नसों में बहने लगा है नदियों का प्लास्टिक      Publish Date : 17/04/2025

              नसों में बहने लगा है नदियों का प्लास्टिक

                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

जल प्रदूषण के बोझ से बोझिल नदियों में अब पानी के साथ ही माइक्रो प्लास्टिक का प्रवाह भी हो रहा है और यह पहुंच रहा है मानव शरीर में। स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण संकट की इस विकराल स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं, हमारे विशेषज्ञ सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर-

                                       

आज दुनिया में जल से लेकर बल तक, हर जगह प्लास्टिक का बोलबाला है। यदि इस युग को ‘प्लास्टिक युग’ कहा जाए तो यह भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज प्लास्टिक न केवल सर्वव्यापी हो चुका है, बल्कि अब यह जीवन का अनिवार्य हिस्सा भी बन चुका है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि अब तो यह हमारे शरीर में भी प्रवेश कर चुका है। विज्ञानियों का मानना है कि हमारे शरीर में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण ‘‘माइक्रो प्लास्टिक’’ के रूप में समा रहा हैं।

इसके शरीर में प्रवेश के कई माध्यम हैं। इनमें प्रमुख है- प्लास्टिक संक्रमित जल और प्लास्टिक पैकिंग वाले खाद्य उत्पादों का उपयोग, जो कहीं न कहीं हमारी आहारचर्या का हिस्सा बन जाता है। खेतों, नदियों और अन्यान्य जल स्रोतों में माइक्रो (सूक्ष्म) प्लास्टिक की मौजूदगी अब इतनी अधिक हो चुकी है कि आज इसका असर सीधा हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

पानी, चाहे वह किसी भी स्रोत से हो, प्लास्टिक की बोतलों या बर्तनों का उपयोग इसे दूषित कर रहा है। बाजार में बिक रही पानी की बोतल को ही देखें जिनसे हम अक्सर अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं। प्यास मिटे या ना मिटे, पर यह आपने अंदर के माइक्रो प्लास्टिका कणों के मायम से एक दिन हमें जरूर मिटा देगी। एक अध्ययन से पता चला है कि एक लीटर पानी की बोतल में माइक्रो प्लास्टिक के एक लाख चौबीस हजार कण मौजूद होते हैं, तो ऐसे में कल्पना कीजिए कि आज तक हमने कितना माइक्रो प्लास्टिक गटक लिया होगा। इन बोतलों में भी पानी नदियों से ही आता है, जो अब प्लास्टिक का गढ़ बन चुकी हैं। अब ये प्लास्टिक की नदियां ही बन जाने वाली हैं।

बारिश के समय, जब ये नदियां थोड़े समय के लिए ‘‘जीवित’’ होती हैं, अपने साथ प्लास्टिक को खेतों, समुद्र और वायुमंडल तक ले जाती हैं। और फिर, क्या पेट और क्या फेफड़े, सबको लपेट लेती हैं। 

प्लास्टिक से अटी पड़ी हैं नदियां

                                               

प्लास्टिक न केवल पर्यावरण के लिए, चल्कि स्वास्थ्य के लिए भी एक गंभीर खतरा बन चुकी है। गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी पवित्र नदियां, जिन्हें हम पूजते हैं, पूरी तरह प्लास्टिक के घेरे में आ चुकी हैं। सीएसआइआर के एक अध्ययन में पाया गया है कि हरिद्वार से लेकर पटना तक हर जगह नदियों के पानी में माइक्रो प्लास्टिक पाया गया है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2025 के अंत तक भारत दुनिया में चौथे स्थान पर होगा, जहां जल स्रोतों में सबसे अधिक माइक्रो प्लास्टिक पाया जाएगा। इस अध्ययन में बताया गया है कि प्लास्टिक डंपिंग ग्राउंड (जो दुनिया के कई हिस्सों में फैले हैं) बारिश के बाद माइक्रो प्लास्टिक का मुख्य स्रोत बनते हैं।

ये माइक्रो प्लास्टिक जलं खेतों में मिलते हैं और नदियों में उतर जाते हैं। धीरे-धीरे यह मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। माइक्रो प्लास्टिक पांच मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं जो प्रमुखतः टायर, टेक्सटाइल फाइबर, प्लास्टिक पैलेट्स और पेंट जैसी वस्तुओं से आते है।

यह स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं, क्योंकि इनमें हैवी मेटल्स और बायोरकेनाल जैसे रसायन होते हैं जो कैंसर और मेटाबोलिक आदि विकारों का कारण बन सकते हैं। आने वाले समय में भारत में लगभग 31,000 टन माइक्रो प्लास्टिक से उत्पन्न रासायनिक पदार्थ जलस्त्रोतों में मिलेंगे, जो एक बड़ी चुनौती बनेंगे। विशेष रूप से गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियों में माइक्रो प्लास्टिक की उपस्थिति बढ़ रही है, जो कृषि और पानी की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है।

