आत्म दर्शनः ज्ञान में अभिमान होता है, जबकि भक्ति में विनम्रता      Publish Date : 05/04/2025

आत्म दर्शनः ज्ञान में अभिमान होता है, जबकि भक्ति में विनम्रता

                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

अभयता किसी भी साधक के जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह अवस्था हमें धनबल से नहीं, अपितु चरित्र बल और परमात्मा के अनुग्रह से प्राप्त होती है। मनुष्य के भीतर अवस्थित अज्ञान और असुरक्षा की भावना प्रायः उसे जीवन के उच्चतर लक्ष्यों से विमुख करती है। इसलिए यथार्थवादी और सत्यनिष्ठ रहिए। लक्ष्मी भी प्रायः चरित्र संपन्न और सत्यनिष्ठ साधकों का अनुसरण करती है। भगवान के विधान में हमारे लिए किंचित भी प्रतिकूलता नहीं है और जो कुछ भी हमारे समक्ष घटित हो रहा है, वह सबकुछ हमारे प्रारब्ध एवं भोग-भाग्य का परिणाम है।

                                                         

समर्पण सर्वाेत्तम साधन है, मन-वचन-कर्म से समर्पित साधक अभयता और आनंद का अधिकारी बन जाता है। भक्ति व ज्ञान प्राप्ति के लिए समर्पण का भाव होना आवश्यक है। ज्ञान में अभिमान होता है, लेकिन भक्ति में बिनम्रता होती है। ज्ञान में कर्म फल और मोक्ष प्राप्ति की इच्छा होती है, भक्ति में केवल सेवा की। ज्ञान में तर्क-वितर्क होता है जबकि भक्ति में केवल और केवल समर्पण होता है। ज्ञान में विद्वता और क्षमता का प्रदर्शन होता है, जबकि भक्ति में सहिष्णुता का। इसलिए भक्ति को ईश्वर प्राप्ति का परम साधन माना गया है।

समर्पण का अर्थ है अपने लक्ष्य के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रत्येक क्षण में उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना। किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए समर्पण अनिवार्य है। दृढ़ निश्चय ही विजय है। इस संसार में प्रत्येक वस्तु संकल्प शक्ति पर निर्भर करती है। शुभ-उद्देश्य के लिए सच्ची लगन से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं होता। समर्पण से कार्य को पूर्ण करने की लगन ही युवाओं को सफलता प्रदान कर सकती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।