहिए कि -“मैं सामाजिक कार्य कर रहा हूं, इसलिए मुझे पारिवारिक जिम्मेदारियों से परेशान होने की क्या जरूरत है?” क्योंकि सामाजिक जीवन की सुचिता और निरंतरता का आधार परिवार के कारण ही दृढ़ होता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।