अगर आप समुद्र को देखें, जहां से मानसून चलता है तो अनुमान है कि वहां तीन ट्रिलियन टन से अधिक प्लास्टिक के टुकड़े तैर रहे हैं और इसमें हर साल दो लाख टन प्लास्टिक और जुड़कर कचरे के रूप में समुद्र में बहता है। कल्पना की जा सकती है कि वहां से उठने वाली बारिश कैसी होगी। इसी प्रकार, आकाश में भी प्लास्टिक अंश तैरते हैं चाहे वह सैटेलाइट के कचरे के के रूप में हो या छोटे-छोटे अन्य प्लास्टिक कणों के रूप में।

संपूर्ण विश्व के लिए गंभीर संकट

                                                  

हम एक समय ‘एसिड रेन’ अर्थात, तेजाबी बारिश की बात करते थे, लेकिन अब वैज्ञानिक सामान्य बारिश को भी ‘प्लास्टिक रेन’ के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि माइक्रो प्लास्टिक के कण हमारे वायुमंडल में भी फैल चुके हैं। इनका रास्ता भी बारिश के बाद नदियां ही होती हैं। एक समय था जब हर पत्थर के नीचे भगवान की कल्पना की जाती थी, परंतु अब हर पत्थर के नीचे प्लास्टिक पाया जाता है। ऐसे में कोई आश्चर्य की बात नहीं कि प्लास्टिक हमारे शरीर में प्रवेश कर चुका है। यह संपूर्ण विश्व के लिए गंभीर स्वास्थ्य संकट बन चुका है। विज्ञानियों के अनुसार, रक्त में हमारे भोजन पानी के साथ यह शरीर के महत्वपूर्ण अंगों जैसे किडनी, लिवर, हृदय और धमनियों में भी पहुंच चुका है।

आंकड़ों के अनुसार, हर व्यक्ति के शरीर में लगभग 50,000 माइक्रो प्लास्टिक के कण पाए जा रहे हैं और कोई भी आज इससे अछूता नहीं है।

अमेरिका के नागरिकों के में मानव शरीरों में यह संख्या 78,000 से दो लाख के बीच पाई जा रही है। मइक्रो प्लास्टिक के शरीर में प्रवेश करने का मुख्य कारण यह है कि इसका आकार इतना सूक्ष्म होता है कि यह आसानी से शरीर में प्रवेश मिल जाता है। शरीर में पहुंचकर यह इको टॉक्सिसिटी उत्पन्न करता है, जिसका हमारे अंगों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अध्ययन से पता चला है कि समुद्री जीवों पर भी इसके कारण गंभीर प्रभाव पड़े हैं, जिससे उनकी मृत्यु दर और प्रजनन क्षमता पर असर हुआ है।

माना जाता है कि 100 नैनोमीटर से छोटे माइक्रो प्लास्टिक कण अब हमारे शरीर के लगभग सभी अंगों में पहुंच चुके हैं। यदि इसी गति से यह समस्या बढ़ती रही, तो आने वाले समय में इसके गंभीर प्रभाव दिखाई देंगे।

एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में कई जगह, प्रति वर्ग मीटर लगभग पांच लाख से अधिक माइक्रो प्लास्टिक कणों की आशंका पाई गई है। यही कारण है कि अमेरिका और कनाडा जैसे कई देशों ने प्लास्टिक पर सख्त प्रतिबंध लगाने के बड़े और कड़े फैसले लिए हैं।

ठोस कदमों की आवश्यकता

                                                    

अब जब हम सबके लिए जल की थीम पर नदी दिवस मना रहे हैं, हमें इस विडंबना को भी स्वीकार करना होगा कि अगर नदियाँ अपने प्राकृतिक प्रवाह में हों, तो शायद वे इस प्लास्टिक को बहाकर समुद्र तक ले जांतीं, लेकिन अब अधिकांश नदियां भी प्लास्टिक के बोझिल प्रदूषण का शिकार हो चुकी हैं। मतलब नदी में पानी हो न हो. प्लास्टिक जरूर होगा। गांव हों या शहर, सभी जगह जलस्रोतों में प्लास्टिक पूरी तरह पुल मिल चुका है। अब समय आ गया है कि हम इस गंभीर समस्या पर विचार करें। प्लास्टिक का हमारे शरीर में प्रवेश और इसके दीर्घकालिक प्रभाव अब स्पष्ट रूप से सामने हैं। इसे हल करने के लिए व्यापक चर्चा और ठोस कदमों की आवश्यकता है।

मानव शरीर में प्लास्टिक के दो मुख्य प्रवेश मार्ग हैं जल और वायु। दोनों ही हमारी लापरवाही से दूषित हो चुके हैं और अब इन पर माइक्रो प्लास्टिक का संकट मंडरा रहा है।

यह हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसकी अनदेखा नहीं की जा सकती है। नदियां अब सिर्फ पानी का प्रवाह नहीं हैं, वे प्लास्टिक के बहाव की प्रतीक बन चुकी हैं। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। अगर समय रहते हमने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह संकट आने वाली पीढ़ियों के लिए विकराल रूप ले लेगा। इसलिए, हमें अब यह सुनिश्चित करना ही होगा कि आने वाले समय में पृथ्वी पर इसका प्रभुत्व होगा, इस ग्रह पर प्लास्टिक रहेगी या हम।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।